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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 27 Sep 2023 11:30:02 AM IST
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PATNA: बिहार के सियासी गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म है. खबर ये आ रही है कि जेडीयू में नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच शीत युद्ध शुरू हो चुका है. सोमवार को नीतीश कुमार की मौजूदगी में ललन सिंह और मंत्री अशोक चौधरी के बीच हुई तीखी बहस इसी का परिणाम है. सियासी जानकार सवाल ये उठा रहे हैं कि क्या ललन सिंह 2010 वाली कहानी फिर से दुहरायेंगे.
नीतीश बनाम ललन
इस कहानी को समझने के लिए पहले ये जानिये कि सोमवार को नीतीश कुमार के आवास पर क्या हुआ. सोमवार को नीतीश कुमार ने अपने आवास पर पार्टी के 243 विधानसभा प्रभारियों की बैठक बुलायी थी. इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से लेकर नीतीश के किचन कैबिनेट में शामिल कुछ खास मंत्री भी शामिल हुए थे. बैठक जब खत्म हुई तो ललन सिंह और मंत्री अशोक चौधरी के बीच बहस शुरू हो गयी.
वहां मौजूद जेडीयू नेताओं के मुताबिक ललन सिंह ने अशोक चौधरी से पूछा था कि वे बार-बार बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में क्यों जा रहे हैं. ये बात सुनते ही अशोक चौधरी भड़क गये. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि अशोक चौधरी ने ललन सिंह को कहा कि उनसे पूछ कर कहीं नहीं जायेंगे. वे मुख्यमंत्री को बताकर बरबीघा या कहीं और जाते हैं. ललन सिंह के रोकने पर रूकने वाले नहीं हैं और जाते ही रहेंगे. इस मसले पर ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच बेहद तल्ख बहस हुई और वह भी काफी ऊंची आवाज में. दोनों को झगड़ते देख वहां मौजूद ढेर सारे नेता इकट्ठा हो गये. सबने देखा कि एक मंत्री पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को हैसियत बता रहा है.
नीतीश ने चुप्पी साध ली
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जब ये वाकया शुरू हुआ था तो नीतीश कुमार वहीं थे. लेकिन बहस बढ़ने के साथ ही नीतीश वहां से निकल गये. उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मंत्री के बीच तू-तू मैं-मैं हो रही थी, जिसे जेडीयू के सैकडों नेता देख रहे थे लेकिन नीतीश ने कुछ नहीं बोला. मुख्यमंत्री ने दोनों को शांत कराने की भी कोई कोशिश नहीं की.
सर्वशक्तिमान अध्यक्ष की फजीहत के पीछे मामला क्या है
जेडीयू ने अपनी स्थापना के बाद कई राष्ट्रीय अध्यक्ष को देखा है. पहले जार्ज फर्नांडीज फिर शरद यादव. उसके बाद नीतीश कुमार, आरसीपी सिंह और अब ललन सिंह. नीतीश कुमार को छोड़ दें तो ललन सिंह जेडीयू के अब तक के सारे अध्यक्षों में सबसे पावरफुल माने जाते रहे हैं. पार्टी के नेता मानते रहे हैं कि नीतीश कुमार को सामने से जवाब देने की हिम्मत सिर्फ ललन सिंह की रही है. लेकिन सोमवार को पार्टी के सैकड़ों छोटे नेताओं के बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष की छीछालेदर हो गयी. ऐसा छीछालेदर पार्टी के किसी और राष्ट्रीय अध्यक्ष की नहीं हुई थी कि कोई मंत्री कह दे कि आप कौन होते हैं आर्डर देने वाले.
अशोक चौधरी से मुस्कुरा कर मिले नीतीश
जेडीयू के नेताओं का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि अशोक चौधरी के पीछे नीतीश कुमार की ताकत है. अगर नीतीश का संरक्षण नहीं होता तो ललन सिंह जैसे कद्दावर नेता को जवाब देने की हिम्मत जेडीयू में किसी की नहीं हो सकती. इसका उदाहरण भी अगले ही दिन मिल गया. सोमवार को ललन सिंह और अशोक चौधरी में तकरार हुई. मंगलवार को नीतीश कुमार मंत्रियों के दफ्तरों का निरीक्षण करने पहुंचे. नीतीश ने खास तौर पर विकास भवन स्थित सचिवालय का दौरा किया, जहां करीब एक दर्जन मंत्रियों का दफ्तर है. लेकिन उसके बाद वे विश्वेश्वरैया भवन स्थित सचिवालय में भी पहुंच गये. वहां भी कई मंत्रियों का दफ्तर है. लेकिन नीतीश कुमार खास तौर पर भवन निर्माण विभाग के ऑफिस में गये, जिसके मंत्री अशोक चौधरी है. भवव निर्माण विभाग के मंत्री के चेंबर में अशोक चौधरी के साथ खड़े होकर मुस्कुराते नीतीश की तस्वीर और वीडियो भी सरकार की ओर से ही जारी किया गया.
नीतीश ने रोका ललन सिंह का फैसला
कुछ महीने पहले जेडीयू की प्रदेश कमेटी का गठन किया गया था. वैसे तो कागज पर प्रदेश कमेटी का गठन प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने किया लेकिन ये जगजाहिर है कि सारे नाम और पद ललन सिंह से तय किया था. ये ललन सिंह का ही आइडिया था कि प्रदेश के पदाधिकारियों को एक-एक विधानसभा का प्रभारी बनाया जाये. इसके बाद प्रदेश पदाधिकारियों को विधानसभा क्षेत्रों का प्रभारी बनाया गया था. लेकिन नीतीश कुमार ने सोमवार को विधानसभा प्रभारियों की बैठक बुलाकर सबको हटाने का आदेश जारी कर दिया. नीतीश ने कहा कि अब कोई विधानसभा प्रभारी नहीं होगा बल्कि एक जिले में कई लोगों की टीम होगी और वे सब मिलकर पूरे जिले का काम देखेंगे. नीतीश के इस आदेश से भी यही मैसेज गया कि ललन सिंह के फैसलों को पलटा जा रहा है.
पहले से ही चल रहा है शीतयुद्ध
वैसे पिछले एक महीने से ये दिख रहा था कि ललन सिंह और नीतीश कुमार के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है. महिला आरक्षण बिल पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन करने का फैसला नीतीश कुमार ने बगैर ललन सिंह से राय लिये किया. इसकी घोषणा दिल्ली में बैठे केसी त्यागी से करायी गयी. महिला आरक्षण बिल पर जब लोकसभा में चर्चा हो रही थी तो ललन सिंह बेहद तल्ख अंदाज में केंद्र सरकार पर हमला बोल रहे थे. वहीं, नीतीश कुमार इस दौरान जब भी मीडिया से बात कर रहे थे तो केंद्र सरकार पर उनका रूख बेहद नरम था. नीतीश कुमार महिला आरक्षण बिल का स्वागत कर रहे थे तो ललन सिंह केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोल रहे थे. एक ही मसले पर नीतीश और ललन सिंह के अलग अलग तेवर को सियासी जानकार पहले से नोटिस कर रहे थे.
क्या 2009-10 की पुनरावृति होगी
जेडीयू के नेता ऐसे कई वाकये बताते हैं कि जिससे ये दिख रहा है कि नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच शीतयुद्ध चल रहा है. 13 सितंबर को दिल्ली हुई विपक्षी गठबंधन इंडिया की कोओर्डिनेशन कमेटी बैठक में ललन सिंह के नहीं जाने के मामले भी इससे ही जोड़ कर देखा जा रहा है. उस समय ये कहा गया था कि ललन सिंह बीमार हैं इसलिए वे बैठक में नहीं गये. जबकि बैठक से दो दिन पहले औऱ दो दिन बाद ललन सिंह सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिख रहे थे.
ऐसे में सियासी जानकारों को 2009-10 का वाकया याद आ रहा है. ये तब का दौर था जब ललन सिंह जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे. उस दौरान भी नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच जंग छिड़ी थी. ललन सिंह ने पहले प्रदेश अध्यक्ष बनने से इंकार किया और फिर पार्टी ही छोड़ दिया था. ललन सिंह तब कांग्रेस के साथ चले गये थे.
पेंट में दांत वाले डायलॉग पर अब भी होती है चर्चा
2009-10 में जब ललन सिंह ने नीतीश कुमार से नाता तोड़ लिया था तो उस दौरान मीडिया में दिये गये एक बयान पर आज भी चर्चा होती है. ललन सिंह ने उस समय ये क्या कहा था कि नीतीश कुमार के पेट में दांत है. ललन सिंह ने कहा था कि वे होम्योपैथिक डॉक्टर हैं और नीतीश कुमार के पेट के दांत को चुन चुन कर निकालेंगे. हालांकि 2010 में कांग्रेस को सपोर्ट करने का ललन सिंह का फैसला बेहद गलत साबित हुआ. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस औंधे मुंह गिरी. बाद में ललन सिंह भी नीतीश कुमार के साथ वापस लौट आये.
अब सवाल ये उठ रहा है कि जेडीयू में क्या एक बार फिर 14 साल पुरानी कहानी दुहरायी जायेगी. दरअसल ललन सिंह को जानने वाले लोग जानते हैं कि वे अपने दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए हर हद तक जाते हैं. अशोक चौधरी ने उनसे पंगा लिया है तो ललन सिंह उसने बदला लेने की हरसंभव कोशिश करेंगे. अगर उसमें नीतीश कुमार बाधा बनेंगे तो फिर 14 साल पुरानी कहानी दुहरायी जा सकती है.