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20-Jul-2023 11:03 AM
By First Bihar
DESK : अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। इस चुनाव को लेकर जहां विपक्षी दल एक नए गठबंधन का गठन कर चुकी है तो वहीं सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी भी अब एक्शन मोड में नजर आने लगी है। इस बार के चुनाव के लिए बीजेपी ने विशेष रूप से ओबीसी और दलित फैक्टर पर निशाना साधा है। इसके साथ ही भाजपा इस बार मुख्य रूप से यूपी और बिहार पर नजर आ रही है। इसकी वजह है कि यहां की राजनीति सीधा सत्ता की कुर्सी तय कर डालती है।
दरअसल, 18 जुलाई को जब विपक्षी दलों के तरफ से मोदी सरकार को सत्ता की कुर्सी से हटाने के लिए इंडिया का गठन किया जा रहा था तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र की भाजपा सरकार एनडीए कुनबे को पहले से अधिक मजबूत करने में जुटी हुई थी। हालांकि, भाजपा इससे पहले ही तोड़ जोड़ की राजनीति करने में जुटी हुई थी यही वजह है कि पिछले 1 महीनों के अंदर भाजपा ने विशेष रूप से दलित और ओबीसी समुदाय के नेताओं पर मुख्य ध्यान दिया है। जहां भाजपा उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान को अपने साथ लाया और बिहार से उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान को अपने साथ लाई है।
अब सबसे बड़ी बात है कि इन लोगों को साथ लाने का पीछे का भाजपा का मुख्य प्लान क्या है ? तो इन सवालों का जवाब यही है कि भाजपा इस बार के लोकसभा चुनाव में 50% से अधिक ओबीसी और दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में चाहती है। क्योंकि, भाजपा को यह भलीभांति मालूम है कि सवर्णों पर अभी भी उसका जादू चलता है। ऐसे में भाजपा यदि देश के दलित और ओबीसी समुदाय के 50% बहुत पर अपना अधिकार जमाती है तो फिर उसके लिए इस बार सत्ता की कुर्सी काफी दूर नहीं रहने वाली है।
अगर हम बात करें, बिहार में ओबीसी वोट बैंक की तो यहां कुल 51% वोट बैंक है, वह उत्तर प्रदेश में आधी आबादी पर ओवैसी समुदाय का कब्जा है। ऐसे में इन दोनों जगहों पर अगर भाजपा को मिलाकर कुल 40% वोट बैंक भी आ जाता है तो फिर भाजपा के लिए यह सोने पर सुहागा वाली स्थिति होने वाली है।राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बिहार में अकेले आधे जनसंख्या पर ओबीसी समुदाय का दबदबा रहने के कारण ही भाजपा ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चयन भी इसी फार्मूले को ध्यान रखते हुए किया है। साथ ही साथ जो वोट बैंक नीतीश कुमार के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था लव- कुश समीकरण उसमें भी भाजपा ने सेंधमारी करते हुए इस समीकरण को अपने पक्ष में कर लिया है। वहीं उत्तर प्रदेश में दो बड़े नेताओं को एनडीए में शामिल करने से भाजपा ने कम से कम वहां 15 से 16% अधिक वोट बैंक में सेंधमारी कर डाली है।
आपको बताते चलें कि, 2024 की लड़ाई में बीजेपी का फोकस यूपी की 80 में से 80 लोकसभा सीटों को जीतने पर है। इस लिहाज से बीजेपी ने इन दोनों नेताओं को अपने पाले में किया है। निषाद पार्टी, अपना दल पहले से ही बीजेपी की सहयोगी है। 2019 के लोकसभा चुनाव गाजीपुर (मनोज सिन्हा) और घोसी सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था, जबकि मछलीशहर और बलिया सीट पर बड़ी मुश्किल से जीत हो सकी थी। पार्टी की कोशिश है कि राजभर और चौहान के जरिए इन सभी सीटों पर सम्मानजनक तरीके से कब्जा किया जाय और पूरे राज्य में भगवा लहर पैदा की जाय।
वहीं, बिहार में भी पार्टी इस बार अपने चार सहयोगियों के साथ मिलकर बिहार में 40 लोकसभा सीट पर कब्ज़ा जमाना चाहती है। यहां वर्तमान में भाजपा के अकेले 17 लोकसभा सांसद हैं जबकि उनके सहयोगियों को मिला दे हैं तो भाजपा के पास सांसदों की संख्या 23 है। जिसमें पशुपति पारस गुट के नेता और चिराग पासवान का नाम शामिल है। ऐसे में अब जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ आने इस संख्या में बढ़ोतरी की संभावना नजर आ रही है।