DESK : नवरात्रि का आज नौवां और आखरी दिन है. महाष्टमी की तरह ही महानवमी का भी विशेष महत्त्व है इस दिन मां सिद्धिदात्री की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं. ऐसा कहा जाता है की मां सिद्धिदात्री शोक, रोग एवं भय से अपने भक्तों को मुक्ति दिलाती है. सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मनुष्य ही नहीं बल्कि देव, गंदर्भ, असुर, ऋषि आदि सभी इनकी पूजा करते हैं. देवों के देव महादेव भी इनके आराधक हैं.
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं, पर उनका वाहन सिंह है. देवी की चार भुजाएं हैं. वह एक दाएं हाथ में गदा और दूसरे दाएं हाथ में च्रक धारण करती हैं. वहीं मां के बाएं हाथ में कमल का पुष्प और दूसरे बाएं हाथ में शंख धारण करती हैं. मां सिद्धिदात्री शांत मुद्रा में कमल पर विराजमान रहती है.
पूजा विधि
महानवमी के सुबह स्नानादि से निवृत होने के बाद मां सिद्धिदात्री की विधि विधान से पूजा करें. देवी को अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध आदि चढ़ाएं. पूजा में माता को तिल का भोग लगाएं, मान्यता है की ऐसा करने से आपके साथ कोई अनहोनी नहीं होगी. माता सिद्धिदात्री आपकी हमेशा रक्षा करेंगी. . माता की पूजा में उन्हें लाल फूल चढ़ाना न भूलें.
कन्या पूजन
आज के दिन कन्या पूजन की परंपरा रही है. मां के नौ रूपों को मन कर छोटी-छोटी कन्याओं की सेवा की जाती है, आदर सत्कार के साथ भोजन करा कर दक्षिना दे कर विदा किया जाता है. पर इस बार महामारी के कारण सभी को सोशल डिस्टेंस बना के रखने को कहा गया है. इसलिए बेहतर होगा की कन्या पूजन न किया जाये.
मां सिद्धिदात्री का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां सिद्धिदात्री की कथा
जैसा की नाम से ही पता चलता है, माता सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों को देने वाली हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्माण्ड के प्रारंभ में भगवान रूद्र ने देवी आदि शक्ति की आराधना की थी. ऐसी मान्यता है कि देवी शक्ति का कोई स्वरूप नहीं था. सर्वशक्तिमान देवी आदि पराशक्तिकी आराधना करने के कारण भगवन शिव को अर्धनारीश्वर स्वरुप मिला और सिद्धिदात्री स्वरूप में भगवान शिव के शरीर के बाएं भाग पर प्रकट हुईं.