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Politics: न्यायपालिका और संसद की भूमिका को लेकर उठे विवाद में अब राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJD) के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा भी कूद पड़े हैं। उन्होंने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के उस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें दुबे ने कहा था, "अगर कानून बनाना सुप्रीम कोर्ट का काम है तो फिर संसद में ताला लगा देना चाहिए।"
कुशवाहा ने इस बयान को "कहीं से भी उचित नहीं" करार दिया और कहा कि "न्यायपालिका का सम्मान बनाए रखना भारत के एक-एक नागरिक का कर्तव्य है।" उन्होंने निशिकांत दुबे के बयान को मूल मुद्दों से भटकाने वाला बताया है ।अपने बयान में उपेन्द्र कुशवाहा ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि ब्लौकेज हार्ट में हो और डॉक्टर यदि दिमाग की सर्जरी करने लग जाए तो रोगी का क्या होगा? इसके जरिए उन्होंने इशारा किया कि समस्या कहीं और है लेकिन ध्यान कहीं और भटकाया जा रहा है।
कुशवाहा ने मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम को असल बीमारी बताया और कहा कि यदि इस बीमारी को जड़ से खत्म करना है तो प्रतियोगिता परीक्षा के ज़रिए जजों की नियुक्ति की पारदर्शी व्यवस्था लागू करनी होगी। उन्होंने सोशल मीडिया पर #हल्ला_बोल_दरवाजा_खोल और #OpenTheGates जैसे हैशटैग के साथ आंदोलन छेड़ने की भी बात कही।
उन्होंने लिखा "अगर बीमारी की जड़ कॉलेजियम सिस्टम है, तो उसे हटाकर न्यायपालिका में पारदर्शी बहाली के लिए हल्ला बोलना होगा।"कुशवाहा का यह बयान न केवल बीजेपी सांसद के बयान पर तीखा प्रहार है, बल्कि देश की न्यायिक व्यवस्था में सुधार की ज़रूरत पर भी एक जोरदार बहस की शुरुआत कर सकता है।