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03-Jul-2025 12:56 PM
By First Bihar
Supreme Order: सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं और बीमा दावे से जुड़ी एक बड़ी मान्यता दी है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि अगर कोई व्यक्ति लापरवाही से गाड़ी चला रहा हो, जैसे तेज रफ्तार या स्टंट के दौरान और उसकी इस वजह से घटना घटती और मृत्यु होती है, तो बीमा कंपनियां उसे मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस फैसले में कोर्ट ने बीमा कंपनियों को अनिश्चित हद तक जिम्मेदार नहीं ठहराया है, बल्कि मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 147 और संबंधित नियमों के अनुसार दायित्व तय किया गया है।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और आर महादेवन की खंडपीठ ने पुष्टि की कि खुंटे हुए नियमों, ‘ओवरस्पीड’ या लापरवाही का दोषी रहा मृत व्यक्ति बीमा दावा का पात्र नहीं हो सकता। इन शर्तों को स्पष्ट करते हुए, यह कहा गया कि मृतक की अपनी गलती से मृत्यु हुई हो तभी बीमा कंपनियों की ज़िम्मेदारी समाप्त हो जाती है। किसी बाहरी ताकत या दुर्घटना के अनिवार्य कारण से हुई घटनाओं में ही मुआवजे का दायित्व बनता है।
मूल विवाद एनएस रविशा नामक व्यक्ति की है, जो 18 जून 2014 को तेज रफ्तार में अपनी फ़िएट लीनिया कार चला रहा था। वह मल्लासंद्रा गांव से अरसीकेरे शहर जा रहा था। अचानक माइलनाहल्ली गेट के पास वाहन पर से नियंत्रण खो बैठा और कार पलट गई, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। शुरुआती जांच रिपोर्ट में पुलिस ने स्पष्ट किया कि वह लापरवाही और तेज़ गति से कार चला रहा था।
मृतक के परिवार पत्नी, बेटे और माता-पिता ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से 80 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी। उनका दावा था कि रविशा एक ठेकेदार था, जिसकी मासिक आय लगभग 3 लाख रुपये थी। हालांकि मोटर दुर्घटना ट्रिब्यूनल और फिर कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इन दावों को खारिज करते हुए कह दिया कि लापरवाही से दुर्घटना हुई, न कि वाहन की खराबी से।
बीमा दावा तभी मान्य होता यदि दुर्घटना मृतक की गलती के बिना हुई होती। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 23 नवंबर 2024 के फैसले को बरकरार रखते हुए परिवार की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जब मृतक की गलती ही दुर्घटना का कारण हो, तो बीमा कंपनी का दायित्व समाप्त हो जाता है। 80 लाख रुपये का मुआवजा कोई संगठन या कंपनी नहीं देगी, क्योंकि मौत खुद उसकी लापरवाही का नतीजा थी।
यह अदालती फैसला बीमा कंपनियों को स्पष्ट दिशा देता है कि लापरवाही पूर्ण दुर्घटनाओं में उनका मुआवजा देने का दायित्व समाप्त हो जाता है। इससे यह संदेश भी जाता है कि यदि कोई तेज गति या स्टंट का शिकार बनता है, तो बीमा कंपनियों को कानूनी रूप से राहत दी गई है।