PATNA : समाज के निचले पायदान पर खड़े लोगों तक विकास की धारा पहुंचाने को लेकर सरकार चाहे लाख दावे कर ले, लेकिन उस की जमीनी हकीकत कुछ और है. राज्य में एसटी वर्ग की बदहाली को लेकर हाईकोर्ट ने जो ताजा टिप्पणी की है. वह आंख खोल देने वाला है. हाईकोर्ट ने एसटी की बदहाल स्थिति को लेकर राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है. चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने कोर्ट मित्र की रिपोर्ट के आधार पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्य में एसटी कल्याण के लिए बजट का जो हाल है वह शॉकिंग है.
हाईकोर्ट में बिहार आदिवासी अधिकार फोरम की तरफ से एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इस जनहित याचिका में जनजातियों की बदहाल स्थिति को लेकर सवाल खड़े किए गए थे. कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के ऊपर तल्ख टिप्पणी की है. एसटी वर्ग को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई है उसके मुताबिक अनुसूचित जनजाति समाज के कल्याण के लिए बजट में जो राशि आवंटित की जाती है वह खर्च नहीं हो पाती और लौट जाती है.
20 एकलव्य स्कूलों को स्वीकृति दी गई थी लेकिन एक भी स्कूल कार्यरत नहीं है. राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष का पद 2018 से खाली पड़ा है. लगभग ढाई लाख की आबादी के बीच लड़कियों के लिए केवल एक राजकीय हायर सेकेंडरी स्कूल है. इन तमाम बातों के सामने आने के बाद कोर्ट ने एडवोकेट सिद्धार्थ प्रसाद को कोर्ट मित्र नियुक्त करते हुए बिहार की अनुसूचित जनजाति के बारे में विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है.