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बिहार में सृजन जैसा एक और घोटाला? मुजफ्फरपुर भू-अर्जन कार्यालय में बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गयी, बैंक खाते और कैशबुक में 125 करोड़ का अंतर

बिहार में सृजन जैसा एक और घोटाला? मुजफ्फरपुर भू-अर्जन कार्यालय में बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गयी, बैंक खाते और कैशबुक में 125 करोड़ का अंतर

MUZAFFARPUR: क्या बिहार में भागलपुर के सृजन जैसा एक और घोटाला हो गया है? मुजफ्फरपुर में भू-अर्जन कार्यालय के ऑडिट के बाद ऐसी ही आशंका जतायी जा रही है। मुजफ्फरपुर भू-अर्जन कार्यालय के ऑडिट रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ी सामने आयी है। महालेखाकार ने जिला भू-अर्जन कार्यालय के रोकड़ बही औऱ बैंक खातों की पड़ताल की तो पता चला कि दोनों में सवा सौ करोड़ रूपये का अंतर है. ऑडिट रिपोर्ट में कई और बड़ी गड़बड़ी सामने आय़ी है. महालेखाकार ने फिलहाल जिला भू-अर्जन पदाधिकारी से जवाब मांगा है।


125 करोड़ का घोटाला?

पहले आपको बता दें कि भू-अर्जन कार्यालय होता क्या है. दरअसल किसी जिले के भू-अर्जन कार्यालय का काम होता है सरकारी योजनाओं के लिए जमीन का अधिग्रहण करना और उसके एवज में जमीन मालिक को मुआवजा देना. सरकार ने इसके लिए लगभग हर जिले में अरबों रूपये भेज रखा है. मुजफ्फरपुर में भू-अर्जन कार्यालय का महालेखाकार ने ऑडिट किया तो ढेर सारी कलई खुल गयी. महालेखाकार की टीम ने ऑडिट के दौरान पाया कि भू-अर्जन कार्यालय के रोकड़ पंजी यानि रजिस्टर में जितना पैसा बैंक में जमा होने की बात दर्ज है वह गलत है. बैंक खाते में जितना पैसा जमा है औऱ रजिस्टर में जो दर्ज है उसमें 125 करोड़ का अंतर है. 


रजिस्टर में दर्ज राशि की तुलना में बैंक अकाउंट में काफी कम पैसे मिले. वहीं भू-अर्जन के दो बैंक खाते ऐसे भी मिले, जिसमें रजिस्टर में दर्ज पैसे से काफी ज्यादा रकम जमा है. भू-अर्जन कार्यालय का रजिस्टर बता रहा था कि रामबाग स्थित एक बैँक के खाते में 53 करोड़ रुपये जमा है. लेकिन जब ऑडिट टीम ने बैंक खाते की जांच की तो पता चला कि उसमें 63 करोड़ रूपये जमा हैं. यह खाता मुजफ्फरपुर-सुगौली रेल लाइन परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण से संबंधित है. उसी बैंक में भू-अर्जन के एक दूसरे खाते में भी ऐसी ही गडबड़ी मिली. ये एनएच-77 के लिए जमीन अधिग्रहण के पैसे जमा करने के लिए खोला गया है. 


बैंक खाते खोलने में भी कारस्तानी

बिहार सरकार के वित्त विभाग ने साफ दिशा निर्देश दे रखा है कि किसी भी कार्यालय का एक ही बैंक खाता होगा औऱ सारे लेन देन उसी खाते से होंगे. लेकिन महालेखाकार की टीम को भू अर्जन कार्यालय में बैंक खातों की कुल 47 रजिस्टर यानि रोकड़ बही मिले. इसका मतलब ये हुआ कि भू-अर्जन कार्यालय के 47 बैंक अकाउंट हैं. लेकिन जब ऑडिट टीम ने छानबीन की तो पता चला कि भू-अर्जन कार्यालय के 47 नहीं 48 बैंक खाते हैं. इतना ही नहीं, वित्त विभाग ने साफ निर्देश दे रखा है कि सरकारी बैंकों में खाता खोला जाये लेकिन भू-अर्जन कार्यालय ने निजी बैंकों में कई खाते खोलकर उसमें पैसे रखे हैं. 


महालेखाकार की ऑडिट टीम ने कहा है कि रजिस्टर औऱ बैंक खातों में पड़े पैसे में 125 करोड़ का अंतर है. उस पर भू-अर्जन कार्यालय से जवाब मांगा गया था लेकिन जो सफाई दी गयी है, उसका कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया है. भू-अर्जन पदाधिकारी ने ऑडिट टीम को बताया कि योजनाओं की बची हुई राशि को संबंधित विभागों को लौटा दिया गया है, जिसका हिसाब रखने में चूक हुई है. लेकिन पैसा लौटाया गया है उसका कोई साक्ष्य ऑडिट टीम को उपलब्ध नहीं कराया गया. 


उधर भू-अर्जन पदाधिकारी कह रहे हैं कि कोई गडबडी नहीं है. मुजफ्फरपुर के जिला भू-अर्जन पदाधिकारी मो. उमैर ने बताया कि महालेखाकार की ऑडिट सामान्य प्रक्रिया है. महालेखाकार की ऑडिट टीम ने जो आपत्तियां जतायी हैं उनका अध्ययन किया जा रहा है. इसके बाद उन्हें जवाब दिया जायेगा.