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06-Oct-2025 12:04 PM
By First Bihar
Bihar Assembly Elections: आज शाम 4 बजे विज्ञान भवन, दिल्ली में भारत निर्वाचन आयोग एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहा है, जहां बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जा सकता हैं। लेकिन इससे पहले एक दिलचस्प सवाल—क्या आप जानते हैं कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की शुरुआत कब और कैसे हुई थी? कैसे इस तकनीक ने पारंपरिक बैलेट पेपर की जगह ली और समय के साथ इसमें कौन-कौन से बदलाव आए?चलिए जानते है इससे जुड़े बदलाव...
आपको बता दें की भारत में चुनावों में पारदर्शिता लाने और गड़बड़ी को रोकने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की शुरुआत की गई थी। 1970 के दशक में जब चुनावों में बूथ कैप्चरिंग और वोटिंग में हेराफेरी आम थी, तब देश में 35 करोड़ मतदाता बैलेट पेपर से वोट डालते थे, जो की धीमा तो था ही और साथ- साथ गड़बड़ी की संभावना भी ज्यादा थी। ऐसे में 1982 में केरल के परवूर में पहली बार EVM का ट्रायल किया गया, जिसमें कुछ बूथों पर मशीनें लगाई गईं और पहली बार लोगों ने बटन दबाकर वोट दिया।
भारत की पहली EVM काफी साधारण थी, जिसमें दो हिस्से होते थे — कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट। दोनों को केबल से जोड़ा जाता था और वोटर को अपने पसंदीदा उम्मीदवार के सामने वाले नीले बटन को दबाना होता था।समय के साथ मशीनों को और बेहतर बनाया गया। पहले M1 मॉडल को 2006 तक इस्तेमाल किया गया, लेकिन इसकी सुरक्षा सीमित थी। इसके बाद M2 मॉडल में टाइम स्टैम्प जैसी सुविधाएं जोड़ी गईं ताकि वोटिंग ट्रैक और वेरिफाई की जा सके। 2013 में आया M3 मॉडल, जो अगर किसी ने छेड़छाड़ करने की कोशिश की, तो खुद-ब-खुद बंद हो जाता है।
VVPAT (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की शुरुआत 2013 में नागालैंड के एक उपचुनाव में हुई। इससे वोटर को एक पर्ची दिखाई देती है जिसमें उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह होता है, जिससे वो सुनिश्चित कर सके कि उसका वोट सही डला है। अब ऐसा माना जाता है की आज की मशीनें बेहद सही और सुरक्षित हैं। ये GPS ट्रैकिंग से लैस होती हैं ताकि उनके ट्रांसपोर्ट को मॉनिटर किया जा सके। मतदान के बाद इन्हें डबल लॉकिंग वाले स्ट्रांग रूम में रखा जाता है और मतगणना तक कड़ी निगरानी की जाती है, जिससे चुनाव प्रक्रिया पर जनता का भरोसा और भी मजबूत हो जाता है।