कभी बिहार में थे विरोधी दल के नेता, अब ममता बनर्जी की तृणमूल में हुए शामिल

कभी बिहार में थे विरोधी दल के नेता, अब ममता बनर्जी की तृणमूल में हुए शामिल

DESK : कभी बिहार में नेता विरोधी दल रह चुके और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा आज टीएमसी में शामिल हो गए. यशवंत सिन्हा अब ममता बनर्जी के साथ मिलकर आगे की राजनीति करेंगे. बिहार विधानसभा चुनाव में यशवंत सिन्हा ने नए फ्रंट के जरिए किस्मत आजमाई थी. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई.


पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को टीएमसी सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय और मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने पार्टी दफ्तर में सदस्यता दिलाई. पार्टी में शामिल होने से पहले उन्होंने ममता बनर्जी के साथ बातचीत भी की थी. सुदीप बंद्योपाध्याय ने बताया कि दीदी के साथ यशवंत सिन्हा की बातचीत काफी सकारात्मक रही. आपको बता दें कि यशवंत सिन्हा बीजेपी के बहुत ही सीनियर नेता रह चुके हैं. वह काफी समय से बीजेपी ने नाराज चल रहे थे और लगातार पार्टी के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे.



टीएमसी में शामिल होने के बाद बीजेपी की आलोचना करते हुए यशवंत सिन्हा ने मीडिया से कहा, 'प्रजातंत्र की ताकत प्रजातंत्र की संस्थाएं होती हैं. आज लगभग हर संस्था कमजोर हो गई है, उसमें देश की न्यायपालिका भी शामिल है. हमारे देश के लिए ये सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है. अटल जी के समय में बीजेपी सर्वसम्मति पर विश्वास करती थी लेकिन आज की सरकार कुचलने और जीतने में विश्वास करती है. अकादी दल, बीजेडी, शिवसेना पहले ही बीजेपी का साथ छोड़ चुकी है. आज बीजेपी के साथ कौन खड़ा है?'



यशवंत सिन्हा मुख्य रूप से पटना के रहने वाले हैं. यहीं इनकी पढ़ाई लिखाई भी हुई है. 1958 में राजनीति शास्त्र में मास्टर की डिग्री हासिल की. इसके बाद  1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए. अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए 24 साल से अधिक तक सेवा दिए. इसके बाद यशवंत सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़ गए.


साल 1988 में उन्हें राज्य सभा सदस्य चुना गया. मार्च 1998 में अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में उनको वित्त मंत्री नियुक्त किया गया. लोकसभा में यशवंत सिन्हा बिहार के हजारीबाग जो कि अब झारंखड में है, क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हजारीबाग सीट से हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, अगले साल ही 2005 में वे फिर संसद पहुंचे. इसके बाद साल 2009 में वे बीजेपी उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.