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05-Mar-2025 01:35 PM
Bihar Politics : सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद आखिरकार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने आरजेडी एमएलसी सुनील सिंह की सदस्यता बहाल कर दी। 25 फरवरी के प्रभाव से सभापति अवधेश नारायण सिंह ने आज उनकी सदस्यता बहाली की घोषणा की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मिमिक्री करने पर विधान परिषद की आचार समिति ने उनकी सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया। इसके बाद सुनील सिंह ने सभापति को पत्र लिखकर सदस्यता बहान करने का आग्रह किया था। उन्होंने अपने पत्र में लिखा था कि विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मेरी बहाली को जल्द से जल्द औपचारिक रूप से अधिसूचित किया जाए ताकि मैं 28 फरवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में सार्वजनिक चिंता का मुद्दा उठा सकूं। आपके त्वरित संदर्भ और आवश्यक अनुपालन के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 25 फरवरी 2025 के फैसले की एक प्रति संलग्न है। इसलिए मैं एक बार फिर मेरी सदस्यता को तत्काल प्रभाव से बहाल करने के लिए आपका तत्काल ध्यान आकृष्ट करता हूं।
इसके बाद आज उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई। हालांकि सदस्यता बहाली के लिए सुनील सिंह को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। मामला 2020 का है, जब विधान परिषद में सुनील सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नकल की थी। उनकी मिमिक्री पर सदन में खूब हंगामा हुआ था। सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कड़ा ऐतराज जताया था। एनडीए के साथियों ने भी सुनील सिंह की निंदा की थी और कहा था यह आचार संहिता के खिलाफ है।
इसके बाद मामले को विधान परिषद की आचार समिति के पास गया। समिति ने सुनील सिंह की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश कर दी और विधान परिषद से इसकी मंजूरी भी मिल गई। इस फैसले के खिलाफ सुनील सिंह ने सुप्रीम अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद विधान परिषद के फैसले को पलट दिया और 25 फरवरी को उनकी सदस्यता बहाल करने का आदेश जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि मिमिक्री करना गलत हो सकता है, लेकिन इसके लिए किसी की सदस्यता रद्द करना उचित नहीं है।
हालांकि सुप्रीम आदेश आने के बाद भी सुनील सिंह की सदस्यता बहाल नही हो सकी थी। 28 फरवरी से बजट सत्र शुरू होने वाला था और सुनील सिंह इसमें भाग लेना चाहते थे। उन्होंने पत्र लिखकर सभापति को सुप्रीम आदेश की याद दिलाई और विधान परिषद में सदस्यता तत्काल प्रभाव से बहाल करने आ आग्रह किया। उन्होंने पत्र में यह भी लिखा कि आपका सम्मानित कार्यालय संविधान और कानून के शासन को कायम रखने के लिए जाना जाता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मेरी बहाली के संबंध में एक स्पष्ट और बाध्यकारी निर्देश जारी किया है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 और 142 के अनुसार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सभी आदेश पूरे देश में बाध्यकारी हैं। उनका अक्षरशः और भावना दोनों में तुरंत पालन किया जाना चाहिए। इस फैसले को लागू करने में किसी भी देरी को बाध्यकारी संवैधानिक निर्देश का अनुपालन न करना माना जा सकता है और यह अदालत की अवमानना हो सकती है। आपके ध्यान में यह लाना भी उचित है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय पहले ही यह व्यवस्था दे चुका है कि विधायी निकाय का पीठासीन अधिकारी जवाबदेह है और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अधीन है।
इसलिए, मैं विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मेरी बहाली को जल्द से जल्द औपचारिक रूप से अधिसूचित किया जाए। पांच मांर्च को सभापति ने उनकी सदस्यता बहाल कर दी। अब वे सदन की कार्यवाही में नियमित रूप से भाग ले सकेंगे।