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Winter Session of Parliament: आबादी 14.2 प्रतिशत फिर भी मुसलमान अल्पसंख्यक क्यों? बिहार के बीजेपी सांसद ने शीतकालीन सत्र में पूछा सवाल

Winter Session of Parliament: भाजपा सांसद भीम सिंह ने संसद में अल्पसंख्यकों की परिभाषा दोबारा तय करने की मांग करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर तय अल्पसंख्यक दर्जा कई राज्यों की वास्तविक जनसंख्या संरचना से मेल नहीं खाता।

1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Thu, 04 Dec 2025 04:10:28 PM IST

Winter Session of Parliament

- फ़ोटो Google

Winter Session of Parliament: भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री भीम सिंह ने संसद में अल्पसंख्यकों की परिभाषा फिर से तय करने की मांग की है। सोमवार को सदन में एक स्पेशल मेंशन के दौरान उन्होंने देश में “माइनॉरिटी” की मौजूदा परिभाषा पर चिंता जताई और सवाल उठाया कि जब देश में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.2 प्रतिशत है, तो उन्हें अल्पसंख्यक कैसे माना गया। उन्होंने अल्पसंख्यक दर्जे के मौजूदा स्वरूप और उससे उत्पन्न असमानताओं पर भी ध्यान दिलाया।


एक इंटरव्यू में भीम सिंह ने सरकार से राज्य-वार या जिले-वार आबादी के अनुपात के आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान तय करने की मांग की। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल तो हुआ है, लेकिन इसे परिभाषित नहीं किया गया। 1992 के नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज़ एक्ट के तहत केंद्र यह तय करता है कि अल्पसंख्यक कौन हैं। वर्तमान में छह समुदायों—मुस्लिम, सिख, पारसी, जैन, ईसाई और बौद्ध—को यह दर्जा दिया गया है।


उन्होंने ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक माने जाने वाले समुदाय कुछ राज्यों में बहुसंख्यक हैं। 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार, मुस्लिम आबादी देश में 14.2 प्रतिशत है, लेकिन कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में उनकी संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। उदाहरण के लिए, लक्षद्वीप में मुसलमानों की आबादी 96 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर में 69 प्रतिशत, असम में 34 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 27 प्रतिशत और केरल में 26 प्रतिशत है। भीम सिंह ने कहा कि हकीकत में कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा।


साथ ही उन्होंने क्रिश्चियन समुदाय का उदाहरण देते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी आबादी 2.3 प्रतिशत है, लेकिन कई राज्यों में वे अल्पसंख्यक नहीं हैं। उदाहरण के लिए, नागालैंड में क्रिश्चियन की आबादी 88 प्रतिशत, मिज़ोरम में 87 प्रतिशत, मणिपुर में 42 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 30 प्रतिशत और गोवा में 25 प्रतिशत है। इस आधार पर उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय स्तर की बड़ी परिभाषा और उन्हें अलग-अलग वेलफेयर स्कीम का लाभ देना उचित है।


बीजेपी सांसद ने कहा कि वह केंद्र सरकार से अनुरोध करेंगे कि इस मामले की समीक्षा की जाए और ऐसी नीति बनाई जाए जिसमें वास्तव में पिछड़े और जरूरतमंद समुदायों को प्राथमिकता मिले। उन्होंने कहा कि वह अल्पसंख्यक मंत्रालय को जल्द ही पत्र लिखेंगे और मांग करेंगे कि किसी इलाके में या तो लोकल आबादी के अनुपात के अनुसार अल्पसंख्यकों की पहचान की जाए, या फिर राष्ट्रीय स्तर पर केवल उन्हीं समुदायों को अल्पसंख्यक माना जाए जिनकी आबादी 2 प्रतिशत से कम है, जैसे सिख, बौद्ध, जैन और पारसी।