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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 24 Nov 2025 01:44:51 PM IST
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया - फ़ोटो GOOGLE
Last Working Day CJI Gavai: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई का शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में आखिरी कार्य दिवस रहा। उनके सम्मान में कोर्ट रूम–1 में सेरेमोनियल बेंच का गठन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज, सीनियर एडवोकेट्स और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रतिनिधि मौजूद रहे। इस मौके ने पूरे न्यायिक परिवार को भावुक कर दिया। गवई 23 नवंबर को आधिकारिक रूप से सेवानिवृत्त हो रहे हैं और इसी के साथ उनके 6 महीने और 10 दिनों के कार्यकाल का अंत हुआ।
बीआर गवई का कार्यकाल भले ही अल्पकालिक रहा हो, लेकिन उनकी पहचान एक प्रगतिशील, संतुलित और संविधानवादी दृष्टिकोण रखने वाले CJI के रूप में रही। वे भारत के 52वें चीफ जस्टिस थे और इस पद पर पहुंचने वाले पहले बौद्ध तथा दूसरे दलित समुदाय के न्यायाधीश बने। उनके कार्यकाल के दौरान कई संवैधानिक और सामाजिक महत्व के मामलों की सुनवाई हुई, जिनमें चुनावी सुधार, प्रशासनिक दायित्व, नागरिक अधिकार और कई पीआईएल शामिल थे।
विदाई समारोह में भावनाओं का उमड़ना
विदाई समारोह के दौरान कई सीनियर एडवोकेट्स ने गवई के विनम्र स्वभाव, न्यायपरक दृष्टिकोण और कोर्ट के अंदर शांतिपूर्ण माहौल बनाए रखने को सराहा। इस मौके पर एक दिलचस्प घटना उस समय हुई, जब कुछ वकील उनकी विदाई में फूलों की पंखुड़ियां छिड़कने लगे। जैसे ही CJI गवई ने इसे देखा, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- "नहीं... नहीं, मत फेंकिए… इसे कोर्ट मास्टर को सौंप दीजिए।" उनकी यह प्रतिक्रिया वहां मौजूद सभी लोगों को मुस्कुराने पर मजबूर कर गई और कोर्ट रूम भावनाओं और सम्मान से भर उठा।
“प्रत्येक पद सत्ता का पद नहीं, राष्ट्र सेवा का अवसर है”
गवई ने अपने समापन भाषण में कहा कि उन्होंने हमेशा पद को शक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि देश और संविधान की सेवा करने का अवसर माना। उन्होंने कहा कि उनके जीवन और न्याय की समझ को दिशा देने में डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनके पिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए उन्होंने हर बार कानून के शासन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सर्वोपरि रखा। गवई ने संतुलित न्याय व्यवस्था की महत्ता पर जोर देते हुए कहा- “मेरी कोशिश हमेशा रही कि मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों के बीच आवश्यक संतुलन बना रहे।”
बार को बताया अपना गुरु
उन्होंने कहा कि अपने पूरे करियर में उन्होंने “बार” यानी वकीलों को अपना गुरु माना। उन्होंने कहा कि वकील और न्यायाधीश दोनों ही न्याय व्यवस्था के स्तंभ हैं और एक-दूसरे के प्रति सम्मान व विश्वास के बिना न्याय नहीं हो सकता। गवई ने कहा कि वह अपने कार्यकाल से संतुष्ट हैं और उन्हें गर्व है कि उन्होंने एक निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनकर देश की सेवा की।
गवई का कार्यकाल और प्रमुख पड़ाव
गवई का जन्म 24 नवंबर 1959 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ। उनके पिता रमेश गवई, एक प्रसिद्ध दलित नेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। गवई ने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और जल्दी ही अपनी कानूनी प्रतिभा और लेखन कौशल की वजह से चर्चित वकील बन गए।
उनकी नियुक्ति 1994 में बॉम्बे हाई कोर्ट में वकील, 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज और 14 मई 2025 में भारत के 52वें चीफ जस्टिस बनें। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पर्यावरण, शासन, मानवाधिकार और प्रशासनिक सुधार से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई की।
अब पदभार संभालेंगे जस्टिस सूर्यकांत
गवई की सेवानिवृत्ति के बाद जस्टिस सूर्यकांत देश के 53वें चीफ जस्टिस होंगे। वे 23 नवंबर को पदभार ग्रहण करेंगे और उनका कार्यकाल फरवरी 2027 तक रहेगा। उनके सामने SIR, तलाक-ए-हसन, वक्फ एक्ट, वायु प्रदूषण, और कई बड़े संवैधानिक मामलों की चुनौती रहेगी।