PATNA : भोजपुरिया माटी ने एक बार फिर कमाल किया है। बाबू वीर कुंवर सिंह जैसे योद्धा और बाबू जगजीवन राम जैसे दिग्गज राजनीतिक हस्ती की धरती पर एक बार फिर गौरवान्वित हुई है। इस धरती पर जन्म लेने वाले दो विभूतियों ने देश के सर्वोच्च सम्मानों से एक पद्मश्री पुरस्कार पाकर एक बार फिर धरती का मान बढ़ा दिया है। गणितज्ञ स्व. वशिष्ठ नाराय़ण सिंह और साहित्यकार डॉ शांति जैन ने भोजपुरिया माटी की शान में चार चांद लगा दिया है।
सबसे पहले बात करते हैं देश-विदेश में कभी अपनी प्रतिभा का डंका बजाने वाले गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की। बचपन से ही वे मेधावी छात्र थे। छात्र जीवन के दौरान ही अमेरिका से पटना आए प्रोफेसर कैली से उनकी मुलाकात हुई तो इस प्रतिभा को जैसे चार चांद लग गये। अमेरिकी प्रोफेसर के निमंत्रण पर 1963 में वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए गए। वशिष्ठ नारायण ने 'साइकिल वेक्टर स्पेस थ्योरी' पर शोध किया। 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बने। उन्होंने नासा में भी काम किया, लेकिन वे 1971 में भारत लौट आए। भारत वापस आने के बाद उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में काम किया। वशिष्ठ नारायण ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। कहा जाता है कि जब नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था।महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पिछले साल 14 नवंबर को पटना में निधन हो गया था। 40 साल से मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह पिछले काफी दिनों से बीमार थे।
आरा की दूसरी विभूति डॉ शांति जैन जिन्हें कला के क्षेत्र में ये सम्मान मिला है वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। आरा में जन्मी डॉ शांति जैन ने वहीं जैन कॉलेज में संस्कृत के विभागाध्यक्ष पद को सुशोभित किया। प्रोफेसर के साथ-साथ वे आकाशवाणी, दूरदर्शन की कलाकार और कवयित्री भी हैं।संस्कृत भाषा के बड़े विद्धानों में उनका नाम शुमार है। डॉ शांति जैन ने 20 से ज्यादा किताबें लिखी हैं। शांति जैन का कहना है कि समय पर सम्मान पाने से इंसान का उत्साह दूना हो जाता है और वह ज्यादा बेहतरी की ओर कदम रखता है। उन्होनें कहा कि देर से ही सहीं लेकिन आज वे पुरस्कार पाकर गौरवान्वित हैं। 75 साल की उम्र में डॉ शांति जैन आज भी साहित्य सृजन में मशगूल हैं। उनका मानना है कि हर मनुष्य को आत्मिक शांति के लिए खुद कुछ लिखना चहिए।वर्तमान में शांति जैन पटना में रह रही हैं।
डॉ शांति जैन की रचनाओं की लंबी फेरहिस्त है। एक वृत्त के चारों ओर, हथेली का आदमी, हथेली पर एक सितारा (काव्य); पिया की हवेली, छलकती आँखें, धूप में पानी की लकीरें, साँझ घिरे लागल, तरन्नुम, समय के स्वर, अँजुरी भर सपना (गजल, गीत-संग्रह); अश्मा, चंदनबाला (प्रबंधकाव्य); चैती (पुरस्कृत), कजरी, ऋतुगीत : स्वर और स्वरूप, व्रत और त्योहार : पौराणिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, उगो हे सूर्य, लोकगीतों के संदर्भ और आयाम (पुरस्कृत), बिहार के भक्तिपरक लोकगीत, व्रत-त्योहार कोश, तुतली बोली के गीत (लोकसाहित्य); वसंत सेना, वासवदत्ता, कादंबरी, वेणीसंहार की शास्त्रीय समीक्षा (क्लासिक्स); एक कोमल क्रांतिवीर के अंतिम दो वर्ष (डायरी)।सभी तरह की विधाओं में उन्होनें अपनी पारंगतता दिखायी है।
वहीं डॉ शांति जैन को मिले पुरस्कार-सम्मान की लिस्ट भी काफी लंबी है। इन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान, राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, के.के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा शंकर सम्मान, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नेशनल सीनियर फेलोशिप, ऑल इंडिया रेडियो का राष्ट्रीय सम्मान, 'चैती' पुस्तक के लिए बिहार सरकार का राजभाषा सम्मान और कलाकार सम्मान मिल चुका है।