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                            17-May-2025 04:39 PM
By First Bihar
PATNA: बिहार के गया जिले का नाम बदल दिया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया। अब गया को गया जी के नाम से जाना जाएगा। नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद अब गया के बाद राजधानी पटना का नाम भी बदलने की मांग उठ रही है। इस मांग को लेकर पाटलिपुत्र जागरण अभियान समिति के अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अनिल सुलभ सामने आएं हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किया है कि गया जिले को तो गया जी कर दिए, इसके लिए आपको कोटी-कोटी धन्यवाद लेकिन पटना का नाम कब चेंज होगा। पटना कब पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाएगा। जरा इस पर ध्यान दिया जाए। उन्होंने पटना का नाम पाटलिपुत्र करने की मांग की।
विश्व के प्राचीन नगरों में से एक 'गया' का नाम परिवर्तित कर 'गया जी' करने के लिए आप बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं। इससे गया और बिहार के नागरिकों को अवश्य ही गौरव और परितोष की अनुभूति हुई है। पर बिहार की राजधानी पटना का नाम अबतक 'पाटलिपुत्र' नहीं किया जा सका, यह खेद का विषय है। जबकि भारत के इस अत्यंत गौरवशाली नाम की पुनर्प्रतिष्ठा का यह आंदोलन, नाम-परिवर्तन के लिए आरंभ हुआ सबसे पुराना आंदोलन है। योग्यता और श्रेष्ठता की दृष्टि से भी सबसे पहला अधिकार इसी का बनता है। कृपया यह भी बताएँ कि पटना का नाम 'पाटलिपुत्र' कब करेंगे, मुख्यमंत्री जी ?
यह प्रश्न पाटलिपुत्र जागरण अभियान समिति के अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा अनिल सुलभ ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा है। पाटलिपुत्र के महान गौरवशाली इतिहास का स्मरण दिलाते हुए उन्होंने कहा है कि ईसा पूर्व पाँच सौ वर्ष पूर्व से लेकर छठी शताब्दी तक के लगभग एक हज़ार वर्ष तक, 'पाटलिपुत्र' के नाम से विश्वविख्यात रहा यह नगर अपने समय में संसार का सबसे सुंदर, सबसे समृद्ध और हरप्रकार से श्रेष्ठतम नगर माना जाता था। इसे लगभग एक हज़ार वर्ष तक विशाल मगध साम्राज्य की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था, जिस साम्राज्य का विस्तार कभी गंधार (आज का अफ़ग़ानिस्तान) तक था।
तब उसमें आज का संपूर्ण भारतवर्ष, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल,भूटान और तिब्बत समाहित था। क्रूर आततायी बख़्तियार ख़िलजी द्वारा लूट कर जला दिए जाने तक यह नगर संसार का संस्कृति केंद्र था। आज उसी के मलबे पर पुनः बसे नगर का नाम पटना है। १९वीं सदी में हुई अनेक खुदाइयों के पश्चात यह सुनिश्चित होने पर ही कि पटना ही कभी गौरवशाली पाटलिपुत्र था, बिहार-वासियों को महान होने कि गौरवानुभूति हुई।
पटना का नाम परिवर्तित कर 'पाटलिपुत्र' करने का आंदोलन पहली बार, पिछली सदी के ९वे दशक में भारत के सेनाध्यक्ष रहे लेफ़्टिनेंट जनरल एस के सिन्हा के नेतृत्व में आरंभ हुआ था। यह संसार में, किसी नगर, प्रांत या देश के नाम परिवर्तन का पहला आंदोलन था। बाद में उन्हें राज्यपाल बना दिया गया और यह आंदोलन अपने उत्कर्ष पर पहुँच कर रुक गया। पुनः वर्तमान सदी के प्रथम दशक के उत्तरार्ध में 'पाटलिपुत्र जागरण अभियान समिति' का गठन कर पटना के प्रबुद्ध नागरिकों ने यह आंदोलन पुनः आरंभ किया।
इसी आंदोलन का परिणाम था कि नए परिसीमन में पटना संसदीय क्षेत्र का नाम बदला गया और 'पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र' अस्तित्व में आया। पटना में पाटलिपुत्र नाम का रेलवे स्टेशन भी बनाया गया। राज्य सरकार ने बिहार विधान परिषद में लाए गए एक संकल्प के उत्तर में यह आश्वासन भी दिया कि "सरकार पटना का विस्तार कर एक महानगर का रूप देने जा रही है, जिसका नाम 'पाटलिपुत्र महानगर' रखा जाएगा", किंतु आज तक यह आश्वासन पूरा नहीं हुआ।
इस अवधि में संसार में अनेकों नगरों के नाम बदल गए, प्रांत और देश के नाम भी बदले, किंतु संसार में सबसे पहले उठायी गयी मांग आज तक पूरी नही हुई, जबकि इसकी योग्यता सबसे अधिक थी और सबसे पहले इसका ही अधिकार बनता था, बनता है।
डॉ. अनिल सुलभ ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह किया कि कैबिनेट की अगली बैठक में पटना का नाम पाटलिपुत्र करने का प्रस्ताव लाएँ और अपना नाम इतिहास में सदा के लिए अमर करें। इस परिवर्तन से नगर के संस्कार में गुणात्मक परिवर्तन होगा और यह नगर पुनः विश्व का मार्ग-दर्शन करने योग्य बन जाएगा।