नीतीश के चूहे-बिल्ली के खेल से टूट गया प्रशांत किशोर का सब्र का बांध? अलग हो गये JDU और PK के रास्ते, पढ़िये इनसाइड स्टोरी

नीतीश के चूहे-बिल्ली के खेल से टूट गया प्रशांत किशोर का सब्र का बांध? अलग हो गये JDU और PK के रास्ते, पढ़िये इनसाइड स्टोरी

PATNA: नागरिकता संशोधन विधेयक पर नीतीश कुमार के खिलाफ प्रशांत किशोर की तीखी टिप्पणी के बाद अब ये अनुमान लगाया जा रहा है कि दोनों के रास्ते जुदा हो गये हैं. यानि एक बार फिर नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की यारी टूट चुकी है. अब सवाल ये उठ रहा है कि कभी नरेंद्र मोदी के लिए तो कभी शिवसेना के लिए हिंदूवादी एजेंडा तैयार करने वाले प्रशांत किशोर अचानक से इतने “सेक्यूलर” कैसे  हो गये. सियासी जानकार बताते हैं कि चुनावी मैनेजर प्रशांत किशोर उस खेल से उब गये हैं जो पिछले डेढ़ साल से नीतीश कुमार उनके साथ खेल रहे हैं. पढ़िये इनसाइड स्टोरी

नीतीश को प्रशांत किशोर ने क्यों कोसा

दरअसल प्रशांत किशोर ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर कल ट्वीट कर जदयू को जी भर के कोसा. उन्होंने कहा कि वे नागरिकता संशोधन विधेयक पर जदयू के स्टैंड से हैरान हैं. जबकि जदयू के संविधान में पहले पन्ने पर सेक्यूलर शब्द तीन दफे लिखा है और पार्टी के नेता गांधीवादी आदर्शों पर चलने का दावा करते हैं. प्रशांत किशोर जदयू के उपाध्यक्ष हैं और खुले तौर पर नीतीश की आलोचना ने बता दिया कि उन्हें अब पार्टी और नीतीश कुमार की परवाह नहीं है. मजेदार बात ये है कि ये वही प्रशांत किशोर हैं जिनके बार में इसी साल नीतीश कुमार ने सार्वजनिक मंच से बताया कि अमित शाह ने दो दफे पैरवी करके उन्हें जदयू में शामिल करने को कहा था. ऐसे में सवाल उठेंगे ही कि अमित शाह की पैरवी पर जदयू में इंट्री मारने वाले प्रशांत किशोर इतने सेक्यूलर कैसे हो गये.



नीतीश के चूहे-बिल्ली के खेल से उब गये PK

जदयू के जानकार बताते हैं कि प्रशांत किशोर सेक्यूलर नहीं हुए बल्कि नीतीश के चूहे बिल्ली के खेल से त्रस्त होकर उनके सब्र का बांध टूट गया. उन्हें JDU और नीतीश से पीछा छुडाने का ये सही मौका नजर आया. लिहाजा मौके पर वार कर दिया. पूरे घटनाक्रम से समझिये माजरा क्या है.

2015 के चुनाव में नीतीश कुमार के लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर की 2018 में जदयू में एंट्री हुई. नीतीश ने उन्हें पार्टी में शामिल कराया और नंबर दो की हैसियत देते हुए उपाध्यक्ष बना दिया. माहौल ऐसा तैयार किया गया जैसे प्रशांत किशोर के हाथों में ही पार्टी की पूरी कमान दे दी गयी है.

लेकिन कुछ महीने बाद ही भरी सभा में नीतीश ने प्रशांत किशोर का पानी उतार दिया. एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में नीतीश ने कहा कि उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह की पैरवी पर प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल किया है. अमित शाह ने दो दफे फोन कर प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल करने का सुझाव दिया था. नीतीश के इस खुलासे के बाद जदयू में प्रशांत किशोर का ग्राफ अचानक से उतर गया. PK की एंट्री से अलग थलग पड़ा RCP सिंह का खेमा फिर से चढ़ बैठा. हालत ये हुई कि आरसीपी सिंह से लेकर नीरज कुमार जैसे नेताओं ने प्रशांत किशोर के खिलाफ जमकर बयानबाजी की. ये वाकया 2019 की शुरूआत का है. प्रशांत किशोर उस दौरान पूरे बिहार का दौरा करने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अचानक से सारा तामझाम समेट कर PK वापस दिल्ली लौट गये.

जदयू के जानकारों के मुताबिक PK के साथ ऐसा ही खेल झारखंड को लेकर भी हुआ. नीतीश कुमार ने उन्हें झारखंड चुनाव को लेकर पार्टी की रणनीति तैयार करने का जिम्मा दिया. प्रशांत किशोर ने झारखंड जदयू के नेताओं के साथ बैठ कर रणनीति तैयार करना शुरू किया. लेकिन इसकी खबर मिलते ही वहां अचानक से आर सी पी सिंह का खेमा सक्रिय हो गया. RCP सिंह खेमे के लोग रांची में बैठ गये और पार्टी के जो भी गिने-चुने नेता थे उन्हें अपना फरमान जारी करने लगे. मजेदार बात तो ये थी कि नीतीश चुपचाप बैठ कर सारा खेल देख रहे थे. आखिरकार प्रशांत किशोर को झारखंड से भी कदम खींचने पड़े.

जानकार बताते हैं कि PK के साथ एक और खेल राजद से दोस्ती को लेकर भी हुआ. लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने नीतीश को भाव देना बंद कर दिया था. बेचैन नीतीश ने लालू के पास प्रस्ताव लेकर प्रशांत किशोर को ही भेजा था. नीतीश ने लालू को प्रस्ताव दिया था कि दोनों पार्टियों का विलय कर दिया जाये. प्रशांत किशोर लालू से बात कर रहे थे और इसी बीच भाजपा ने एलान कर दिया कि नीतीश कुमार ही अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे. नीतीश ने राजद वाला चैप्टर ही क्लोज कर दिया. प्रशांत किशोर को यहां भी फजीहत झेलनी पड़ी.

प्रशांत किशोर के नजदीकी बताते हैं कि नीतीश के इस खेल से PK उब चुके थे. वैसे भी उन्हें बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक चुनाव प्रबंधन का ढ़ेर सारा काम मिल चुका है. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे से उनकी नजदीकी की चर्चा आम है. लिहाजा प्रशांत किशोर अब जदयू और नीतीश कुमार से पल्ला झाडना चाह रहे थे. नागरिकता संशोधन विधेयक पर जदयू के खिलाफ प्रशांत किशोर का बयान इसी का परिणाम है.