डाकबंगला पर बैठे रह गये कुशवाहा जी, तेजस्वी यादव ने देखा तक नहीं, राजद के युवराज ने कांग्रेसियों का भी नोटिस नहीं लिया

डाकबंगला पर बैठे रह गये कुशवाहा जी, तेजस्वी यादव ने देखा तक नहीं, राजद के युवराज ने कांग्रेसियों का भी नोटिस नहीं लिया

PATNA : CAA और NRC पर विपक्षी पार्टियों के बंद के दौरान बिहार के महागठबंधन की भी पोल खुल गयी. डाकबंगला चौराहे पर हुए ड्रामे में उपेंद्र कुशवाहा से लेकर कांग्रेसी नेताओं की हैसियत पता लग गयी. राजद के युवराज तेजस्वी प्रसाद यादव ने अपनी सहयोगी पार्टियों के नेताओं की ओर पलट कर देखा तक नहीं. अपने लाव लश्कर के साथ तेजस्वी आये, खुद भाषण दिया और चलते बने. सुबह से ही डाकबंगला पर डेरा डाल कर बैठे उपेंद्र कुशवाहा से लेकर मदन मोहन झा जैसे नेता उनके दर्शन सुख से भी वंचित रह गये.

पटना के डाक बंगला चौराहे पर सियासी ड्रामा
बिहार बंद के नाम पर राजनीति का केंद्र पटना का डाकबंगला चौराहा बना हुआ था. बंद के समर्थन के नाम पर उत्पातियों का जमात सुबह से ही डाकबंगला चौराहे पर जमकर उत्पात मचा रहा था. सुबह के दस बजे ही उपेंद्र कुशवाहा अपने समर्थकों के साथ डाकबंगला चौराहे पर पहुंच गये और सड़क जाम की औपचारिकता निभाने के बाद एक किनारे पर धरना पर बैठ गये. कुछ देर बाद मदन मोहन झा के नेतृत्व में कांग्रेसियों का जत्था पहुंचा और वे भी डाकबंगला चौराहे के दूसरे छोर पर धरना देने बैठ गये.

डाकबंगला पर बैठे नेताओं के साथ साथ बंद समर्थकों की जमात को इस ड़्रामे के हीरो तेजस्वी यादव का इंतजार था. दिन के डेढ बजे के बाद तेजस्वी यादव अपने समर्थकों के साथ डाकबंगला चौराहे पर पहुंचे. राजद के नेता साथ थे. डाकबंगला चौराहे के अलग अलग किनारे पर बैठे उपेंद्र कुशवाहा और कांग्रेसियों के खेमे में हलचल हुई. लगा अब तेजस्वी का बुलावा आयेगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. चौराहे पर जमे लोग तेजस्वी के चारो ओर इकट्ठा हो गये थे और दो कोनों में उपेंद्र कुशवाहा और मदन मोहन झा अपने कुछ समर्थकों के साथ अलग थलग बैठे थे.


उधर राजद का अपना कार्यक्रम जारी था. तेजस्वी के साथ पहले से ही लाउडस्पीकर लगी गाड़ी चल रही थी. उसी गाड़ी से तेजस्वी प्रसाद यादव का भाषण हुआ. भाषण में एक भी दफे किसी सहयोगी पार्टी का जिक्र नहीं किया गया. तेजस्वी ने अपना भाषण पढ़ा. भाषण पूरा हुआ और राजद का पूरा खेमा डाकबंगला चौराहे से चलता बना. 


उधर उपेंद्र कुशवाहा और कांग्रेसियों के खेमे में बेचैनी और मायूसी पसरी थी. उन्हें अपनी बेइज्जती का अहसास था लेकिन कर भी क्या सकते थे. तेजस्वी के जाने के तुरंत बाद कांग्रेसियों का जत्था उठा और डाकबंगला चौराहे से निकल गया. थोड़ी देर बाद उपेंद्र कुशवाहा को भी मोर्चा छोड़ना पड़ा. वे भी उठे और चुपचाप निकल गये.

डाकबंगला चौराहे पर हुए इस ड्रामे ने महागठबंधन के भीतर चल रहे खेल को उजागर कर दिया. दरअसल कुछ दिनों पहले उपेंद्र कुशवाहा से लेकर कांग्रेसियों ने तेजस्वी यादव को बिहार में महागठबंधन का नेता मानने से इंकार कर दिया था. वहीं, CAA और NRC के मामले पर भी खूब खेल हुआ. उपेंद्र कुशवाहा, कांग्रेस और जीतन राम मांझी ने 19 दिसंबर को वामदलों के और 21 दिसंबर के राजद के बंद दोनों के समर्थन का एलान किया था. तेजस्वी को ये तमाम बातें नागवार लगी थीं. वहीं ये मामला मुसलमान वोटरों का है. तेजस्वी इसमें किसी को हिस्सेदार नहीं बनाना चाहते. लिहाजा उन्होंने अपनी सहयोगी पार्टियों को बंद से दूर ही रखा.