चुनावी रैलियों का पिछला रिकॉर्ड टूटना नामुमकिन, लालू और पासवान होंगे मिसिंग

चुनावी रैलियों का पिछला रिकॉर्ड टूटना नामुमकिन, लालू और पासवान होंगे मिसिंग

PATNA : कोरोना काल में पहली बार बिहार में विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव होने हैं. चुनाव आयोग द्वारा वर्चुअल रैली और जनसभा करने और कुछ शर्तों के साथ एक्चुअल रैलियां और जनसभाएं करनी की इजाजत दी गई है. सभी पार्टियों के रणनीतिकार अपने-अपने उम्मीदवारों की एक-एक सीट पर जीत तय करने के लिए दिग्गज नेताओं का कार्यक्रम तय करने में जुटे हैं. हालांकि, अभी यह तय नहीं हुआ है कि रैली कहां-कहां होगी और कब होगी. 


पिछली बार का रिकॉर्ड टूटना नामुमकिन

कोविड के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से चुनावी सभाओं से बड़ी पार्टियां परहेज करने जा रही हैं. हालांकि सत्ताधारी दलों को छोड़कर राजद समेत सभी छोटी और क्षेत्रीय पार्टियां चुनावी सभाओं पर ही खास जोर देंगी. यदि हम 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना 2015 के विधासनभा चुनाव से करें तो पिछली बार तक़रीबन 1,363 जनसभाओं का आयोजन दिग्गज नेताओं द्वारा किया गया था. लेकिन इस बार कोरोना संकट की वजह से पिछली बार का रिकॉर्ड टूटना नामुमकिन हो गया है क्योंकि चुनाव में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. 


पिछली बार पीएम मोदी ने 26, अमित शाह ने 85, सीएम नीतीश ने 210, लालू प्रसाद यादव ने 226, राहुल गांधी ने 10, सोनिया गांधी ने 6, सुशील मोदी ने 182, रामविलास पासवान ने 132, जीतन राम मांझी ने 136, नंदकिशोर यादव ने 80 जनसभाओं को संबोधित किया था.  वहीं पप्पू यादव ने 250, मायावती ने 13, अखिलेश यादव ने 4 और मुलायम सिंह यादव ने 3 सभाएं की थी.  


कई दिग्गजों की कमी खलेगी

वहीं इस बार अपनी भाषण शैली से जनता का रुख मोड़ देने वाले वक्ताओं की भी इस बार के चुनाव में कमी दिखेगी. जदयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुनाव प्रचार में मौजूदगी रहेगी. वे लोगों के बीच भी जायेंगे और वर्चुअल तरीके से भी अपनी बात मतदाताओं के सामने रखेंगे. दूसरी ओर, राजद प्रमुख लालू प्रसाद को जमानत तो मिल गई है लेकिन उनके जेल से रिहा होने की बात 9 नवंबर की सामने आ रही है, जिस वजह से इस बार लालू भी जनता के बीच जाकर प्रचार-प्रसार नहीं कर पाएंगे. इधर ठीक चुनाव के पहले लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान और राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह इस दुनिया में नहीं रहे, जिस वजह से इनकी कमी भी अब जनसभाओं में खलेगी. 


राजद सुप्रीमो लालू यादव के जेल में रहने और स्थानीय बोली से ग्रामीण महिलाओं के बीच आवाज बुलंद करने वाली राबड़ी देवी के अस्वस्थ होने की वजह से इस बार सभाओं की पूरी जिम्मेदारी अकेले तेजस्वी यादव के कंधों पर हैं. महागठबंधन के तहत वाम मोर्चे में उनके कैडर के वरिष्ठ नेताओं से परे कन्हैया कुमार की भाषण शैली मतदाताओं को अपनी ओर खींच सकती है. वहीं जेडीयू की तरफ से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी पर पूरी जिम्मेदारी है. भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल मीटिंग तक ही सीमित रहेंगे. वहीं गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी चुनाव प्रचार में मुख्य वक्ता होंगे. इधर रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा का सारा दारोमदार उनके बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के कंधों पर रहेगी. 


बहरहाल कोरोना काल में आम लोगों को काफी चुनौतियों से जूझना पड़ा है. इसबार के चुनावी मौसम में पहली बार ऐसा होगा जब नेताओं को भी आम लोगों से जुड़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि इससे पहले भी अमित शाह और सीएम नीतीश की वर्चुअल रैली में हम देख चुके हैं कि एक्चुअल और वर्चुअल रैली में जमीन-आसमान का फर्क होता है. बहरहाल ये देखना दिलचस्प होगा कि इस बार नेता बिहारी वोटरों से कितना संपर्क कर पाते हैं और दिग्गजों के नहीं रहने पर कैसे मतदाताओं का रुख अपनी तरफ कर पाते हैं.