कोरोना को लेकर बिहार सरकार के आंकड़ों में लगातार गड़बड़ी, बिहार के डिप्टी सीएम गलत जानकारी दे रहे हैं या स्वास्थ्य विभाग?

कोरोना को लेकर बिहार सरकार के आंकड़ों में लगातार गड़बड़ी, बिहार के डिप्टी सीएम गलत जानकारी दे रहे हैं या स्वास्थ्य विभाग?

PATNA : बिहार में कोरोना के हालात को लेकर नीतीश सरकार के दावों में लगातार गड़बडी देखी जा रही है. सरकार के जिम्मेवार पदों पर बैठे नेता परस्पर विरोधी दावे कर रहे हैं. जनता कंफ्यूज है. सवाल ये उठ रहा है कि सरकार आंक़डे छिपा रही है या फिर जिम्मेवार पदों पर बैठे नेता बगैर जानकारी के ही दावे किये जा रहे हैं.

डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य विभाग के आंकडे अलग अलग

बिहार में कोरोना को लेकर सरकारी दावों में ऐसी ही गड़बड़ी शुक्रवार को भी देखने को मिली. बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कोरोना को लेकर ताबड़तोड़ ट्वीट किया. उन्होंने दावा किया कि बिहार में कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या यानि रिकवरी रेट लगातार बढ रही है. पहले रिकवरी रेट 51.80 प्रतिशत था जो अब बढ़कर 63 प्रतिशत हो गया है. सुशील मोदी ने दावा किया कि बिहार सरकार के गंभीर प्रयास से ये संभव हुआ है.

बिहार के डिप्टी सीएम ने ये ट्वीट शाम 6 बजकर 51 मिनट पर किये. उसके कुछ देर बाद यानि शाम 7 बजकर 7 मिनट पर बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने स्वास्थ्य विभाग के हवाले से कोरोना का आंकडा जारी किया. सूचना और जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी आंकडे में कहा गया कि बिहार में कोरोना से ठीक होने वाले की संख्या यानि रिकवरी रेट 67.52 प्रतिशत है. इसमें ये भी कहा गया कि ये आंकडा शाम 4 बजे तक का है.

सवाल ये है कि बिहार में कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों को लेकर सच कौन बोल रहा है. बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी या स्वास्थ्य विभाग. वैसे सुशील मोदी ने ये भी दावा किया कि बिहार में रिकवरी रेट 51.80 प्रतिशत था, जो बढ़कर 63 प्रतिशत पर पहुंचा है. यानि पहले कोरोना के 100 मरीजों में 51-52 मरीज ठीक हो रहे थे, अब 63 ठीक हो रहे हैं. लेकिन हकीकत तो ये है कि बिहार या पूरे देश में कहीं भी और कभी भी 51.80 प्रतिशत नहीं रहा. पूरे भारत का रिकवरी रेट लगभग 63.54 प्रतिशत है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिम्मेवार पदों पर बैठे लोग क्या बगैर जानकारी के ही लोगों के बीच आंकडे पेश कर रहे हैं. इससे लोगों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है.

पहले भी ऐसे मामले आये हैं जब बिहार सरकार के आलाधिकारियों या मंत्री ने एक ही मामले पर अलग-अलग दावे किये हैं.