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Chakai Election Pattern : 58 साल से नहीं टूटा चकाई विधानसभा का तिलिस्म, हर बार बदलता है विधायक लेकिन दो ही परिवार रखते हैं सत्ता की चाबी

चकाई विधानसभा अपनी अनोखी चुनावी परंपरा के लिए मशहूर है, जहां पिछले 35 वर्षों से कोई भी विधायक लगातार दोबारा नहीं जीत पाया। 2025 में भी यह तिलिस्म नहीं टूटा और सत्ता दो ही परिवारों के बीच घूमती रही।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 16 Nov 2025 03:20:05 PM IST

Chakai Election Pattern : 58 साल से नहीं टूटा चकाई विधानसभा का तिलिस्म, हर बार बदलता है विधायक लेकिन दो ही परिवार रखते हैं सत्ता की चाबी

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Chakai Election Pattern : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड लहर के बावजूद जमुई जिले की चकाई विधानसभा सीट ने एक बार फिर अपना पुराना रिकॉर्ड बरकरार रखा है। इस सीट का चुनावी तिलिस्म आज भी वैसा ही है जैसा 35 साल पहले था—यहां कोई भी विधायक लगातार दोबारा जीत दर्ज नहीं कर पाता। साल 1990 से शुरू हुआ यह सिलसिला इस बार भी नहीं टूटा और चकाई की जनता ने फिर अपना विधायक बदल दिया।


चकाई की पहचान हमेशा से एक दिलचस्प और अनोखे चुनावी रुझान वाली सीट के रूप में रही है। यहां पिछले आठ चुनावों में एक भी बार कोई विधायक अपनी सीट नहीं बचा पाया। हर चुनाव में यहां के मतदाता नए चेहरे को मौका देते हैं, और इस बार भी उन्होंने उसी परंपरा को आगे बढ़ाया। पूरे बिहार में एनडीए ने 200 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की, जमुई जिले की अन्य तीन सीटें भी एनडीए के खाते में गईं, लेकिन चकाई ने इस जीत की लहर को भी स्वीकार नहीं किया। नतीजा—एक बार फिर इस सीट पर बदलाव की मुहर लग गई।


इस बार चकाई सीट जदयू के हिस्से में आई थी, और पार्टी ने यहां से मंत्री सुमित कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया था। उनके मुकाबले मैदान में थीं राजद प्रत्याशी सावित्री देवी, जो पूर्व विधायक फाल्गुनी यादव की पत्नी हैं। कड़ा मुकाबला देखने को मिला, लेकिन अंततः सावित्री देवी ने 12,927 मतों के अंतर से जीत हासिल कर एक बार फिर यह सीट अपने परिवार के नाम कर दी। चाहे राजनीतिक समीकरण बदले हों या पार्टियां, लेकिन 1990 के बाद से कोई भी विधायक दोबारा इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाया है।


चकाई की एक और अनोखी बात यह है कि यहां हर चुनाव में विधायक तो बदलता है, लेकिन सत्ता की चाबी बरसों से दो ही परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। अब तक के 14 विधायक केवल इन्हीं दो राजनीतिक घरानों से रहे हैं। पहला परिवार श्रीकृष्ण सिंह का, जो 1967 में पहली बार विधायक बने। उनके बाद उनके पुत्र नरेंद्र सिंह ने वर्षों तक इस सीट पर राज किया। फिर उनके दोनों बेटे—अभय सिंह और सुमित कुमार सिंह—भी विधायक चुने गए।


दूसरा प्रभावशाली परिवार है फाल्गुनी प्रसाद यादव का। फाल्गुनी यादव कभी भाजपा से चुनाव जीतते रहे, और उनके निधन के बाद उनकी पत्नी सावित्री देवी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। वर्षों से यह सीट दोनों परिवारों के बीच ही घूमती रही है और इस बार भी ऐसा ही हुआ। हालांकि बीच-बीच में तीसरे विकल्प सामने आते रहे। कई उम्मीदवारों ने इन दो घरानों के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश भी की, लेकिन सफलता किसी को नहीं मिली। 


2020 के चुनाव में जदयू ने संजय प्रसाद को टिकट दिया था, लेकिन वह हार गए। इस बार उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और 48 हजार वोट हासिल किए। मजबूत प्रदर्शन के बावजूद वे तीसरे स्थान पर रहे और दोनों परिवारों के बीच चल रही राजनीतिक परंपरा को तोड़ नहीं सके।


चकाई की एक और दिलचस्प राजनीतिक सच्चाई यह है कि जदयू आज तक यहां जीत हासिल नहीं कर सकी है। पार्टी के उम्मीदवार अक्सर मजबूत होते हैं, लेकिन यहां की जनता पार्टी से ज्यादा चेहरों पर भरोसा दिखाती है। 2020 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सुमित कुमार सिंह जीते थे। इससे पहले 2015 में वह झामुमो के टिकट पर MLA बने। उनके भाई अभय सिंह लोजपा से चुनाव जीतते रहे, जबकि उनके पिता नरेंद्र सिंह कभी कांग्रेस, कभी जनता दल और कभी निर्दलीय जीत दर्ज करते रहे।


इसी तरह फाल्गुनी यादव भाजपा से चुनाव जीतते रहे, और अब उनकी पत्नी सावित्री देवी राजद से लगातार जीत दर्ज कर रही हैं। 1972 को छोड़ दें तो पिछले 58 सालों में यह सीट हमेशा इन्हीं दो परिवारों के पास रही है। चकाई विधानसभा अपनी राजनीतिक परंपरा, अपराजेय तिलिस्म और हर चुनाव में बदलते फैसलों के लिए पूरे बिहार में एक मिसाल बन चुकी है। 2025 के चुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया कि चकाई की जनता बदलाव पसंद करती है, लेकिन सत्ता की चाबी फिर भी उन्हीं दो परिवारों के हाथों में रहती है।