राज्य के इंजीनियर भी नीतीश सरकार के फैसले के विरोध में उतरे, जबरन रिटायरमेंट को अत्याचार बताया

राज्य के इंजीनियर भी नीतीश सरकार के फैसले के विरोध में उतरे, जबरन रिटायरमेंट को अत्याचार बताया

PATNA : 50 साल की उम्र पार कर चुके अक्षम कर्मियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने के लिए राज्य सरकार ने कमेटी क्या बनाई इसका विरोध शुरू हो गया। बिहार पुलिस मेंस एसोसिएशन के बाद अब बिहार अभियंत्रण सेवा संघ ने भी राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। बेसा ने बयान जारी करते हुए कहा है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की आड़ में सरकार अभियंताओं पर प्रशासनिक अत्याचार बंद करें।


बिहार अभियन्त्रण सेवा संघ के महासचिव डॉ. सुनील कुमार चौधरी ने अनिवार्य  सेवानिवृत्ति की आड़ में अभियंताओं पर प्रशासनिक अत्याचार बन्द करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि भवन निर्माण विभाग में बिना किसी वाजिब कारण के 6 अभियंताओं को जबरन सेवानिवृत्ति दे दी गई। जिससे अभियंताओं में दहशत का माहौल व्याप्त है। बेसा इन अभियंताओं की विभाग में वापसी की मांग करता है।अगर सरकार का अभियंताओं के प्रति इस तरह की अवैज्ञानिक दृृष्टीकोण एवं अड़ियल रवैया जारी रहा तो संघ आर-पार की लड़ाई लड़ने को मजबूर होगा।


अभियंत्रण  विभागों  में जहां एक तरफ आधा से अधिक पद रिक्त रहने के कारण अभियंता कार्य बोझ तले दबे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ जिम्मेवारियों के बोझ तले दबे अभियंता अनिवार्य  सेवानिवृत्ति के डर के साये में जी रहे हैं। 50 वर्ष से ऊपर आयु के अभियंता जीवन काल के इस पड़ाव पर हैं जहाँ जिम्मेवारियां मुंह बाये खड़ी रहती है। ऐसे में अभियंताओं को जबरन रिटायर कर देना मानवता के साथ क्रूर मजाक है। इस प्रकार की नीति को अपनाकर राज्य को विकसित राज्यों की कतार में खड़ा करना केवल काल्पनिक सोच साबित हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि एक तरफ प्रगति के पथ पर बढ़ते बिहार को विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचाने को कटिबद्ध अभियंताओं की जायज मांगों एवं ज्वलंत समस्याओं पर सरकार थ्यान नहीं दे रही है। वही दूसरी तरफ सरकार नये-नये प्रयोग कर अभियंताओं के सामने नयी-नयी समस्याएं खड़ी कर रही है।


50 वर्ष से ऊपर एवं अक्षमता का कोई स्थापित सम्बन्ध नहीं है। सरकार के इस तरह के निर्णय से ऐसा प्रतीत होता है कि अक्षमता की शुरुआत 50 वर्ष से ऊपर के आयु में ही शुरू होती है एवं केवल सरकारी कर्मियों मे ही परिलक्षित होती है। जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस प्रकार का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे सरकारी तंत्र में भयादोहन के माहौल को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह की नीति से प्रशासनिक चाटुकारिता बढ़ेगी। अभियंताओं के आत्मविश्वास एवं मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। भय के साये मे जीने से कार्यक्षमता प्रभावित होगी जो अन्ततः बिहार के विकास को प्रभावित करेगा। इस तरह की अवैज्ञानिक एप्रोच वाली नीति को अमलीजामा पहनाने से पहले "50 वर्ष से ऊपर अक्षम सरकारी नौकर" जैसे वाक्य की विस्तृत व्याख्या होनी चाहिए। सामाजिक अनुसंधान होनी चाहिए एवं किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले  समाज के विभिन्न वर्गों में  एक बड़ी बहस करायी जानी चाहिए। अन्यथा सरकारी कर्मियों के आक्रोश की आग में प्रशासनिक अकड़ स्वाहा हो जायेगा।