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26-Aug-2025 07:14 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा हाल ही में शुरू की गई ऑनलाइन पिंडदान योजना अब विवादों के घेरे में आ गई है। इस योजना का उद्देश्य उन लोगों को सुविधा देना है जो पितृपक्ष के दौरान व्यक्तिगत रूप से गया नहीं आ सकते, लेकिन अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान कराना चाहते हैं। इस स्कीम को लेकर धार्मिक समुदाय, विशेषकर गया के पंडा समाज और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने कड़ी आपत्ति जताई है।
पर्यटन विभाग के मुताबिक, 6 सितंबर से शुरू हो रहे पितृपक्ष के अवसर पर इच्छुक व्यक्ति ₹23,000 का भुगतान कर ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं। इसके बाद गया में स्थित स्थानीय पुजारी उनकी ओर से पिंडदान करेंगे। पूरे अनुष्ठान की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी और उसे पेन ड्राइव में बुकिंग कराने वाले को भेजा जाएगा, ताकि वे देख सकें कि पिंडदान विधिवत रूप से हुआ है या नहीं।
इस योजना पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया विश्व हिंदू परिषद और गया के पारंपरिक पंडा समाज की ओर से आई है। VHP के अध्यक्ष मणि लाल बारिक ने कहा, गरुड़ पुराण और शास्त्रों के अनुसार पिंडदान सिर्फ परिवार का कोई पुरुष सदस्य, विशेषकर पुत्र, ही कर सकता है। और यह कर्म सिर्फ पवित्र स्थलों जैसे कि विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी तट और अक्षय वट पर ही किया जाना चाहिए। किसी अन्य स्थान या प्रतिनिधि द्वारा इसे कराना धर्मशास्त्रों की मर्यादा का उल्लंघन है।
प्रख्यात पंडा महेश लाल गुप्त ने भी इस योजना का विरोध करते हुए कहा, पिंडदान करते समय व्यक्ति 'अस्मत पिता' (मेरे पिता) कहता है। ऐसे में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यह कर्म करना धार्मिक रूप से मान्य नहीं है। इससे सनातन धर्म की पवित्रता और पारंपरिक रीतियों की गरिमा प्रभावित होती है। उन्होंने सरकार से अपील की कि इस योजना को अविलंब वापस लिया जाए और धर्माचार्यों से चर्चा के बाद ही कोई निर्णय लिया जाए।
इस मुद्दे पर गया शहर के विधायक और सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि, "सरकार पंडा समाज और धार्मिक संस्थाओं की भावनाओं का सम्मान करती है। इस योजना की समीक्षा उचित स्तर पर की जाएगी और सभी संबंधित पक्षों से संवाद किया जाएगा।"
सरकार का तर्क है कि इस योजना से धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा और उन श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी जो आर्थिक, स्वास्थ्य या अन्य कारणों से गया नहीं पहुंच सकते। हालांकि, धार्मिक विद्वानों और परंपरावादियों का कहना है कि इस तरह के "डिजिटलीकृत कर्मकांड" से धार्मिक रीति-रिवाजों की भावनात्मक गहराई और आध्यात्मिक मूल्यों में ह्रास होगा।
शास्त्रों के अनुसार पिंडदान एक अत्यंत व्यक्तिगत और शारीरिक रूप से उपस्थित रहकर किए जाने वाला कर्म है। गरुड़ पुराण, विष्णु धर्मसूत्र, और मनुस्मृति में ऐसे कर्मों को स्वयं करने की महत्ता पर बल दिया गया है। कुछ धर्माचार्य यह भी तर्क दे रहे हैं कि प्रतिनिधित्व द्वारा किया गया कर्म "प्रायश्चित्त" के रूप में तो हो सकता है, पर उसे पूर्ण और शुद्ध पिंडदान नहीं माना जा सकता।