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बिहार के अंदर इन दिनों लोक सेवा आयोग की परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागु नहीं किए जाने को लेकर काफी हंगामा हुआ है। इस दौरान पुलिस के तरफ से भी जमकर लाठियां चटकाई गई है। इस दौरान एक छात्र नेता को अरेस्ट कर लिया गया है। जबकि एक टीचर के कोचिंग सेंटर के ऊपर भ्रामक पोस्ट किए जाने को लेकर FIR भी दर्ज किया गया है। हालांकि, छात्रों के इस आंदोलन का एक असर भी हुआ कि आयोग को पत्र जारी कर यह कहना पड़ा कि हम नॉर्मलाइजेशन लागु नहीं कर रहे हैं। अब इस बीच यह सवाल काफी उठ रहे हैं कि,आखिर यह नॉर्मलाइजेशन क्या है और इसका इतना विरोध क्यों हो रहा है ? तो आज हम आपके इस सवाल का जवाब ढूंढ कर लाए हैं।
सबसे पहले हम यह समझते हैं कि आखिर यह नॉर्मलाइजेशन क्या है? तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि यह एक तकनीक है जिसके जरिए किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के मार्क्स को सामान्य किए जाते हैं। आप इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं कि नॉर्मलाइजेशन फॉर्मेट के तहत किसी परीक्षा में मिले अंकों को सामान्य किया जाता है।
अब यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस नियम तो तभी लागू किए जाते हैं जब किसी परीक्षा में अलग-अलग सेट के सवाल का उपयोग किया जाता है या फिर एक ही परीक्षा अलग -अलग शिफ्ट में आयोजित करवाई जाती है। इसके जरिए विभिन्न सेटों में प्राप्त अंकों को एक ही पैमाने पर लाने के लिए इस फॉर्मूले का उपयोग किया जाता है।
अब आसान तरीके से समझे तो किसी स्टूडेंट का यदि पहले शिफ्ट में परीक्षा हुआ और उसके यह सवाल किया गया हो कि 2+2 कितना होता है? जबकि इसके बाद वाले शिफ्ट में सवाल किया जाता है कि 1224 +2024 कितना होता है ? तो जाहिर से बात है कि पहले शिफ्ट वाले के लिए सवाल आसान हो गया जबकि दूसरे शिफ्ट वाले के लिए थोड़ा कठिन तो इस दौरान इस फॉर्मूले का उपयोग कर यह देखा जाएगा कि पहले शिफ्ट में कितने लोगों ने इसका जवाब दिया और दूसरे शिफ्ट के सवाल का कितना जवाब दिया गया और कितने लोगों का जवाब सही है अब उसी हिसाब से इतना मार्क्स तैयार किया जाएगा।
लेकिन, ध्यान रहें कि इस तकनीक का उपयोग अमूमन तभी किया जाता है जब परीक्षा एक से अधिक शिफ्ट में हो और सवाल अलग-अलग हो। ऐसे में विरोध कर रहे छात्रों का कहना था कि जब परीक्षा एक शिफ्ट में ली जाएगी तभी इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागु नहीं होना चाहिए। इसके अलावा उनका कहना था कि इस परीक्षा में गणित अंग्रेजी के सवाल का उपयोग नहीं होता है इसमें इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
वैसे एक फार्मूला यह भी है कि अगर परीक्षा में कैंडिडेट्स की संख्या ज्यादा हो तो अलग-अलग दिन या अलग-अलग पालियों में परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लिया जाता है। ताकि रिजल्ट समान और निष्पक्ष हों। जब किसी पाली में अभ्यर्थियों ने कम अंक प्राप्त किए या उन्होंने कम सवालों के जवाब दिए, तो उस पाली के प्रश्न पत्र को कठिन माना जाएगा। इसके विपरीत, अगर दूसरी पाली में अभ्यर्थियों ने अधिक अंक प्राप्त किए और ज्यादा सवालों के जवाब दिए, तो उस पाली के प्रश्न पत्र को आसान माना जाएगा। इसके तहत, आसान पाली में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों के परिणाम को लेकर कुछ समायोजन किया जाता है, ताकि कठिन पाली में कम अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों के परिणाम भी समान स्तर पर आ सकें।
इसके बाद अब सवाल यह है कि नॉर्मेलाइजेशन व्यवस्था का विरोध क्यों होता है? तो ऐसा माना जाता है कि कई दफे आयोग की परीक्षाओं में कई बार सवाल ही गलत पूछ लिए जाते हैं। अगर किसी एक पाली की तुलना में दूसरी पाली की परीक्षा में ज्यादा सवाल गलत हुए तो उनको कैसे पता चलेगा कि कितना अंक मिला। इसके अलावा परसेंटाइल निकालने का फॉर्मूला किसी एक पाली में परीक्षा में शामिल हुए छात्रों की संख्या के आधार पर निर्भर है। अगर किसी पाली में कम अभ्यर्थी शामिल हुए और उनके अंक भी कम आए तो स्वत: उस पाली की परीक्षा के प्रश्न पत्र को कठिन मान लिया जाएगा और उनके अंक बढ़ा दिए जाएंगे।
ऐसे ही किसी पाली में अधिक अभ्यर्थी आए और प्रश्न पत्र कठिन होने के बावजूद अच्छे अंक आए तो भी उनको कोई लाभ नहीं मिलेगा। उनका एक तर्क यह भी है कि हो सकता है कि किसी पाली का प्रश्न पत्र कठिन हो पर उसमें शामिल किसी अभ्यर्थी को जवाब आते हैं, तो उसे अंक मिलेंगे ही। यही वजह है कि यूपी और बिहार में अभ्यर्थी नॉर्मलाइजेशन का सख्त विरोध कर रहे हैं. इसे लेकर पटना में अभ्यर्थी आंदोलनरत हैं।