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30-Jan-2025 07:56 PM
By First Bihar
Bhishma Ashtami 2025: भीष्म अष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जब भीष्म पितामह ने इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होने के बाद अपने प्राणों का त्याग किया था। इस दिन एकोदिष्ट श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व होता है।
भीष्म अष्टमी का महत्व
भीष्म पितामह का जीवन त्याग, धर्म और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक था। उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और हस्तिनापुर के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी। महाभारत युद्ध के दौरान वे अर्जुन के बाणों से घायल होकर शरशय्या पर लेट गए थे और सूर्य के उत्तरायण होने तक अपने प्राणों का त्याग नहीं किया। उनकी इस महान आत्मा की शांति के लिए भीष्म अष्टमी के दिन विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
भीष्म अष्टमी कब मनाई जाती है?
माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था, इसलिए हर साल यह तिथि उनके श्राद्ध और तर्पण के लिए समर्पित होती है। सनातन धर्म में इस दिन विशेष रूप से पितरों के उद्धार के लिए तर्पण करने की परंपरा है।
भीष्म अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष भीष्म अष्टमी 5 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। तिथि का प्रारंभ 5 फरवरी की रात 2:30 बजे होगा और समापन 6 फरवरी की रात 12:35 बजे होगा।
श्राद्ध और तर्पण का शुभ समय:
सुबह 11:30 बजे से दोपहर 1:41 बजे तक
इस दिन के विशेष अनुष्ठान और पूजन विधि
स्नान और संकल्प: प्रातः काल पवित्र नदी या जल में स्नान करें और भीष्म पितामह को समर्पित व्रत एवं तर्पण का संकल्प लें।
तर्पण और पिंडदान: इस दिन विशेष रूप से जल में तिल और कुश डालकर तर्पण किया जाता है। जिन लोगों को संतान नहीं होती, वे इस दिन श्राद्ध करने से पितृ दोष से मुक्ति पा सकते हैं।
भगवान विष्णु और भीष्म पितामह की पूजा: इस दिन श्रीहरि विष्णु का पूजन भी विशेष रूप से किया जाता है।
ब्राह्मण और जरुरतमंदों को भोजन कराना: इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराना और दान-पुण्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
भीष्म अष्टमी का आध्यात्मिक संदेश
भीष्म अष्टमी का पर्व हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह दर्शाता है कि व्यक्ति कितना भी महान और शक्तिशाली क्यों न हो, गलत कार्यों का समर्थन करना उसे भी पाप का भागी बना सकता है। भीष्म पितामह ने कौरवों का साथ देकर यह अनुभव किया कि निष्क्रियता भी अधर्म का समर्थन बन सकती है।
इसलिए, भीष्म अष्टमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा में ले जाने की प्रेरणा देने वाला पर्व भी है। इस दिन विधिपूर्वक किए गए तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।