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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 27 Sep 2025 12:29:40 PM IST
बिहार की राजनीतिक में हलचल - फ़ोटो GOOGLE
Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर किसी भी दिन डुगडुगी बज सकती है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में लगी हुई है। इसी कड़ी में भाजपा ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी सहयोगी धर्मेंद्र प्रधान को बिहार चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है। इनके साथ उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल को सह प्रभारी बनाया गया है, जो चुनाव प्रबंधन को और भी प्रभावी बनाने के लिए जिम्मेदार होंगे। यह नियुक्ति भाजपा की चुनावी रणनीति को मज़बूत करने और संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। अब सवाल यह है कि आखिर प्रधान और मौर्य को बिहार पाटिल के साथ क्यों भेजा जा रहा है ?
दरअसल, धर्मेंद्र प्रधान की नियुक्ति का ऐतिहासिक संदर्भ भी काफी मजबूत है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया था, तब भाजपा ने उत्तर प्रदेश की कमान अमित शाह को सौंपी थी, जबकि बिहार का चुनावी संचालन धर्मेंद्र प्रधान के जिम्मे था। उस चुनाव में एनडीए ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 73 और बिहार की 40 में से 31 सीटें जीतकर केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी। यह अनुभव भाजपा के लिए एक बड़ी सफलता साबित हुआ और अब वह उसी रणनीति को दोहराने की तैयारी कर रही है। ऐसे में अब उन्हें बिहार वापस भेजा गया है।
वहीं,इस बार के चुनाव में बिहार में भाजपा जातिगत समीकरणों और विकास मुद्दों पर जोर दे रही है। पार्टी केंद्र की जनकल्याणकारी योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, हर घर जल, जलापूर्ति योजना और गरीब अन्न योजना को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। पार्टी संगठन को विशेष रूप से उन जिलों और क्षेत्रों में मजबूत किया जा रहा है जहां पिछली बार उसकी पकड़ कमजोर थी। इसके साथ ही, सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यमों के जरिए युवाओं और पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास तेज किया जा रहा है।
बीजेपी की यह रणनीति सहयोगी दलों के साथ तालमेल को भी मजबूत बनाने पर आधारित है। पार्टी जेडीयू, एलजेपी और हम जैसे सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे और चुनाव प्रचार के समन्वय में लगी है ताकि चुनावी माहौल में पार्टी को अधिकतम फायदा मिल सके। भाजपा का लक्ष्य बिहार में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाना है, और इसके लिए बड़े पैमाने पर रैलियां, रोड शो और जन संपर्क अभियान चलाए जा रहे हैं।
इस बार की रणनीति में धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि पार्टी हर छोटी-से-छोटी राजनीतिक चुनौती का सामना कर सके। बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा की यह रणनीति उसे एक मजबूत स्थिति प्रदान करने के साथ-साथ आगामी विधानसभा चुनावों में उसकी सफलता की संभावनाओं को भी बढ़ाएगी। धर्मेंद्र प्रधान की नियुक्ति भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व की उस रणनीति का हिस्सा है, जो पिछले चुनावों की सफलताओं से प्रेरित होकर बिहार में एक निर्णायक विजय हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
भाजपा इस बार न केवल पारंपरिक जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है, बल्कि नए सामाजिक गठबंधन की भी राह देख रही है। पार्टी ओबीसी, अति पिछड़ा वर्ग और दलित समुदायों में अपनी पैठ को और मजबूत करने पर काम कर रही है। इसके साथ ही, महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए उज्ज्वला योजना, जनधन योजना और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी योजनाओं को प्रमुखता से प्रचारित किया जा रहा है। युवाओं के लिए स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और रोजगार से जुड़े वादों को सामने रखा जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में किसानों को साधने के लिए पीएम किसान सम्मान निधि और कृषि से संबंधित सुधारों को चुनावी भाषणों में शामिल किया गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की यह रणनीति उसे शहरी और ग्रामीण, दोनों वर्गों में मजबूत समर्थन दिला सकती है। वहीं विपक्षी दलों की एकजुटता और महागठबंधन की भूमिका भी इस चुनाव में अहम रहेगी। ऐसे में धर्मेंद्र प्रधान और उनकी टीम का चुनावी प्रबंधन आने वाले समय में बिहार की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाला साबित हो सकता है।