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15-Mar-2022 04:40 PM
PATNA: बिहार विधानसभा ने सोमवार को अपने 101 साल के इतिहास का सबसे काला दिन देखा। पुलिस की करतूत पर विधानसभा में सवाल उठा तो बिहार के मुख्यमंत्री ने आपा खो दिया। फिर जो हुआ उसमें संविधान, लोकतंत्र और सदन की मर्यादा को रौंद दिया गया। हद देखिये, विधानसभा के अंदर हुई इस घटना के बाद जेडीयू के नेताओं ने सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ दिया गया। संविधान की दुहाई देकर नीतीश के काम को सही ठहराने की कोशिश की गयी। फर्स्ट बिहार ने कई संवैधानिक विशेषज्ञों और संसदीय परंपरा के जानकारों से इस मसले पर बात की। लगभग सभी एकमत दिखे कि बिहार के मुख्यमंत्री ने सोमवार को जो सदन में किया और कहा उससे सारी मर्यादायें तार-तार हो गयीं। हम आपको विस्तार से एक-एक प्वाइंट समझाते हैं कि संविधान,बिहार विधानसभा की कार्य संचालन नियमावली और लोकतांत्रिक परंपरा क्या कहता है? और नीतीश ने क्या किया?
1. विधानसभा में जब कल पुलिस पर सवाल खड़े किये जा रहे थे तो अध्यक्ष ने सवाल को टालते हुए सरकार को दो दिन बाद जवाब देने को कहा। उसके बाद नीतीश तमतमाये हुए सदन में घुसे। उन्होंने अपने भाषण में कहा-इस सवाल को लेकर मैं पहले से ही सतर्क था। इसलिए मैं समय पर पहुंच गया था। मैं बाहर से सुन रहा था। विशेषज्ञों की राय- मुख्यमंत्री का ये कहना कि वे विधानसभा परिसर में तो समय से पहुंच गये थे लेकिन सदन में नहीं आये। वे सदन में तब आये जब अध्यक्ष ने सरकार को सही जवाब देने का निर्देश देते हुए दो दिन के लिए सवाल को टाल दिया। नीतीश का बयान आपत्तिजनक है कि वे बाहर से सवाल जवाब सुन रहे थे। सदन के अंदर नहीं आये थे। इसका मतलब यही है कि मुख्यमंत्री सदन को गंभीरता से नहीं लेते।
2. नीतीश जिस वक्त सदन में घुसे उस समय मंत्री जीवेश मिश्रा आसन की ओर देखकर सवाल का जवाब दे रहे थे। नीतीश कुमार मंत्री औऱ आसन के बीच से होते हुए अपने सीट पर जा बैठे। विशेषज्ञों की राय- विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली की धारा 29 में ये स्पष्ट है कि अगर कोई भी सदस्य या मंत्री आसन की ओर मुखातिब होकर बोल रहा है तो दोनों के बीच में से कोई भी नहीं गुजर सकता. किसी सदस्य को सदन में प्रवेश करने के बाद आसन की ओर झुक कर अभिवादन करना है. नीतीश कुमार ने क्या किया ये वीडियो के जरिये सारे लोग देख चुके हैं।
3. सदन में आने के बाद नीतीश कुमार ने सवाल का जवाब दे रहे मंत्री जीवेश मिश्रा को रोका और खुद बोलना शुरू कर दिया। विशेषज्ञों की राय- बिहार विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली की धारा 30 में स्पष्ट है कि सदन में कोई भी सदस्य चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति के बगैर नहीं बोल सकता। वह कुछ कहना चाहते हैं तो अपने आसन पर खड़े हो सकते हैं लेकिन बोलने की अनुमति अध्यक्ष ही देंगे। लेकिन सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष ने मंत्री जीवेश मिश्रा को बोलने के लिए कहा था। नीतीश कुमार ने न सिर्फ मंत्री को बोलने से रोक दिया बल्कि खुद बोलना शुरू कर दिया।
4. आपे से बाहर होकर नीतीश कुमार जब बोले जा रहे थे तो अध्यक्ष बार-बार बोलने की कोशिश कर रहे थे। अध्यक्ष बार-बार ये कह रहे थे कि माननीय मुख्यमंत्री जी, मेरी बात सुन लीजिये। मुख्यमंत्री का तेवर ये था कि वे अध्यक्ष को ही बोलने नहीं दे रहे थे। विशेषज्ञों की राय-संविधान से लेकर विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली में ये पूरी तरह स्पष्ट है कि सदन के भीतर आसन सर्वोपरि है। विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली की धारा 30 (2) में स्पष्ट है कि जैसे ही अध्यक्ष कुछ कहें तो सदस्य बोल रहे हों वे बैठ जायेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आसन पर बैठे अध्यक्ष की बात ही सुनने को तैयार नहीं थे। वे अध्यक्ष को ही चुप करा रहे थे।
5. बढ़ते अपराध को लेकर विधायकों ने सवाल पूछा था कि पुलिस क्या कार्रवाई कर रही है। सरकार की ओर से जवाब दे रहे मंत्री विजेंद्र यादव ने कहा-हम दिखवा लेंगे। पूरा जवाब नहीं आया तो अध्यक्ष ने कहा था कि सरकार विस्तृत जवाब सदन में दे। नीतीश कुमार ने अध्यक्ष को कहा कि आप होते कौन हैं ये निर्देश देने वाले कि सरकार दो दिन बाद जवाब दे? विशेषज्ञों की राय- विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली की धारा 78 में स्पष्ट है कि अगर अध्यक्ष को लगता है कोई प्रश्न लोक महत्व और अविलम्बनीय प्रकार का है तो वह संबंधित मंत्री को लिखित या मौखिक जवाब देने के लिए तिथि निर्धारित कर निर्देश दे सकेंगे। विशेषज्ञों की राय में अध्यक्ष को विधायकों के सवाल औऱ सरकार के जवाब के संबंध में निर्देश देने का असीमित अधिकार है। विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के मुताबिक किसी सदस्य को सदन में अध्यक्ष के निर्देश पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं है।
6. बिहार के मुख्यमंत्री ने सदन में अध्यक्ष को कहा कि पुलिस कार्रवाई को लेकर सरकार को जवाब देने का आपका निर्देश हमें किसी भी तरह से मंजूर नहीं है। विशेषज्ञों की राय- संविधान से लेकर विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली में स्पष्ट है कि लोकतंत्र में सदन सर्वोपरि है। अध्यक्ष उस सदन के अभिभावक हैं लिहाजा उनका निर्देश भी सर्वोपरि होता है और उसे मानना सबों के लिए बाध्यकारी होता है। अगर अध्यक्ष ने सरकार को जवाब देने का निर्देश दिया है तो सरकार को जवाब देना होगा। विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्यसंचालन नियमावली के भाग 18 में अध्यक्ष को अधिकार है कि सदन में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा। उसे मंजूर या नामंजूर करने का अधिकार किसी को नहीं है।
7. सदन में कल बखेड़ा इस बात पर हुआ था कि लखीसराय में 50 दिन में 9 हत्या होने के बाद भी पुलिस ने क्या कार्रवाई की। कितने लोगों की गिरफ्तारी हुई। विधायकों ने पूछा तो सरकार ने बताया कि सारे मामलों में सिर्फ 9 अभियुक्तों की गिरफ्तारी हुई। विधायकों ने पूछा था कि पुलिस फरार अभियुक्तों की कुर्की जब्ती क्यों नहीं कर रही है। सरकार ने जवाब नहीं दिया तो अध्यक्ष ने पूरी जानकारी देने को कहा था। अध्यक्ष के इसी निर्देश पर आपे से बाहर हुए नीतीश ने कहा था-संविधान में आपको कोर्ट औऱ पुलिस के इंवेस्टीगेशन पर चर्चा करने और निर्देश देने का अधिकार नहीं है. नीतीश ने कहा था कि वे इस मामले की समीक्षा करेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री कह रहे थे कि सदन में इस पर चर्चा नहीं हो सकती।
विशेषज्ञों की राय-पहली बात तो ये है कि सवाल कहीं से भी कोर्ट से जुड़ा नहीं था। सवाल बढ़ते अपराध पर था और विधायक पूछ रहे थे कि पुलिस ने क्या कार्रवाई की। संविधान के मुताबिक कोर्ट में चल रहे मामले पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती लेकिन कोर्ट का मामला तब होता है जब किसी मामले में कोर्ट उस पर संज्ञान ले ले। सवाल बढ़ते अपराध पर था, सवाल अपराधियों पर पुलिस की कार्रवाई पर था। पुलिस के इनवेस्टीगेशन पर भी कोई सवाल नहीं पूछा गया था। विधानसभा में बढ़ते अपराध औऱ पुलिस की नाकामी पर चर्चा हो सकती है। ऐसा पहले भी सैकड़ों बार हो चुका है। नीतीश का बौखलाना पूरी तरह से गलत था। वहीं, अगर किसी मामले की मुख्यमंत्री समीक्षा कर सकते हैं तो उस मामले पर सदन में चर्चा हो सकती है। सदन को सरकार के हर काम पर चर्चा और समीक्षा करने का अधिकार है। सदन में सरकार के किस काम पर चर्चा होगी ये फैसला लेने का अधिकार अध्यक्ष को है। विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली का भाग 10 कहता है कि अध्यक्ष को लोक महत्व के किसी भी विषय पर सदन में चर्चा कराने का अधिकार है। उसमें वोटिंग नहीं हो सकती लेकिन सरकार को जवाब देना होगा।
8. सोमवार को सदन में नीतीश कुमार ने कहा कि वह ऐसा पहली बार देख रहे हैं कि पुलिस के काम पर इस तरह की चर्चा हो रही है। विशेषज्ञों की राय-नीतीश कुमार अपने 16 साल के शासनकाल में पहली बार ऐसे अध्यक्ष को देख रहे हैं जो उनकी पार्टी का नहीं है। 15 साल के उनके शासनकाल में विधानसभा अध्यक्ष उनकी पार्टी के रहे अध्यक्ष के आसन पर बैठने वाला व्यक्ति वैसे तो पार्टी की सीमा से बाहर हो जाता है लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी के अध्यक्ष के समय किस तरह से सदन चलाया जाता रहा ये जगजाहिर है। अब दूसरी पार्टी के अध्यक्ष हैं जो स्वतंत्र फैसले ले रहे हैं तो सरकार के एक धड़े में बेचैनी है।
9. नीतीश कुमार ने सदन में कहा कि वे न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं। इसलिए वे सदन में चर्चा पर नाराज हैं। विशेषज्ञों की राय-अगर सरकार का काम पारदर्शी है तो सदन में चर्चा पर आपत्ति क्यों है? अगर सत्तारूढ़ गठबंधन के ही विधायक सवाल उठा रहे हैं तो जाहिर है उन्हें सरकार पर भरोसा नहीं है। सरकार को तो इस मसले पर सदन में पूरा जवाब देकर उन्हें संतुष्ट करना चाहिये।
10. नीतीश कुमार ने अध्यक्ष को कहा कि मुझे टोकियेगा तो मैं सदन में बोलूंगा ही नहीं। विशेषज्ञों की राय- मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्ति का ये आचरण गंभीर रूप से आपत्तिजनक है। अध्यक्ष का आसन सर्वोपरि है और उसे किसी तरह की धमकी या चेतावनी नहीं दी जा सकती। कुल मिलाकर कहें तो विशेषज्ञों की राय ये है कि बिहार विधानसभा में सोमवार को जो हुआ उसने संविधान की आत्मा को तार-तार कर दिया। भारत के संविधान की धारा 164(2) साफ साफ कहती है कि किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री समेत पूरा मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगा। लेकिन अगर कोई मुख्यमंत्री सदन में आकर विधानसभा को ही खारिज कर दे तो संविधान की आत्मा के साथ क्या हुआ होगा इसके बारे में क्या कहा जाये।