जानिए आखिर क्यों सीएम नीतीश से मिलने की बार-बार कोशिश कर रहे हैं अनंत ?

जानिए आखिर क्यों सीएम नीतीश से मिलने की बार-बार कोशिश कर रहे हैं अनंत ?

DESK: ‘छोटे सरकार’ यानि निर्दलीय विधायक अनंत सिंह इन दिनों मुश्किल हैं. नाम की तरह ही अनंत सिंह की कहानियां भी अनंत हैं. याद कीजिए वह दौर जब राजनेता इस रसूख वाले ‘छोटे सरकार’ से मुलाकात के लिए इंतजार किया करते थे. मोकामा, बाढ़ इलाके से चुनाव जीतने के लिए नेता अनंत सिंह के पास अपना दूत भेजते थे और उनका आशीर्वाद चाहते थे. सीएम के क्यों मिलना चाहते हैं अनंत? अब सवाल यह है कि मुश्किलों की इस घड़ी में आखिर अनंत सिंह सीएम नीतीश कुमार से मिलना क्यों चाहते हैं? इसके पीछे भी राजनीति की बड़ी रोचक कहानी है. जिस ललन सिंह को अनंत सिंह अपना सबसे बड़ा दुश्मान बता रहे हैं, किसी जमाने में इन दोनों की दोस्ती बड़ी नामी थी और इस दोस्ती के चलते ही अनंत की सीएम नीतीश से काफी नजदीकी थी. नीतीश भी चाहते थे अनंत का साथ राज्य में जब लालू प्रसाद का शासन था तो उसी दौरान अनंत सिंह के घर छापेमारी हुई थी. उस बुरे दौर में भी अनंत सिंह, नीतीश कुमार और ललन की नजदीकियों के चलते विधायक चुने गए थे. अब जरा इतिहास के पन्नों को पलटिए. बात साल 2004 की है जब नीतीश कुमार बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे. उसी समय मोकामा से निर्दलीय विधायक सूरजभान सिंह बलिया से आरजेडी-लोजपा के संयुक्त उम्मीदवार बने थे. नीतीश कुमार को उस समय यह पता था कि बिना अनंत सिंह की मदद के बलिया से उनकी पार्टी का चुनाव जीतना मुश्किल है. दोस्ती हुई पक्की इस चुनाव ने अनंत, ललन सिंह और नीतीश कुमार की दोस्ती और पक्की कर दी. नीतीश कुमार के कहने पर ललन सिंह ने अनंत को अपने पाले में लाया. इस दौरान एक जनसभा का भी आयोजन किया गया जहां अनंत ने नीतीश कुमार को चांदी के सिक्कों से तौला. अनंत ने उठाया फायदा अनंत सिंह ने नीतीश कुमार के साथ दोस्ती का भरपूर इस्तेमाल किया. नीतीश कुमार के सत्ता में आते ही अनंत सिंह ने अकूत संपत्ति जमा की और पटना में तो अपने बाहुबल के दम पर कई संपत्तियों पर जबरन कब्जा जमाया. इस दौरान कई मामले अदालतों तक भी पहुंचे लेकिन अनंत का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया. रंग लायी दोस्ती नीतीश कुमार से साथ दोस्ती अनंत सिंह का स्वर्णिम काल रहा. याद कीजिए उस समय को जब नीतीश की जगह जीतन राम मांझी सूबे के सीएम बने थे. सत्ता की लड़ाई के बीच एक बार तो अनंत सिंह पर मांझी को जान से मारने की धमकी देने का भी आरोप लगा था. 2015 से शुरु हुए बुरे दिन लेकिन साल 2015 में राजद के साथ महागठबंधन बनने के बाद अनंत के बुरे दिन शुरु हो गए. सत्ता का साझीदार बदलते ही अनंत के मुश्किलों की शुरुआत हो गई. दुर्भाग्य से उसी दौरान मोकामा में एक युवक की हत्या हो गई. राजद के दवाब के बीच उल्टी पड़ी सियासी समीकरण के तहत अनंत के घर पर छापेमारी हुई. हालांकि अनंत के घर कुछ भी नहीं मिला. लोकसभा चुनाव ने ठोकी आखिरी कील पिछले लोकसभा में अनंत सिंह ने जिस अंदाज में सीएम नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत आरोप लगाए, चुनावों में धनबल और बाहुबल का आरोप लगाया और जिस तरह से चुनाव प्रचार किया यही अनंत सिंह की अंत की कहानी लिख गया.