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कुशवाहा के बयान पर बिफरी BJP, पूछा.. क्या नीतीश से पूछकर कर रहे हैं वंदे मातरम का विरोध?

1st Bihar Published by: Updated Sun, 05 Dec 2021 07:24:25 PM IST

कुशवाहा के बयान पर बिफरी BJP, पूछा.. क्या नीतीश से पूछकर कर रहे हैं वंदे मातरम का विरोध?

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PATNA : विधानसभा चुनाव भले ही उत्तर प्रदेश में होने हैं लेकिन बिहार की सियासत इन दिनों राष्ट्रगीत को लेकर गर्म है। दरअसल बिहार विधानसभा में वंदे मातरम गाए जाने को लेकर जो विवाद शुरू हुआ था उस मामले में एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल इमान की आपत्ति के बाद जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी बयान दे डाला। कुशवाहा का कहना था कि वंदे मातरम गाने को लेकर दबाव बनाना ठीक नहीं है लेकिन अब बीजेपी को कुशवाहा का यही बयान नागवार गुजर रहा है।


बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने वंदे मातरम को लेकर कुशवाहा के बयान पर आपत्ति जताई है। उन्होंने पूछा है कि क्या उपेंद्र कुशवाहा यह बयान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछ कर दे रहे हैं? राजीव रंजन ने कहा कि बात-बात में वंदे मातरम और जन गण मन का अपमान आजकल नकली सेकुलरों के लिए फैशन हो गया है। राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान इस देश की अस्मिता का प्रतीक है। देश के टुकड़े करने का ख्वाब देखने वाले कुछ जिन्नावादी और जेहादी मानसिकता के लोगों को इससे एलर्जी होना स्वाभाविक है। लेकिन इससे चंद वोटों के लिए उनकी धुन पर नाचने वाले 'जयचंदों' की भी पहचान हो जाती है। 


बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने कहा कि राष्ट्रगान का अपमान उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों के अपमान है, जिन्होंने इससे प्रेरणा लेकर अपने प्राण देश पर कुर्बान कर दिए। आजादी के उन दीवानों में सभी धर्मों के लोग शामिल थे, लेकिन कभी भी राष्ट्रप्रेम के प्रदर्शन से उनका धर्म आहत नहीं हुआ। आज जो लोग संविधान की दुहाई देते हुए राष्ट्रगान से इंकार कर रहे हैं, वह बताएं कि संविधान तो शेरवानी पहनने, अरबी नाम और दाढ़ी रखने के लिए भी नहीं कहता। तो फिर वह इन्हें भी क्यों नहीं छोड़ देते?


उन्होंने कहा कि चंद अराजक वोटों के लिए इन जिन्नावादीयों का बचाव करने वाले एक नेताजी के मुताबिक राष्ट्रप्रेम दिखाने के लिए राष्ट्रगान गाना जरूरी नहीं है। याद करें तो यह नेताजी कुछ महीने पहले जातिगत जनगणना न करवाने पर इस्लाम अपनाने की धमकी भी दे चुके हैं। वास्तव में यह नेता जी वर्तमान युग के जोगेन्द्रनाथ मंडल बनना चाहते हैं, जिन्होंने जिन्नावादियों के फेर में अपने हजारों समर्थकों को पाकिस्तान ले जाकर कटवा दिया था। इन नेताजी को बताना चाहिए कि जनसेवा के लिए राजनीति में आना और कुर्सी पकड़ना भी जरूरी नहीं है तो वह राजनीति छोड़ क्यों नहीं देते? नेताजी को चाहिए कि अपनी बात को सही साबित करने के लिए आज ही राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दें।


उन्होंने यह भी कहा कि संविधान में कहीं नहीं लिखा कि माता-पिता से प्रेम दिखाने के लिए उनकी सेवा करनी चाहिए, तो क्या लोग उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं? यदि इस तरह के नेता समझते हैं कि राष्ट्रगान के खिलाफ बोलने से धर्मविशेष के लोग उन्हें वोट देने लगेंगे तो यह उनकी भूल है। इस तरह की अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देकर वह चंद जिन्नावादियों को अपने पाले में जरुर खड़ा कर सकते हैं, लेकिन एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ़ खड़ा हो जायेगा।