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11-Feb-2025 07:10 AM
Shiv Puja: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा में उनकी प्रिय वस्तुओं को अर्पित करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि जब भक्त अपने ईष्ट देवता को उनकी प्रिय वस्तुएँ अर्पित करते हैं, तो देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। हर देवता की पूजा में कुछ वस्तुएँ अनिवार्य होती हैं, वहीं कुछ वस्तुएँ वर्जित भी होती हैं। एक ऐसा ही उदाहरण है – केतकी का फूल।
केतकी का फूल: भगवान विष्णु की प्रिय लेकिन शिव पूजा में निषिद्ध
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के प्रिय केतकी का फूल एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता विवाद के दौरान एक विवादास्पद घटना का हिस्सा बन गया। ब्रह्मा और विष्णु ने अपनी-अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए तर्क-वितर्क किया। इस विवाद को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक विशाल ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की, जो आकाश से पाताल तक फैला हुआ था। शिव जी ने घोषणा की कि जो इस ज्योतिर्लिंग का आरंभ और अंत खोज लेगा, वही सर्वश्रेष्ठ कहलाएगा।
भगवान विष्णु ने ज्योतिर्लिंग का अंत खोजने के लिए नीचे की ओर यात्रा शुरू की, जबकि ब्रह्मा जी ने इसके आरंभ को जानने की कोशिश की। विष्णु जी ने अंततः स्वीकार कर लिया कि उन्हें इसका अंत ज्ञात नहीं हो पाया और शिव जी के पास लौट आए। इस अवसर पर ब्रह्मा जी ने झूठी गवाही दी और केतकी का फूल अपनी गवाह के रूप में प्रस्तुत किया। इस असत्य के कारण भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दे दिया कि आज से यह फूल कभी भी उनकी पूजा में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
भगवान शिव की पूजा में प्रिय वस्तुएँ और नियम
भगवान शिव की पूजा में कुछ वस्तुएँ विशेष महत्व रखती हैं, जैसे:
बेल पत्र: शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
धतूरा: यह एक विशेष औषधीय पौधा है जिसे शिव पूजा में उपयोग किया जाता है।
आक के फूल: कुछ आक के फूल भी शिव की पूजा में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
भांग: भांग चढ़ाने का भी विशेष महत्व है।
इनके विपरीत, केतकी का फूल, जिसे भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है, भगवान शिव की पूजा में निषिद्ध है। यह नियम न केवल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, बल्कि पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन मिलता है।
महाशिवरात्रि और पूजा की परंपरा
महाशिवरात्रि भगवान शिव का प्रमुख पर्व है, जिसे अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व भक्तों के लिए शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, दही, घी और बेल पत्र चढ़ाने का विशेष अवसर प्रदान करता है। इस दिन, भक्तगण रात भर जागरण करते हैं, व्रत रखते हैं, और रुद्राभिषेक करते हैं। पूजा में यदि गलती से केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित कर दिया जाए, तो इसे पूजा विधि का उल्लंघन माना जाता है और भक्तों के मनोकामना पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
हनुमान जी की पूजा में भक्ति, श्रद्धा और मन की शुद्धता की महत्ता के साथ-साथ, हिंदू धार्मिक परंपरा में देवताओं को उनकी प्रिय वस्तुओं का अर्पण करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान शिव की पूजा में केतकी का फूल निषिद्ध होने के पीछे पौराणिक कथा का एक महत्वपूर्ण पहलू छुपा है, जिसमें ब्रह्मा और विष्णु के विवाद के दौरान हुई गलती को दर्शाया गया है। इस प्रकार, महाशिवरात्रि जैसे अवसरों पर भक्तों को सावधानीपूर्वक पूजा विधि का पालन करना चाहिए, जिससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त हो सके और जीवन में आने वाले सभी संकटों का निवारण हो सके।