DESK : आज हम उस नेता की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक नारा दिया था और कहा था 'दिल्ली में नरेंद्र…महाराष्ट्र में देवेंद्र' भले ही इस बात को साकार करने में उसे पांच साल का समय लग गया है, लेकिन इसकी पठकथा उसने काफी होशियारी से लिखी और उसने शतरंज की ऐसी विसात बिछाई को मोदी-शाह की भी पीछे हटना पड़ा।
" मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना. मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा"। साल 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा में देवेंद्र फडणवीस ये लाइन कही थी। जब जनादेश में उनकी पार्टी तो सबसे आगे थी, मगर गठबंधन के समीकरण के कारण उन्हें विपक्ष में बैठना पड़ा। तब शायद ही किसी ने ऐसा सोचा होगा की आखिर एक युवा नेता इस तरह की बातें क्यों बोल रहा है। कहीं इसने कुछ बड़ा तो प्लान नहीं किया है। सबने यही सोचा की इसके मन की भड़ास है चंद दिनों में खत्म हो जाएगी।
लेकिन, इस युवा नेता ने इन पांच सालों में ऐसी चाल चली कि अब महाराष्ट्र की सियासत 360 डिग्री बदल चुकी है। देवेंद्र फडणवीस अब सियासी शतरंज के मंझे हुए खिलाड़ी हो चुके हैं और अब हारी हुई बाजी को पलटने का हुनर सीख चुके हैं। इन सालों में उन्होंने ऐसी बिसात बिछाई।जिसमें बड़े -बड़े सुरमा भी पानी मांगने लगे हैं। उनकी एक चाल में फंसकर तो शिवसेना और NCP के दो फाड़ हो गए और महाराष्ट्र के सारे सियासी दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए देवेंद्र फडणवीस सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं और उन्होंने 2019 में कही अपनी लाइनों को सही साबित किया है।
अब देवेंद्र फडणवीस वापस लौटे हैं और पूरी ठसक और तेवर के साथ लौटे हैं। लेकिन देवेंद्र फडणवीस का ये सफर इतना आसान भी नहीं रहा। साल 2019 से 2024 तक महाराष्ट्र की राजनीति में कई फेरबदल हुए और फडणवीस उन बदलावों के केंद्र में रहे। इसका एक उदाहरण तो ऐसे भी समझा जा सकता है कि शिवसेना और NCP में बगावत और बीजेपी की सत्ता में वापसी के बावजूद देवेंद्र का डिमोशन हुआ।
दूसरा उदाहरण इस तरह से भी समझा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2024. जिसमें बीजेपी दहाई के आंकड़े को भी छू नहीं पाई। इन परिणामों के बाद देवेंद्र फडणवीस के भविष्य पर अटकलबाजियां होने लगीं। उन्होंने खुद भी डिप्टी सीएम का पद छोड़ने की पेशकश की। उनके केंद्र सरकार की कैबिनट में शामिल होने से लेकर बीजेपी का अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें आने लगीं।
अभी असल में बड़े गेम की तैयारी बाकी थी। क्योंकि महज चार महीने दूर था विधानसभा चुनाव और यहीं पर देवेंद्र फडणवीस ने बाजी पलट दी। उनके नेतृत्व में पार्टी को राज्य में अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी जीत मिली और महायुति गठबंधन को बंपर सीटें मिलीं। इसके बाद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए फडणवीस की दावेदारी को नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया। हालांकि एकनाथ शिंदे ने शुरुआती एतराज जताया। सतारा के ‘कोप भवन’ में गए लेकिन महाराष्ट्र की राजनीतिक फलक पर साफ-साफ लिखी इबारत से भला शिंदे भी कब तक आंख फेर सकते थे। उन्होंने फडणवीस का सीएम बनना स्वीकार किया।
इसके बाद आते हैं इस पठकथा कि असली कहानी पर जहां मोदी-शाह को भी बैक होना पड़ा। दरअसल, लोकसभा में महायुति गठबंधन के बेहतर सीट नहीं आने पर हर तरफ से देवेंद्र फडणवीस पर उंगली उठने लगी। ऐसे में देवेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उनसे गलती कहां हुई और वह क्या करें। ऐसे में उन्होंने अपनी यह चिंता इनको पॉलिटिकल एंट्री करवाने वाले नेता के सामने रखा। उसके बाद उनकी सलाह पर इन्होंने नागपुर प्रवास किया उसके बाद बातचीत में इनकी समस्या का हल तैयार कर लिया गया और भरोसा दिलाया गया कि विधानसभा में तस्वीर बदली रहेगी और आज यह दिखा भी।
हालांकि, तस्वीर बदलने के बाद भी कुर्सी हासिल करना इनके लिए आसान नहीं था। शिंदे इस बात से एतराज जाता चुके थे कि उनका डिमोशन किया जाए। लेकिन इसके बाद देवेंद्र ने ऐसी चाल चली कि मोदी -शाह को भी पीछे हटना पड़ा और एकनाथ को यह उदाहरण देना पड़ा कि वह आसानी से मान सकें। यहां देवेंद्र ने खुद के लिए राह मुश्किल होती देख एकबार फिर नागपुर कि तरफ नजर जमाई। अबकी बार यहां से साफ़ संदेश दिया गया कि यदि फडणवीस के अलावा किसी के तरफ नजर भी गई तो फिर मामला काफी बिगड़ सकता है। इसकी चेतावनी सीधे दिल्ली तक दे दी गई।
उसके बाद अमित शाह ने शिंदे से मिले तो शिंदे ने इस पर आपत्ति जताई कि उनके लिए मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद डिप्टी सीएम का पद स्वीकार करना मुश्किल है। जिस पर अमित शाह ने पास बैठे देवेंद्र फडणवीस की ओर इशारा करते हुए कहा। एक उदाहरण आपके पास बैठे हैं और शिंदे फिर कहने को कुछ नहीं बचा। शिंदे शाह का इशारा समझ गए। लेकिन, यह चीज़ इतनी आसानी ने नहीं हुई।
इसके पीछे कि कहानी को लेकर एक सूत्र बताते हैं कि अमित शाह ने कहा कि 2019 में भी फडणवीस ने आपको एप्रोच किया था। लेकिन तब आपने मना कर दिया था। फडणवीस ने आपकी हमेशा इज्जत कि है आपके लिए त्याग किया है। शिंदे के सामने आते। 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने पुणे मेट्रो रेल प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया और आप बतौर नगर विकास मंत्री कार्यक्रम में शामिल हुए। यहां आप काफी पीछे चल रहे थे और फडणवीस बार-बार आपका हाथ पकड़ कर आपको बराबर में लाकर खड़ा किया इसलिए अब बारी आपकी है।
इधर, 2024 में महाविकास अघाड़ी के शानदार प्रदर्शन के बाद से विधानसभा चुनाव में उनके हौसले बुलंद थे। राजनीतिक पंडित भी महाराष्ट्र में कमोबेश लोकसभा चुनाव जैसे नतीजों का ही अनुमान लगा रहे थे। इस बीच देवेंद्र अपने मिशन में जुटे रहे। उन्होंने ताबड़तोड़ रैलियां कीं। इस बार नागपुर में तैयार रणनीति के हिसाब से यह काम करते रहे और हिंदुत्व को मुद्दा बनाया।
इन्होंने मनोज जरांगे पाटिल के मराठा आंदोलन की काट में लक्ष्मण हाके का आंदोलन शुरू कराया गया। जिसका असर भी चुनाव में दिखा. गैर- मराठा ओबीसी लामबंद हए और इन चुनावों में बीजेपी को अकेले दम पर 132 सीट आई। बहुमत से बस 13 सीट दूर। यानी अब बीजेपी की सहयोगियों पर निर्भरता कम हो गई. अगर एकनाथ शिंदे छिटक जाए तो अजित पवार के साथ भी आसानी से सरकार बन जाएगी। यानी प्रधानमंत्री मोदी का 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिया नारा पांच साल बाद अब साकार हो रहा है।