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27-Jan-2022 03:30 PM
MADHUBANI: बिहार में स्थानीय निकाय़ कोटे से होने जा रहे विधान परिषद चुनाव में क्या राजद ने मधुबनी सीट पर एनडीए को वाकओवर दे दिया है. जिले के पंचायत प्रतिनिधियों के बीच यही सवाल उठ रहा है. राजद ने इस सीट से अपने जिस उम्मीदवार को मैदान में उतारने का एलान किया है, वह पहले ही पिछड़ते नजर आ रहे हैं।
मेराज आलम की उम्मीदवारी पर उठे सवाल
दरअसल राजद ने स्थानीय निकाय कोटे से होने जा रहे विधान परिषद चुनाव में मेराज आलम को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि पार्टी ने इसका औपचारिक एलान नहीं किया है लेकिन सोमवार को मेराज आलम ने राजद नेताओं के साथ बैठक कर ये घोषित किया कि लालू प्रसाद यादव औऱ तेजस्वी यादव ने उन्हें विधान परिषद के चुनाव मे उम्मीदवार बनाया है. हम आपको बता दें कि मेराज आलम कुछ दिन पहले हुए पंचायत चुनाव में मधुबनी जिले के खुटौना ब्लॉक के प्रमुख चुने गये थे.
हालांकि मेराज आलम पहले से ही राजद से जुड़े रहे हैं लेकिन जिले में उनकी पहचान नेता के तौर पर कभी नहीं रही है. राजद के एक नेता ने फर्स्ट बिहार से बात करते हुए कहा कि मेराज आलम की पहचान एक धनबली के तौर पर रही है. प्रखंड प्रमुख के चुनाव में मेराज आलम ने जिस तरीके से पैसा खर्च किया वह पूरे जिले में चर्चा का विषय बना. चर्चा हुई कि मेराज आलम ने प्रखंड प्रमुख के चुनाव में करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च कर दिया. राजद नेता ने कहा कि शायद यही गुण पार्टी नेतृत्व को पसंद आ गया, तभी उन्हें विधान परिषद चुनाव में उम्मीदवार बना दिया गया.
एनडीए को मिल गयी बढ़त
लालू प्रसाद यादव के साथ चार दशकों से राजनीति कर रहे मधुबनी के एक प्रमुख राजद नेता ने कहा कि पार्टी ने मेराज आलम का खास गुण देख कर टिकट भले ही दे दिया लेकिन इससे बैठे बिठाये एनडीए को बढ़त मिल गयी. राजद नेता के मुताबिक 22 वोटरों वाले प्रखंड प्रमुख के चुनाव में जीत हासिल करना औऱ विधान परिषद चुनाव में वोटरों को मैनेज कर पाने में जमीन आसमान का अंतर है. मधुबनी जिले में स्थानीय निकाय कोटे से एमएलसी के चुनाव में वोटरों की तादाद 6 हजार से ज्यादा है. इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए लगभग 3 हजार वोटरों का समर्थन चाहिये. 3 हजार वोटरों को धन बल पर मैनेज कर पाना नामुमकिन सा काम है.
राजद के आधार वोटरों में नाराजगी
उधर राजद के आधार वोटर माने जाने वाले वर्ग में भी मेराज आलम की उम्मीदवारी से नाराजगी है. मधुबनी में यादव जाति के वोटरों के तादाद अच्छी खासी है. पंचायत चुनाव में भी यादव जाति के प्रतिनिधि अच्छी खासी तादाद में चुन कर आये हैं. लेकिन पार्टी ने उनकी तादाद को नजरअंदाज कर मुस्लिम कैंडिडेट दे दिया है. वहीं, जिले में अति पिछड़े तबके के वोटरों की भी काफी तादाद है. पार्टी अगर इस तबके का भी कोई उम्मीदवार देती तो नया समीकरण बनता. लेकिन मुस्लिम उम्मीदवार देकर पार्टी ने एनडीए को खुश होने का बड़ा मौका दे दिया है. चर्चा ये भी है कि यादव जाति के एक नेता निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एमएलसी चुनाव में मैदान में उतरने की तैयारी में लगे हैं.
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना
राजद नेताओं को आशंका है कि एमएलसी चुनाव में वोटरों का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो सकता है. पार्टी के एक नेता ने फर्स्ट बिहार से कहा कि मधुबनी से मुस्लिम उम्मीदवार देना हैरानी की बात है. मधुबनी जिले में कोई एक भी विधायक, विधान पार्षद या सांसद मुस्लिम तबके का नहीं है. जिले से दो लोकसभा सांसद हैं जिसमें एक यादव औऱ दूसरे अति पिछड़ी जाति से हैं. 2020 के पहले जिले में एक मुस्लिम विधायक फैयाज अहमद थे. वे बिस्फी से विधायक थे. लेकिन 2020 के चुनाव में उनके क्षेत्र में भी सांप्रदायिक आधार पर वोटरों की गोलबंदी हुई और फैयाज अहमद बीजेपी के हरिभूषण ठाकुर बचौल से चुनाव हार गये थे.
राजद नेताओं को विधान परिषद चुनाव में भी सांप्रदायिक गोलबंदी की आशंका सता रही है. अगर ऐसा होता है तो एनडीए को बैठे बिठाये ये सीट मिल जायेगी. राजद के कई नेताओं ने तेजस्वी से लेकर लालू यादव तक ये बातें पहुंचायी हैं. हालांकि मेराज आलम का मैनेजमेंट इतना मजबूत है कि राजद का आलाकमान कुछ सुनने को तैयार नहीं दिख रहा.
