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1st Bihar Published by: Updated Fri, 01 Jan 2021 04:51:14 PM IST
                    
                    
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PATNA : जुलाई 2017 में नीतीश कुमार जब महागठबंधन छोड़कर बाहर आए तब से लगातार आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के निशाने पर वही रहे हैं. लालू यादव चारा घोटाले में सजायाफ्ता होने के बाद भले ही जेल में बंद हो लेकिन उनके ट्विटर हैंडल से नीतीश कुमार पर लगभग हर दिन कोई न कोई ट्वीट जरूर आ जाता है. विधानसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद भी नीतीश लालू के निशाने पर रहे हैं लेकिन पिछले 3 हफ्तों में अचानक नीतीश को लेकर लालू के रुख में बदलाव आया है. लालू यादव ने नीतीश कुमार पर बीते 3 हफ्ते मैं कोई सीधा हमला नहीं बोला.
लालू यादव के ट्विटर हैंडल से 9 दिसंबर को नीतीश कुमार पर किसानों की स्थिति को लेकर हमला बोला गया था. लालू यादव ने तब ट्वीट करते हुए लिखा था "नीतीश कुमार ने अपनी पलटियों से आम बिहारी, छात्र, मज़दूर, नौजवान, शिक्षक, संविदाकर्मी ही नहीं बल्कि किसानों को भी ठगा है. स्वयं झूठ कुमार स्वीकारते है कि उनकी खरीद व्यवस्था सही नहीं है, जिसके कारण बिहारी किसानों को औने-पौने दाम पर फसल को बेचना पड़ता है."
लालू यादव ने 9 दिसंबर को यह ट्वीट किया था लेकिन उसके बाद उन्होंने नीतीश कुमार को लेकर सीधे-सीधे कोई हमला नहीं किया हालांकि लालू यादव के टि्वटर हैंडल से तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी के साथ-साथ आरजेडी की तरफ से किए गए ट्वीट को रिट्वीट जरूर किया जाता रहा. एक तरफ तेजस्वी यादव जहां एनडीए सरकार को अलग-अलग मुद्दों पर आइना दिखा रहे हैं तो वहीं लालू यादव ने नीतीश पर व्यक्तिगत निशानेबाजी बंद कर दी है.
नीतीश कुमार को लेकर लालू यादव के रूप में यह बदलाव क्यों है. सीधे-सीधे समझना मुश्किल है लेकिन बिहार एनडीए में जो कुछ चल रहा है, उसे लेकर लालू अब शायद नीतीश की सियासत पर पैनी नजर गड़ाए बैठे हैं. नीतीश कुमार के साथ बिहार में सरकार चला चुके लालू यादव जानते हैं कि वह गठबंधन की सरकार में किस हद तक दबाव को बर्दाश्त कर पाते हैं. महागठबंधन की सरकार रहते हुए प्रेशर पॉलिटिक्स को लालू ने बखूबी समझा और बुझा है. शायद यही वजह है कि वह मौजूदा वक्त में बीजेपी की राजनीति और नीतीश के मिजाज को बारीकी से पढ़ना चाहते हैं. फिलहाल लालू के निशाने पर नीतीश शायद इन्हीं वजहों से नहीं हैं. 3 हफ्ते गुजर जाने के बावजूद लालू यादव ने नीतीश कुमार पर कोई निशाना नहीं साधा. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नए साल में बिहार के अंदर राजनीतिक समीकरण बदलते हैं तो नीतीश को लेकर लालू की चुप्पी विकल्प की राजनीति का रास्ता बनाएगी.