DELHI : सृजन घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की है. भागलपुर के डीएम रहे आईएएस अधिकारी वीरेंद्र यादव पर घोटाले में शामिल रहने का आरोप लगाते हुए CBI ने कोर्ट में चार्जशीट दायर कर दी है. वीरेंद्र यादव फिलहाल बिहार सरकार के पिछड़ा और अति पिछड़ा कल्याण विभाग में विशेष सचिव के पद पर तैनात हैं.
वीरेंद्र यादव ने किया था बड़ा कारनामा
स़जन घोटाले में सीबीआई की जांच रिपोर्ट से वीरेंद्र यादव के कारनामे हो रहे हैं. सीबीआई की जांच रिपोर्ट के मुताबिक तो फर्जी बैंक चला रहे 'सृजन' के खातों में सबसे अधिक सरकारी राशि का फर्जी तरीके से ट्रांसफर तत्कालीन जिलाधिकारी वीरेंद्र कुमार यादव के समय हुआ. वीरेंद्र यादव जुलाई 2014 से अगस्त 2015 तक भागलपुर के जिला अधिकारी रहे. वीरेंद्र यादव के निर्देश पर तकरीबन 300 करोड़ रूपये सृजन में ट्रांसफर किया गया था. इसमें जिला भू-अर्जन कार्यालय का 270 करोड़ रुपये और मुख्यमंत्री नगर विकास योजना की 12 करोड़ 20 लाख रुपया शामिल था.
वीरेंद्र यादव शुरू से ही जांच के दायरे में थे
वीरेंद्र यादव शुरू से ही इस मामले की जांच के दायरे में थे. सीबीआई को ऐसे कई साक्ष्य मिले थे जिससे साबित हो रहा था कि वीरेंद्र यादव ने सृजन के घोटालेबाजों के साथ मिलकर मोटी कमाई की. सीबीआई ने उनकी संपत्ति की जांच में भी कई गडबड़िया पकड़ी थी. इसके बाद उनके खिलाफ जांच का दायरा बढाया गया और सीबीआई ने उन्हें अभियुक्त बनाते हुए चार्जशीट दायर कर दी है.
क्या है सृजन घोटाला
आइये हम आपको एक बार फिर बता दें कि सृजन घोटाला है क्या
भागलपुर के सृजन महाघोटाले की मास्टरमाइंड मनोरमा देवी नामक महिला थी, जिनका तीन साल पहले निधन हो गया. मनोरमा देवी की मौत के बाद उनकी बहू प्रिया और बेटा अमित कुमार इस घोटाले के सूत्रधार बने. प्रिया झारखण्ड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनादि ब्रह्मा की बेटी हैं जो पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय के करीबी माने जाते हैं. मनोरमा देवी और उनकी संस्था सृजन को शुरू के दिनों में अमिताभ वर्मा, गोरेलाल यादव, के पी रामैया जैसे कई अधिकारियों ने बढ़ाया. गोरेलाल यादव के समय एक अनुसंशा पर दिसंबर 2003 में सृजन के बैंक खाते में सरकारी पैसा जमा करने का आदेश दिया गया. उस समय बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं. रामैया ने 200 रुपये के महीने पर सबौर ब्लॉक में जमीन का बड़ा प्लॉट सृजन को दिया गया.
मामले का खुलासा 2017 में हुआ जब जांच शुरू हुई तो ये पाया गया कि सरकारी राशि को सरकारी बैंक खाता में जमा करने के बाद तत्काल अवैध रूप से साजिश के तहत या तो जाली दस्तखत या बैंकिंग प्रक्रिया का दुरुपयोग कर सृजन के खाते में ट्रांसफर कर लिया जाता था. जब भी किसी लाभार्थी को चेक के द्वारा सरकारी राशि का भुगतान किया जाता था तो उसके पूर्व ही अपेक्षित राशि सृजन द्वारा सरकारी खता में जमा कर दिया जाता था. इस सारे खेल में सृजन की सचिव मनोरमा देवी के अलावा, सरकारी पदाधिकारी और कर्मचारी और बैंको के पदाधिकारी और उनके कर्मचारी शामिल होते थे.
जिला प्रशासन से सम्बंधित बैंक खातों के पासबुक में एंट्री भी फ़र्ज़ी तरीके से की जाती थी. स्टेटमेंट ऑफ़ अकाउंट को बैंकिंग सॉफ्टवेयर से तैयार नहीं कर फ़र्ज़ी तरीके से तैयार किया जाता था. सृजन के पास गये पैसे को बाजार में ऊंचे सूद पर लगा दिया जाता था या ऐसे धंधे में निवेश किया जाता था जहां से मोटा रिटर्न हासिल होता था. पूरे खेल में सृजन के संचालक सरकारी अधिकारियों का खास ख्याल रखते थे, उन्हें करोड़ों के कमीशन और उपहार दिये जाते थे.