PATNA: बिहार में सरकारी काम पर ब्रेक लग गया है या पूरी सरकार ही गड़बड़झाले में फंस गयी है. सूबे में नयी सरकार के गठन के बाद पिछले तीन हफ्ते से कैबिनेट की बैठक ही नहीं हुई है. सामान्यतः हर सप्ताह कैबिनेट की बैठक होती थी लेकिन नयी सरकार के गठन के बाद इस पर ब्रेक क्यों लग गया है. सियासी गलियारे में चर्चा तेज है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है.
नयी सरकार में सिर्फ एक औपचारिक बैठक हुई
पिछले 16 नवंबर को नीतीश कुमार की अगुआई में नयी सरकार का गठन हुआ था. नीतीश समेत दूसरे मंत्रियों ने शपथ ली थी. उसके अगले दिन कैबिनेट की औपचारिक बैठक बुलायी गयी थी. इस बैठक को बुलाना बाध्यता थी क्योंकि कैबिनेट की बैठक में ही विधानसभा का सत्र बुलाने का फैसला लेना होता है. नयी विधानसभा के गठन के बाद विधानसभा का सत्र बुलाना जरूरी होता है. लिहाजा 17 नवंबर को कैबिनेट की बैठक कर विधानसभा का सत्र बुलाने का फैसला लिया गया.
17 नवंबर के बाद कैबिनेट की कोई बैठक नही
17 नवंबर की औपचारिक बैठक के बाद बिहार में कैबिनेट की बैठक हुई ही नहीं. बिहार में सरकार की परंपरा रही है कि हर सप्ताह कैबिनेट की बैठक बुलायी जाती है. कैबिनेट की बैठक के लिए दिन भी तय है-मंगलवार. अगर किसी कारणवश मंगलवार को बैठक नहीं हो पायी तो दूसरे दिन कैबिनेट की बैठक होती रही है. नीतीश कुमार ने कई दफे एक सप्ताह में दो दफे कैबिनेट की बैठक की है. लेकिन नयी सरकार के बनने के बाद तीन सप्ताह से कैबिनेट की कोई बैठक हुई ही नहीं.
सरकार में गडबडझाला है?
सत्ता के गलियारे में चर्चा तेज है कि सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दरअसल राज्य सरकार के सारे अहम फैसले कैबिनेट की बैठक में ही लिये जाते हैं. लेकिन सरकार ने तीन हफ्ते से कोई बैठक नहीं की. लिहाजा अहम फैसले नहीं लिये जा रहे हैं. जाहिर तौर पर सवाल उठेंगे. लेकिन इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है.
हम आपको बता दें कि कैबिनेट की बैठक बुलाना मुख्यमंत्री का अधिकार होता है. जाहिर है नीतीश की मर्जी नहीं हुई लिहाजा बैठक नहीं बुलायी गयी. फिर सवाल ये उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार की सरकारी कामकाज से अभिरूचि कम हो गयी है. या फिर बीजेपी से टकराव का सिलसिला शुरू हो गया है. दोनों पार्टियां खामोश हैं लेकिन सियासी गलियारे से लेकर सचिवालय में तरह तरह की चर्चायें हो रही हैं.
वैसे भी चर्चाओं को बल देने के पर्याप्त कारण हैं. कोरोना के दौर या चुनाव के समय को छोड़ दें तो नीतीश कुमार के कार्यकाल में शायद ही कभी ऐसा वक्त आया होगा जब तीन सप्ताह तक कैबिनेट की बैठक नहीं हुई. बिहार के मुख्यमंत्री तो पटना के सचिवालय में ही नहीं बल्कि राजगीर से लेकर बिहार के दूसरे ग्रामीण इलाकों में भी कैबिनेट की बैठक करते रहे हैं.
अब चर्चा ये है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं. इस सरकार से पहले उन्होंने बीजेपी के साथ जो भी सरकार चलाये उसमें बीजेपी के ज्यादातर मंत्री नीतीश कुमार के गुडबुक के लोग होते थे. चाहे वे डिप्टी सीएम सुशील मोदी हों या फिर नंदकिशोर यादव से लेकर प्रेम कुमार जैसे मंत्री. सरकारी बैठकों में उनके बीच इस बात की होड़ मचती थी कि कौन खुद को नीतीश कुमार का सबसे ज्यादा नजदीकी साबित कर दे.
सत्ता के जानकार बताते हैं कि हालात बदल गये हैं. नीतीश के सामने बीजेपी के मंत्रियों को संभालने की मुश्किल आ खड़ी हुई है. चाहे डिप्टी सीएम तार किशोर प्रसाद और रेणू देवी हों या बीजेपी के दूसरे मंत्री वे नीतीश कुमार से गाइड होने वाले नहीं हैं. बीजेपी के मंत्री अपनी पार्टी के आलाकमान से दिशा निर्देश ले रहे हैं. चर्चा ये हो रही है कि नीतीश इस पेशोपेश में पड़े हैं कैबिनेट की बैठक में नये तेवर वाले बीजेपी के मंत्रियों को संभालेंगे कैसे. इसी उहापोह में सरकार की गाड़ी रूकती दिखाई दे रही है.
हालांकि जेडीयू के नेता सरकार में किसी गड़बड़ी की बात से इंकार कर रहे हैं. जेडीयू के विधान पार्षद नीरज कुमार के मुताबिक नीतीश कुमार की काम करने की अपनी कार्यशैली रही है जिसकी मुरीद पूरी दुनिया रही है. नीतीश कुमार उसी तरीके से काम कर रहे हैं. इसमें किसी तरह की अटकलबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है.