PATNA : 23 मार्च 2020 की तारीख बिहार विधानसभा के लिए किसी काले अध्याय से कम नहीं. बिहार विधान मंडल के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि लोकतंत्र के इस मंदिर में विधायक पीटे जाएं. सदन के अंदर हो हंगामा, नोकझोंक, तकरार या हाथापाई से लेकर तमाम ऐसे मौके आए हैं. जब सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने टकराते नजर आए. सदन के अंदर हंगामा करने वाले विधायकों को मार्शल आउट कराने की तस्वीरें भी कई बार देखने को मिली है. लेकिन पहली बार 23 मार्च को जो कुछ इस सदन ने देखा वह हैरत से पैदा करने वाला था.
बजट सत्र के दौरान सरकार को बिहार सशस्त्र पुलिस बल विधेयक 2021 पास कराना था. इस विधेयक को लेकर विपक्ष को कुछ आशंकाएं थी और इसीलिए सदन में विपक्ष ने हंगामा शुरू किया था. हंगामे के कारण कई बार सदन की कार्यवाही उस दिन स्थगित करनी पड़ी थी. उसके बाद विपक्षी सदस्यों ने विधानसभा अध्यक्ष को उनके कमरे में बंधक बना लिया था. बाद में प्रशासन की मदद ली गई थी और बाहर से आए पुलिस के जवानों अधिकारियों और प्रशासनिक लोगों ने विधायकों को जबरन सदन से बाहर निकाला था.
इस दौरान जो तस्वीरें देखने को मिली थी, उसने बिहार में लोकतंत्र को शर्मसार किया था. लात और जूते से विधायक पीते गए थे हर विधायक को पीटते हुए पुलिस के जवान और अधिकारी पीते हुए नजर आ रहे थे. लगभग दो दर्जन विधायकों को मारपीट कर बाहर निकाला गया था. लेकिन अब इस मामले में महीनों बाद जब कार्यवाही हुई. तो केवल दो सिपाहियों पर गाज गिरी है. सरकार ने इस मामले में दो सिपाहियों शेषनाथ और रंजीत कुमार को निलंबित किया है. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर यह कार्यवाही बताई जा रही है.
हालांकि तमाम मीडिया चैनल्स और फुटेज में कई पुलिस के बड़े अधिकारी दारोगा से लेकर डीएसपी तक के विधायकों को पीटते नजर आ रहे थे. लेकिन इस सब के बावजूद किसी भी पुलिस पदाधिकारी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई. केवल दो सिपाहियों शेषनाथ और रंजीत कुमार को बलि का बकरा बना दिया गया. जाहिर है विधायकों की पिटाई के मामले में जो कार्यवाही हुई है. उससे विपक्ष शायद ही संतुष्ट नजर आए. इस कार्यवाही को लेकर विपक्षी विधायकों के बीच संतोष की बजाय असंतोष उभर सकता है.
विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि "मैंने जांच के बाद पुलिस महानिदेशक और सचिव को कार्रवाई का निर्देश दिया था. इस प्रकार का किया गया कार्य पुलिस की छवि को भी धूमिल करता है. इसलिए दोनों पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं को भी विधायिका के नियम कानून का पालन करना चाहिए. मेरी हमेशा से कोशिश रही है कि माननीय सदस्यों की प्रतिष्ठा पर कभी आंच नहीं आये."