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25-May-2025 01:41 PM
By First Bihar
Bihar News: बिहार में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल की जा रही है। राज्य का पहला ब्लैकबक (काला हिरण) अभ्यारण्य बक्सर जिले के नावानगर प्रखंड अंतर्गत भटौली पंचायत के बारालेव (पीलापुर) मौजा में विकसित किया जा रहा है। यह परियोजना राज्य सरकार की स्वीकृति के बाद पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा सक्रिय रूप से कार्यान्वित की जा रही है।
बता दें कि बक्सर में कुल 12 एकड़ भूमि को अभ्यारण्य के लिए चिह्नित किया गया है, जो 400 एकड़ के आसपास फैले जंगल क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। यहाँ ब्लैकबक, नीलगाय और अन्य स्थानीय वन्यजीवों को संरक्षण मिलेगा। परियोजना से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने में सहायता मिलेगी और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। पूर्व सीओ ने बारालेव मौजा की 12 एकड़ आनावाद (सरकारी) भूमि का मापी कराकर प्रस्ताव तैयार कर जिला मुख्यालय भेजा था। प्रस्ताव को राज्य कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद इसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को सौंप दिया गया।
वहीं, परियोजना के पीछे सोच यह है कि वन्यजीवों, खासकर दुर्लभ काले हिरणों को प्राकृतिक वातावरण में संरक्षित किया जा सके, और साथ ही स्थानीय ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न हों। हालांकि परियोजना में एक विधिक पेच फंस गया है। जिन 12 एकड़ जमीन को विभाग को सौंपा जाना था, उसमें से कुछ हिस्सों पर भूमिहीनों को अंचल कार्यालय द्वारा पर्चा काट दिए जाने के कारण जमीन का स्वामित्व स्पष्ट नहीं हो पाया है। परिणामस्वरूप, अभी तक पर्यावरण विभाग को वह जमीन विधिवत हस्तांतरित नहीं हो सकी है।
वन विभाग एवं जिला प्रशासन की टीम विवाद सुलझाने में जुटी हुई है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि भूमि के वैध दस्तावेजों की समीक्षा की जा रही है और जल्द ही जमीन को विभाग को सौंपने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। इसके बाद संरचना का निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। इस अभ्यारण्य से बक्सर में प्राकृतिक पर्यटन को नया आयाम मिलेगा। राज्य सरकार की योजना है कि भविष्य में इसे एक ईको-टूरिज्म ज़ोन के रूप में विकसित किया जाए, जहाँ ट्रैकिंग, बर्ड वॉचिंग, और पर्यावरणीय शिक्षा के केंद्र खोले जा सकें। स्थानीय लोगों के लिए यह अवसर रोजगार और आजीविका के नए रास्ते भी खोलेगा।
बक्सर में प्रस्तावित काले हिरणों का यह पहला अभ्यारण्य न केवल वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, बल्कि यह बिहार को ईको-टूरिज्म हब बनाने की दिशा में एक मजबूत प्रयास भी है। प्रशासन और सरकार यदि भूमि विवाद को जल्द सुलझा पाती है, तो यह परियोजना आने वाले वर्षों में पर्यावरण, वन्यजीव और अर्थव्यवस्था तीनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी।