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Devuthani Ekadashi 2025: कल है देवउठनी एकादशी, कैसे करें भगवान विष्णु और माता तुलसी का पूजन? जानें मुहूर्त

Devuthani Ekadashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 31 Oct 2025 02:23:31 PM IST

Devuthani Ekadashi 2025

देवउठनी एकादशी 2025 - फ़ोटो GOOGLE

Devuthani Ekadashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह विशेष दिन भगवान विष्णु के चार महीने के योगनिद्रा से जागने और सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी संभालने का प्रतीक माना जाता है।


पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी 2025 में 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से आरंभ होगी और 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। मान्यता है कि इस दिन माता तुलसी और भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन चातुर्मास का समापन होता है और मांगलिक कार्य जैसे सगाई, विवाह, मुंडन, भूमि पूजन और गृहप्रवेश आदि शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।


पूजन के लिए देवउठनी एकादशी में अभिजीत मुहूर्त सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, जो सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा, गोधूली मुहूर्त शाम 5 बजकर 36 मिनट से 6 बजकर 02 मिनट तक और प्रदोष काल भी शाम 5 बजकर 36 मिनट से आरंभ होगा। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और घर के दरवाजों को साफ करना आवश्यक है। चूने और गेरू से घर में अल्पना बनाना चाहिए, गन्ने का मंडप सजाकर देवताओं की स्थापना करनी चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा करते समय गुड़, रुई, रोली, अक्षत, चावल और पुष्प का उपयोग किया जाता है। दीपक जलाकर भगवान का स्वागत करते हुए ‘उठो देव, बैठो देव, आपके उठने से सभी शुभ कार्य हों’ का मंत्र उच्चारित करना चाहिए।


देवउठनी एकादशी पर कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है। इस दिन तामसिक भोजन और मदिरा से दूर रहना चाहिए। भगवान विष्णु को सम्मानपूर्वक जगाकर रथ पर विराजमान करना चाहिए और तभी उनकी पूजा करनी चाहिए। तुलसी के पत्ते इस दिन नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि तुलसी और शालिग्राम का विवाह इसी दिन होता है। इसके अलावा देर से नहीं सोना चाहिए और ब्रह्म मुहूर्त में जागकर श्रीहरि का नाम स्मरण करना चाहिए।


धार्मिक विशेषज्ञों का मानना है कि देवउठनी एकादशी पर किए गए पूजा और धार्मिक कार्य पूरे वर्ष के लिए मंगलकारी प्रभाव रखते हैं। यह दिन विशेष रूप से किसानों, व्यापारियों और गृहस्थों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। परिवार के सभी सदस्य सुबह जल्दी उठकर पूजा में शामिल हों तो घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। इस अवसर पर मंदिरों और घरों में भव्य रूप से भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है और विशेष भोग एवं प्रसाद वितरित किया जाता है।


देवउठनी एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी परिवार और समाज में एकता, अनुशासन और धार्मिक जागरूकता को बढ़ावा देती है। यह पर्व जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने, आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सौहार्द को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन का आयोजन सही मुहूर्त और विधि-विधान के साथ करना सभी के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।