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1st Bihar Published by: Updated Tue, 21 Jun 2022 09:55:04 PM IST
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DESK: देश में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के नाम का एलान कर दिया है. दिल्ली में देर शाम बीजेपी संसदीय दल की बैठक के बाद पार्टी के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने प्रेस कांफ्रेंस की. नड्डा ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया गया है.
कौन हैं द्रौपदी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय है. वे देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हो सकती हैं. बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को मिलाकर बहुमत से कुछ कम वोट हैं लेकिन द्रौपदी मुर्मू के नाम पर बीजू जनता दल से लेकर कई औऱ पार्टियों का समर्थन मिल सकता है. बीजू जनता दल का समर्थन मिलना तो तय माना जा रहा है. दरअसल द्रौपदी मुर्मू ओडीसा की ही मूल निवासी है. लिहाजा उन्हें समर्थन देने में नवीन पटनायक पीछे नहीं रहेंगे. ये पहला मौका होगा जब उड़ीसा से कोई देश का राष्ट्रपति चुना जा रहा है.
उडीसा की द्रौपदी मुर्मू लंबे अर्से से बीजेपी से जुडी रही हैं. वे 2000 में बीजेपी के टिकट पर ओडिसा के रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनी गयी थीं. 2000 में ओडिसा में बीजू जनता दल और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनायी थी. द्रौपदी मुर्मू उस सरकार में मंत्री थीं. वे 2000 से 2004 तक ओडिसा की वाणिज्य एवं परिवहन विभाग में स्वतंत्र प्रभार की राज्य मंत्री रहीं. 2002 से 2004 तक उन्हें मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री का जिम्मा दिया गया था.
ओडिशा से पहली राज्यपाल
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 में द्रौपदी मुर्मू को झारखंड का राज्यपाल नियुक्ति किया था. वे झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रही. वो ऐसी पहली ओडिया नेता भी रहीं जिन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाया गया था. 2021 में उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था. अब उनका देश का राष्ट्रपति बनना लगभग तय माना जा रहा है.
भाजपा का आदिवासी कार्ड
आदिवासी समाज की महिला को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना कर बीजेपी ने बड़ा दांव खेला है. कई पार्टियों के लिए आदिवासी महिला उम्मीदवार का विरोध करना मुश्किल साबित होगा. बीजेपी को इससे वोटों का लाभ होता भी नजर आ रहा है. भाजपा को उम्मीद है कि द्रौपदी मुर्मू के सहारे वह देश भर में आदिवासी वोटरों को साध सकती है.
दरअसल प्रधानमंत्री मोदी के घर गुजरात में भी भाजपा अब तक आदिवासियों को साधने में सफल नहीं रही है. गुजरात में विधानसभा की 182 सीटों में 27 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व है. 27 रिजर्व सीटों में बीजेपी को 2007 में 13, 2012 में 11 और 2017 में 9 सीटें ही मिल पायी थीं. गुजरात में आदिवासियों की तादाद लगभग 14 फीसदी है और वे 50 से ज्यादा सीटों पर जीत-हार तय करते हैं. उधर झारखंड में विधानसभा की कुल 81 सीटों में 28 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2014 में भाजपा इनमें से 11 और 2019 में 2 ही जीत सकी थी. उधर मध्य प्रदेश में 230 सीटों में से 84 पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. 2013 में भाजपा इनमें से 59 सीटें जीत पायी थी जबकि 2018 में सिर्फ 34 मिल पायी थीं. ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र में भी है.