DESK : नवरात्रि के 9 दिनों में अष्टमी का दिन बेहद खास महत्व रखता है. इस लिए इसे महाष्टमी कहा जाता है. इस दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है. महागौरी मां पार्वती का दूसरा नाम है. दुर्गाष्टमी के दिन विधि विधान से महागौरी की पूजा की जाती है. इस दिन बहुत से भक्त उपवास रखते है. ऐसा माना जाता है की जो भक्त पुरे नौ दिनों का व्रत नहीं रख सकते वो नवरात्र के पहले दिन और अष्टमी का व्रत रखें तो उनके भी सरे मनोरथों को मां पूरा करती है. महागौरी के पूजन से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. सुख, समद्धि के साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. माता महागौरी की कृपा से भक्तों के असंभव लगने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं.
मां महागौरी का स्वरुप
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति देवी महागौरी का स्वरूप अत्यंत सौम्य है. मां गौरी का रूप बेहद सरस, सुलभ और मोहक है. देवी मां का वर्ण अत्यंत गौर हैं. मां हमेशा सफेद वस्त्र और आभूषण धारण करती है. इनकी चार भुजाएं हैं. देवी के दाहिने ओर के एक हाथ में त्रिशूल है और दूसरा हाथ अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद देते हुए है .वहीं बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ वर मुद्रा में है. महागौरी का वाहन बैल है. इनका स्वभाव अति शांत है.
पूजा विधि
महाष्टमी के दिन स्नान आदि से मुक्त होकर, पूजा स्थान की साफ सफाई करने के बाद पूजा प्रारंभ करें. देवी को अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध आदि चढ़ाएं. पुष्प में मां को लाल गुलाब चढ़ाना न भूलें. मां को लाल पुष्प अति प्रिय है. आज के दिन सुहागिन स्त्रियां देवी मां को सुहाग की चीज़े अर्पित करती है और माता को चुनरी भेंट करती हैं. महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और अपने पति की मंगलकामना के लिए ऐसा करती हैं.
माता का मंत्र
सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते II
इस मंत्र का 108 बार जप करें
महागौरी की कथा
भगवान शिव की प्राप्ति के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था. जब भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर देवी को दर्शन दिया तब उनकी कृपा से इनका शरीर अत्यंत गौर हो गया, जिस कारण इनका नाम गौरी पड़ा. माना जाता है कि माता सीता ने श्री राम की प्राप्ति के लिए इन्ही की पूजा की थी.