desk : कोरोना वायरस ने बीते तीन महीने में अपनी मौजूदगी विश्व के हर एक देश में दर्ज करा ली है. सामान्य फ्लु जैसी लक्षणों वाली इस बीमारी से अब तक 50,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 10,16,381 लोग इस बीमारी से ग्रसित है. इस महामारी से बचने के लिए अभी तक कोई दावा या वैक्सीन का अविष्कार नहीं हो सका है.
अलग-अलग देश यह दावा कर रहे हैं कि उनके यहां वैक्सीन बन रही है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उनकी वैक्सीन ने उस स्तर की ताकत हासिल कर ली है, जिससे कोरोना वायरस के संक्रमण को मजबूती से रोका जा सके. वहीं कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि चीन के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में कुछ बंदरों को कोरोना वायरस से संक्रमित करा कर इस वायरस से लड़ने के लिए इम्यूनिटी डेवेलप कराइ थी. अब इन बंदरों के शरीर से एंटीबॉडीज लेकर नए वैक्सीन को विकसित करने की तैयारी की जा रही है.
दुनिया भर के वैज्ञानिक इस घातक बीमारी की दवा खोजने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे है.अब खबर आई है की यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने बाकी देशों की तुलना में बहुत जल्द कोविड-19 कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित कर लेने का दावा किया है. इस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जो वैक्सीन बनाई है उसके लिए वैज्ञानिकों ने सार्स (SARS) और मर्स (MERS) के कोरोना वायरस को आधार बनाया था.
पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन की एसोसिएट प्रोफेसर आंद्रिया गमबोट्टो ने बताया कि “ये दोनों सार्स और मर्स के वायरस नए वाले कोरोना वायरस यानी कोविड-19 से बहुत हद तक मेल खाते हैं. इससे हमें ये सीखने को मिला है कि इन तीनों के स्पाइक प्रोटीन (वायरस की बाहरी परत) को भेदना बेहद जरूरी है ताकि इंसानों के इस वायरस से मुक्ति मिल सके”.
प्रोफेसर आंद्रिया गमबोट्टो ने कहा कि हमें यह पता कर लिया है कि कोरोना वायरस को कैसे मारना है. उसे कैसे हराना है. हमने अपनी वैक्सीन को चूहे पर आजमा कर देखा और इसके परिणाम बेहद पॉजिटिव थे.
प्रोफेसर आंद्रिया गमबोट्टो ने बताया कि वैक्सीन का नाम पिटगोवैक (PittGoVacc) रखा गया है. प्रोफेसर आंद्रिया के अनुसार वैक्सीन के असर की वजह से चूहे के शरीर में ऐसे एंटीबॉडीज पैदा हो गए हैं जो कोरोना वायरस को रोकने में कारगर हैं. कोविड-19 कोरोना वायरस को रोकने के लिए जितने एंटीबॉडीज की जरूरत शरीर में होनी चाहिए, उतनी पिटगोवैक वैक्सीन पूरी कर रहा है.
पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन की टीम अगले कुछ महीनों में इस वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल शुरू कर देगी. इसके लिए वह अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन से नई दवा की मंजूरी की प्रक्रिया में हैं. यह वैक्सीन इंजेक्शन जैसी नहीं है बल्कि सामान्य वैक्सीन से बहुत अलग है.
यह एक चौकोर पैच जैसी है, जो शरीर के किसी भी स्थान पर चिपका दी जाती है. इस पैच का आकार उंगली के टिप जैसा है. इस पैच में 400 से ज्यादा छोटी-छोटी सुइयां है जो शक्कर से बनाई गई हैं. इसी पैच के जरिए उसमें मौजूद दवा को शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है. वैक्सीन देने का यह तरीका बेहद नया है और कारगर भी.
हालांकि, गमबोट्टो की टीम ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि इस एंटीबॉडी का असर चूहे के शरीर में कितनी देर तक रहेगा लेकिन टीम ने कहा कि हमने पिछले साल MERS वायरस के लिए वैक्सीन बनाई थी जो बेहद सफल थी.