PATNA : नेतृत्व और विचारधारा के नाम पर वोटरों को लुभाने वाली राजनीतिक पार्टियों को चुनाव में जीत के लिए सबसे ज्यादा भरोसा प्रचार पर है। यही वजह है कि तमाम राजनीतिक दल चुनाव में विज्ञापन और इसके प्रचार-प्रसार पर सबसे ज्यादा रकम खर्च करते हैं। बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले नेशनल इलेक्शन वॉच यानी एडीआर ने जो ताजा रिपोर्ट जारी की है वह चौंकाने वाला है। एडीआर ने 2015 के विधानसभा चुनाव को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार में तमाम राजनीतिक दलों ने चुनाव के दौरान कितना पैसा इकट्ठा किया और फिर उसे कहां खर्च किया।
एडीआर की रिपोर्ट में बताया गया है कि सभी राजनीतिक दलों ने बिहार विधानसभा चुनाव में कितनी रकम किस जगह पर खर्च की। राजनीतिक दलों की तरफ से प्रचार यात्रा खर्च अन्य तरह के खर्च और उम्मीदवारों पर किए गए कर्ज के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। इस रिपोर्ट में से राष्ट्रीय दलों के अलावा 9 रीजनल पार्टियों का डाटा रखा गया है। एडीआर ने साल 2015 के सितंबर से नवंबर तक के बीच इस रिपोर्ट को तैयार किया। सभी राजनीतिक दलों का डाटा इस बार का सबूत है कि प्रचार और विज्ञापन पर सबसे ज्यादा भरोसा दिखाया गया। नीतियों और नेतृत्व की बात करने वाले राजनीतिक दल बिना प्रचार के जनता के बीच जाने का साहस नहीं जुटा पाए। चुनाव खत्म होने के बाद सभी राजनीतिक दलों ने आयोग को अपनी तरफ से खर्च का ब्योरा उपलब्ध कराया। इस रिपोर्ट में बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, बीएसपी, सीपीआई एम, सीपीआई, आरएलएसपी, एलजेपी, जेडीयू, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, आरएलडी जैसी प्रमुख पार्टियां शामिल हैं। 15 राजनीतिक दलों ने 2015 के विधानसभा चुनाव में कुल 151.28 करोड़ की राशि इकट्ठा की और इनमें से 150.99 करोड रुपए चुनाव में खर्च कर दिए। इन राजनीतिक दलों के केंद्रीय मुख्यालय की तरफ से 130.45 करोड़ की आय जमा की गई और 126.19 करोड रुपए खर्च किए गए। बिहार राज्य की इकाइयों वाली पार्टियों ने 24.80 करोड रुपए चुनाव पर खर्च किए।
एडीआर की इस रिपोर्ट में सबसे अहम पहलुओं की चर्चा करें तो इन तमाम राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार पर 74.97 करोड़ों रुपए खर्च किए गए। यात्रा के ऊपर पांच से 59.32 करोड रुपए, उम्मीदवारों के ऊपर 46 करोड़ से ज्यादा और अन्य तरह के खर्च इन 9 करोड़ से थोड़ा ज्यादा किये गए। चुनावी खर्च में प्रतिशत की बात करें तो प्रचार पर सबसे ज्यादा उन 39.23 फ़ीसदी खर्च किया गया। राजनीतिक दलों ने मीडिया में प्रचार के लिए सबसे ज्यादा 41.025 करोड़ रुपए खर्च किए। प्रचार सामग्री के ऊपर 22 करोड़ से थोड़ी ज्यादा रकम और सार्वजनिक बैठकों पर तकरीबन 11 करो रुपए खर्च किया गया था। प्रचार और प्रसार पर किया गया मोटा खर्च यह बता रहा है कि अब वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दल पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। नेतृत्व के नाम पर चेहरा भले ही किसी का आगे कर दिया जाए, घोषणा पत्र में भले ही पार्टियों की नीतियां घोषित कर दी जाए लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक दलों को यह मालूम है कि बिना प्रचार के वोटर उनकी तरफ नहीं झुकेगा।