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Family dispute and misuse of law: सिर्फ बदला या कुछ और...क्यों महिलाएं दर्ज करवा रही हैं झूठे केस? सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

Family dispute and misuse of law: कानूनों के दुरुपयोग को लेकर देश की शीर्ष अदालतों ने सख्त टिप्पणियाँ की हैं। सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसलों से यह संकेत मिलता है कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग चिंता का विषय है |

वैवाहिक विवाद, झूठे केस, सुप्रीम कोर्ट, ससुराल पक्ष, महिलाओं का कानून का दुरुपयोग, पॉक्सो एक्ट, बच्चों का शोषण, न्याय व्यवस्था, इलाहाबाद हाईकोर्ट, फर्जी आरोप, महिला अधिकार, कानून का दुरुपयोग, fake cas

09-May-2025 11:44 AM

By First Bihar

family dispute and misuse of law: देश में वैवाहिक विवादों का चलन चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है, जिसमें पति के साथ-साथ उनके करीबी रिश्तेदारों को भी फंसाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महिला की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की अनुमति माँगी थी।


न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि महिला के आरोप अस्पष्ट हैं और शारीरिक हिंसा के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। साथ ही, महिला द्वारा पुलिस में की गई शिकायत और मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयानों में भी विरोधाभास पाया गया। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि वैवाहिक विवादों में अब पति के नजदीकी रिश्तेदारों को भी अनावश्यक रूप से कानूनी मामलों में घसीटा जा रहा है, जो न्याय प्रणाली पर बोझ बढ़ा रहा है।

पोस्को एक्ट के दुरुपयोग पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

इस बीच, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए पॉक्सो (POCSO) एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की है। जस्टिस कृष्णा पहल ने एक फैसले में कहा कि यह कानून जिसे नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था, अब कुछ मामलों में उनके खिलाफ ही उपयोग किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि किशोरों के बीच आपसी सहमति से बने प्रेम संबंधों को इस कानून के तहत अपराध नहीं माना जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान में इसे झूठे आरोप लगाने और दबाव बनाने का जरिया बनाया जा रहा है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों मामलों में न्यायपालिका ने कानून के संतुलित उपयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने स्पष्ट किया है कि कानून का उद्देश्य न्याय दिलाना है, न कि किसी को अनावश्यक रूप से प्रताड़ित करना।


इन दोनों मामलों ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या कानून का दुरुपयोग समाज में एक नई चुनौती बनता जा रहा है? न्यायपालिका ने अपने निर्णयों में यह संकेत दिया है कि अब समय आ गया है जब झूठे मामलों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि असली पीड़ितों को न्याय मिल सके और कानून की गरिमा बनी रहे।