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20-May-2025 11:38 AM
By First Bihar
Bihar News बिहार सरकार ने गंडक नदी के पूरे बहाव क्षेत्र का विस्तृत सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए जल संसाधन विभाग जल्द ही एक नई कार्ययोजना तैयार करेगा। यह सर्वे नेपाल की सीमा से सटे वाल्मीकिनगर बैराज से लेकर सोनपुर के निकट गंडक के गंगा में मिलने तक की लगभग 225 किलोमीटर लंबी दूरी में किया जाएगा।
इस सर्वेक्षण में नदी के प्रवाह की दिशा, जलस्तर, तटबंधों की स्थिति, नदी की गहराई और चौड़ाई, गाद जमा होने की मात्रा, और संरचनात्मक क्षति आदि की गहन जांच की जाएगी। अधिकारियों के अनुसार, इस बार सर्वे पूरी तकनीकी सटीकता के साथ ड्रोन, सैटेलाइट मैपिंग और ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक के माध्यम से कराया जाएगा।
गौरतलब है कि गंडक नदी का पिछला सर्वेक्षण वर्ष 2020 में किया गया था, लेकिन उस दौरान यह केवल सीमित क्षेत्रों तक केंद्रित था। अब सरकार ने इसे पूरे बहाव क्षेत्र में विस्तारित करने का निर्णय लिया है। साल 2024 में गंडक नदी में 21 वर्षों के बाद सबसे अधिक जलस्राव दर्ज किया गया। 28 सितंबर 2024 को नदी में जलस्राव 5.62 लाख क्यूसेक पहुंच गया था। इससे पहले 2003 में 6.39 लाख क्यूसेक का रिकॉर्ड बना था। पिछले साल की स्थिति इस रिकॉर्ड से केवल 80 हजार क्यूसेक कम थी, लेकिन इसके बावजूद इसने भारी तबाही मचाई।
राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 की बाढ़ में 512 करोड़ रुपये की क्षति हुई। लगभग 118 किलोमीटर लंबे तटबंध क्षतिग्रस्त हो गए और नदी पर बनी कई संरचनाएं जैसे पुल-पुलिया, स्लुइस गेट और नहरें भी टूट गईं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंडक नदी में लगातार गाद (सिल्ट) जमने से इसका तल ऊपर उठ रहा है, जिससे नदी की गहराई कम हो गई है। इससे अब कम जलस्राव पर भी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। पानी के बहाव में रुकावट के कारण उसका फैलाव किनारों की ओर होने लगता है, जिससे आसपास के इलाकों में भारी तबाही होती है। यह प्रभाव सिंचाई नहरों पर भी पड़ता है।
जल संसाधन विभाग अब तटबंधों को दुरुस्त करने, नदी की सफाई (ड्रेन्जिंग) और जल बहाव के लिए वैकल्पिक चैनल विकसित करने की योजनाओं पर विचार कर रहा है। इसके अतिरिक्त, बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली को और सुदृढ़ करने तथा स्थानीय लोगों को राहत और पुनर्वास योजना से जोड़ने का कार्य भी इस सर्वेक्षण के बाद शुरू किया जाएगा। जल संसाधन विशेषज्ञों का कहना है कि गंडक जैसी बड़ी और हिमालयी नदियों में हर साल गाद की मात्रा बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून पैटर्न में भी बदलाव हो रहा है, जिससे एक साथ भारी बारिश और जलप्रवाह बढ़ जाता है। इसलिए समय रहते स्थायी समाधान जरूरी है।