PATNA : बिहार की राजनीति में एक बार फिर से सफेदपोश और लालफीताशाही के बीच नाराजगी देखने को मिल रही है। बिहार सरकार के अंतर्गत आने वाली एक विभाग के मंत्री पिछले कई दिनों से गायब है। ऐसी चर्चा है कि इनका विभाग के अंदर मौजूद लोगों से बन नहीं पा रहा है। इस वजह से मंत्री जी ने राजधानी में रहना ही उचित नहीं समझा है। यह तमाम बातें हम खुद से नहीं कह रहे बल्कि दैनिक अखबार ने इसको लेकर एक खबर प्रकाशित की है।
पटना में रहकर क्या करते ?
पटना से प्रकाशित एक दैनिक अखबार ने यह लिखा है कि समाज कल्याण विभाग के मंत्री पिछले कई दिनों से राजधानी पटना से गायब है और उनके पटना में नहीं रहने कि वजह यह है कि मंत्री जी के पास पिछले दो महीने से कोई भी विभागीय कागजात अनुमोदन के लिए जा नहीं रहा है। उस दैनिक अखबार ने यह कहा है कि मंत्री मदन सहनी से उनसे कहा है कि मुझे दो महीने से विभागीय फाइल अनुमोदन के नहीं मिल रहा है। लिहाजा विभाग के सभी काम ठप पड़े हुए हैं। तो ऐसे में मैं पटना में रहकर क्या करता ?
ACS के साथ काम करना मुश्किल !
इसी दैनिक अखबार से बातचीत करते हुए मंत्री ने यह भी बताया है कि उनके विभाग कि जो अपर मुख्य सचिव हैं उनके साथ काम करना काफी मुश्किल है। इसके पीछे कि वजह यह है कि उनके विभाग कि अपर मुख्य सचिव उनके कोई भी बात ही नहीं करती हैं। इतना ही नहीं वह विभाग के निदेशक या असफर से बात नहीं करती हैं। अब हर समय विभाग में बहस तो किया नहीं जा सकता है। इसलिए हमने दरभंगा में ही रहना उचित समझा।
पहले भी किया था इस्तीफे की घोषणा
जानकारी हो कि, तीन साल पहले भी समाज कल्याण मंत्री की अपने सचिव से भिड़ंत हुई थी। मामला अधिकारियों का ट्रांसफर से जुड़ा था। मंत्री ट्रांसफर करना चाहते थे लेकिन विभागीय सचिव ने नियम विरुद्ध बता फाइल को रोक दिया था। इसके बाद मदन सहनी ने काफी बबाल मचाया था और इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हस्तक्षेप किया था साथ ही मंत्री और अपर मुख्य सचिव को अपने आवास बुलाया था।
मंत्री ने फर्स्ट बिहार को बताया हकीकत ...
वहीं, इसको लेकर जब फर्स्ट बिहार ने मंत्री से बातचीत किया तो उन्होंने कहा कि फ़िलहाल ऐसी कोई बात नहीं है। यह सरासर अफवाह है। हम जमशेदपुर में थे और उसके बाद पर्व का मौसम था तो मैं घर चला आया। उसके बाद यह जानकारी मिली कि पीएम मोदी का दरभंगा में कार्यक्रम होना है तो वहां रूक गए। अब आज भी पीएम जमुई आ रहे हैं। इसके बाद हम वापस से पटना जाएंगे। ऐसी कोई भी बात नहीं है।
पहले भी शिक्षा विभाग में हो चूका है ऐसा
सूबे के अंदर जब महागठबंधन कि सरकार थी उस वक्त भी शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर बनाम शिक्षा सचिव केके पाठक के बीच काफी विवाद हुआ था। दरअसल, शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने जिम्मेदारी संभालते ही विभाग और जिला शिक्षा कार्यालयों पर नकेल कसनी शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने अपर मुख्य सचिव और निदेशक स्तर के पदाधिकारियों को पीत पत्र भेजकर कार्यशैली पर सवाल उठाया है।
मंत्री ने नाराजगी जताते हुए पत्र लिखा है कि ऐसा देखा जा रहा है कि कई मामलों में सरकार की कार्य संहिता के हिसाब से काम नहीं कराए जा रहे। राजपत्रित अधिकारी को भी उनके पद के अनुरूप काम नहीं दिए जा रहे हैं। विभाग के ऐसे कई अधिकारी हैं, जिनसे उनके पद से नीचे के स्तर के काम लिए जा रहे हैं।
उसके बाद अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने भी एक आदेश निकालकर शिक्षा मंत्री के उस निजी सचिव के विभाग में प्रवेश पर रोक लगा दी है। साथ ही निदेशक सुबोध कुमार चौधरी की ओर से एक पत्र भी जारी कराया गया है, जिसमें कहा गया है कि विभागीय मंत्री के आप्त सचिव(बाह्य) कृष्णा नंद यादव की ओर से प्रेषित पत्र/पीत पत्र या अन्य कोई भी पत्र रिसीव नहीं करना है।
पूर्व कृषि मंत्री बनाम कृषि विभाग
शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर बनाम अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच तकरार की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पूर्व भी कृषि मंत्री सुधाकर सिंह को अधिकारियों से लगातार अनबन बनी रही। तब सुधाकर सिंह ने कहा था कि अधिकारी चोर और मैं चोरों का सरदार। यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट कृषि रोड मैप को भी नकारा। साफ आरोप लगाया कि कृषि रोड मैप के नाम पर भारी घपला घोटाला किया है।
लघु सिंचाई मंत्री की भी अधिकारी नहीं सुनते
लघु सिंचाई मंत्री और एससी एसटी मंत्री डॉ. संतोष सुमन ने भी यही शिकायत थी कि अधिकारी लोग नहीं सुनते। खुद जीतनराम मांझी अपने विधायकों को साथ लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास ले गए। लेकिन जब कोई एक्शन नहीं लिया गया तो महागठबंधन छोड़ना पड़ा और साथ ही मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा।इसके बाद इनकी पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया।
बहरहाल, मंत्री बनाम अधिकारी की यह तनातनी बिहार कि राजनीति में अक्सर देखने को मिलाता रहता है। इस दौरान कुछ अधिकारियों पर नकेल कसा जाता है तो वहीं अमूमन यह देखने को मिलाता कि मंत्री को अपना विभाग छोड़ना पड़ जाता है। कई बार तो मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर तक का भी रास्ता देखना पड़ सकता है। अंब यह जो खबर सामने आई है इसकी हकीकत क्या है यह समय आने के बाद भी मालूम चल सकेगा।इसकी वजह है कि खुद मंत्री इस खबर से फिलहाल इंकार कर चुके हैं।