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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 05 Apr 2025 07:35:04 AM IST
प्रतीकात्मक - फ़ोटो Meta
Parenting Tips: एक सच यह भी है कि बच्चे का आत्मविश्वास, खुशहाली और बेहतर भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उनके माता-पिता उनके साथ कैसा रिश्ता रखते हैं। हेल्दी पेरेंटिंग न सिर्फ बच्चों की पर्सनैलिटी को निखारती है, बल्कि उन्हें जिंदगी में हर कदम पर कॉन्फिडेंस से भर देती है। तो चलिए जानते हैं उन चार आदतों के बारे में, जो पेरेंट्स अगर अपना लें तो उनके बच्चे बनते हो जाते हैं आत्मविश्वास से लबरेज।
मेहनत की तारीफ करें
कई बार पेरेंट्स सिर्फ बच्चों के रिजल्ट्स की तारीफ करते हैं, जैसे अच्छे नंबर आए तो वाहवाही, नहीं तो नाराजगी। लेकिन ऐसा करने से बच्चे असफलता से डरने लगते हैं। इसके बजाय, उनकी कोशिशों की सराहना करें। अगर बच्चे ने परीक्षा में कम नंबर लाए, लेकिन तैयारी में जी-जान लगाई, तो उसकी मेहनत को शाबाशी दें। इससे वे गलतियाँ करने से नहीं हिचकते और हर बार बेहतर करने की हिम्मत जुटाते हैं। यह आदत बच्चों में आत्मविश्वास की नींव डालती है।
बिना शर्त प्यार दिखाएँ
कई पेरेंट्स बच्चों पर तभी प्यार जताते हैं, जब वे "गुड बॉय" या "गुड गर्ल" का टैग पाते हैं। गलती होने पर प्यार में कमी या डाँट-फटकार से बच्चे डरपोक बन जाते हैं। वे हर किसी को खुश करने की कोशिश में लग जाते हैं, जिसे पीपल-प्लीजिंग कहते हैं। लेकिन जो पेरेंट्स बिना किसी शर्त के प्यार देते हैं.. गलती होने पर भी गले लगाते हैं.. उनके बच्चे न सिर्फ खुश रहते हैं, बल्कि आत्मविश्वास से भरे होते हैं। ऐसा प्यार उन्हें यह सिखाता है कि वे जैसे हैं, वैसे ही कीमती हैं।
साइलेंट ट्रीटमेंट से बचें
कई बार पेरेंट्स बच्चों की गलती पर चुप्पी साध लेते हैं। न बात करते हैं, न समझाते हैं, बस एक ठंडा रवैया अपनाते हैं। यह साइलेंट ट्रीटमेंट बच्चों को मानसिक रूप से परेशान करता है। वे सोचते रहते हैं कि उनसे क्या गलत हुआ। इसके बजाय, जो पेरेंट्स गलती पर खुलकर बात करते हैं, बच्चों को उनकी भूल बताते हैं और रास्ता दिखाते हैं, उनके बच्चे मानसिक रूप से मजबूत बनते हैं। ऐसे बच्चे जिंदगी की हर चुनौती को कॉन्फिडेंस के साथ पार करते हैं।
भावनाओं को खुलने दें
कई पेरेंट्स बच्चों से कहते हैं, “रोना मत,” या “गुस्सा मत करो।” लेकिन भावनाओं को दबाने से बच्चे अंदर ही अंदर घुटते हैं। जो माता-पिता अपने बच्चों को अपनी खुशी, गुस्सा, डर या उदासी खुलकर जाहिर करने की आजादी देते हैं, उनके बच्चे हर इमोशन को समझना और उससे निपटना सीखते हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है, क्योंकि वे अपनी भावनाओं के मालिक बनते हैं। यह आदत बच्चों को जिंदगी में हर हाल में मजबूत बनाती है।