आखिर क्या है नीतीश का मिशन फूलपुर ? जानिए क्या है वहां का राजनीतिक समीकरण, मोदी -शाह पर योगी को कैसे लगेगा झटका

आखिर क्या है नीतीश का मिशन फूलपुर ? जानिए क्या है वहां का राजनीतिक समीकरण, मोदी -शाह पर योगी को कैसे लगेगा झटका

PATNA : बिहार की राजनीति में इन दिनों जो सबसे हॉट टॉपिक बना हुआ है वो है कि क्या नीतीश कुमार यूपी के फूलपुर लोकसभा से चुनाव लड़ेंगे। यदि वो ऐसा करते हैं तो आखिर इसकी वजह क्या है ? नीतीश कुमार को अचानक से चुनाव लड़ने की आखिर क्या जरूरत महसूस हुई? क्या विपक्षी गठबंधन के तरफ से नीतीश कुमार को चुनाव लड़ना मोदी के खिलाफ बड़ी प्लानिंग है ? सबसे बड़ा सवाल की नीतीश कुमार बिहार छोड़ यूपी क्यों जाएंगे ? जब इन सवालों के जवाब को लेकर वर्तमान की राजनीतिक हालत को देखते हैं तो कुछ चीज़ खुद से साफ़ नजर आने लगती है। 


दरअसल, देश में अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। ऐसे में सभी राजनितिक दल अपनी तैयारी में जूट गई है। कहीं न कहीं इनमें यह चर्चा भी शुरू हो गई है की इस बार का एजेंडा क्या रखना है ताकि जनता हमपर आसानी से भरोसा कर सके। ऐसे में बड़ा सवाल जो बना हुआ है वो ये है कि नीतीश कुमार फूलपुर से चुनाव लड़ेंगे या नहीं। इसको लेकर जब जवाब की तलाश की जाती है तो मिलाजुला सा जवाब मिलता है। सबसे पहले इसका जवाब यह है कि नीतीश कुमार खुद चुनाव लड़ने को कुछ नहीं बोलते हैं लेकिन उनके नेता बीच - बीच में यह बातें जरूर कहते हैं। ऐसे में लाजमी है की पार्टी के अंदर नीतीश कुमार के चुनाव लड़वाने की चर्चा हो तो जरूर रही है। लेकिन,अंतिम फैसला नीतीश कुमार को ही लेना है और अभी समय भी है। लिहाजा फिलहाल कोई खुल कर बोलना नहीं चाहते हैं। 


इसके बाद जो दूसरा सवाल है वो ये हैं कि आखिर नीतीश कुमार के यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा शुरू कैसे हुई। तो इसका जवाब है कि बिहार के बाद यदि जदयू को लोग कहीं सबसे अधिक जानते हैं तो वो यूपी की है और यह पड़ोसी राज्य भी है। इसलिए यहां की रणनीति और भाषा को समाज को समझना कठिन नहीं होने वाला है। इसका अलावा यूपी में नीतीश कुमार के नाम और काम की चर्चा भी बाकी राज्यों की तुलना में अधिक है। 


वहीं, तीसरा सवाल जो है वो ये है कि नीतीश कुमार को चुनाव लड़ने की जरूरत क्यों होगी। इसके जवाब की जब तलाश की जाति है तो कुछ राजनितिक जानकारों का यह मानना है कि नीतीश कुमार अब खुद को बतौर पीएम देख रहे हैं और वो नरेंद्र मोदी की तरह चुनाव जीत कर केंद्र में जाना चाहते हैं। इसके साथ ही यदि नीतीश कुमार यूपी में चुनाव लड़ते हैं और जीत हासिल करते हैं तो न सिर्फ भाजपा बल्कि पीएम मोदी पर भी गहरा असर पड़ेगा। इससे नीतीश कुमार का कद भी काफी बड़ा होगा। हालांकि, अभी इसको लेकर कुछ भी आधिकारिक नहीं है। इसकी वजह सीटों का बंटवारा भी नहीं हो पाना है। जदयू पहले यह देखना चाहती है कि उसे इस विपक्षी गठबंधन में कितनी सीट मिलती है उसके बाद फिर तय होगा की कहां से चुनाव लड़ना है। 


इसके बाद जो सबसे बड़ा सवाल है वो ये है कि नीतीश कुमार बिहार छोड़ कर यूपी क्यों जाएंगे। ऐसे में जब इस सवाल के जवाब की तलाश की जाति है तो सबसे पहले जो चीज आती है वो है जातीय समीकरण। नीतीश कुमार का मूल वोट बैंक लव कुश समाज रहा है और बिहार में इसकी भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है। बिहार के सिर्फ सीएम के गृह जिले की बात करें तो नालंदा लोकसभा सीट में करीब 21 लाख वोटर हैं। जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा कुर्मी जाति का है। नालंदा लोकसभा सीट में कुर्मी वोटरों की संख्या 4 लाख 12 हजार है। इन्हें परंपरागत तौर पर जदयू का वोटर माना जाता है। इसके बाद  दूसरे नंबर पर यादवों की संख्या है। यहां करीब 3 लाख 8 हजार यादव वोटर हैं। जबकि नालंदा संसदीय सीट पर 1 लाख 70 हजार मुस्लिम वोटर हैं। 


उधर, फूलपुर लोकसभा की बात करें तो यहां सबसे अधिक वोट बैंक पटेल यानी कुर्मी समाज का ही है। यहां के चुनाव में हमेशा से ही कुर्मी समाज निर्णायक की भूमिका में रहे हैं और उसके बाद यादव और मुसलमान वोटर है। ऐसे में नीतीश कुमार यहां से चुनाव लड़ते हैं तो उनके साथ कुर्मी समाज का अच्छा ख़ासा वोट बैंक साथ आ सकता है। जबकि यादव वोट बैंक के लिए अखिलेश यादव और लालू यादव के साथ ही साथ तेजस्वी यादव का साथ काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके साथ ही कांग्रेस के साथ आने से मुसलमान वोटर को भी साधना आसान होगा। यही वजह है कि नीतीश कुमार के इस लोकसभा से चुनाव लड़ने की चर्चा सबसे अधिक है ताकि यह संदेश दिया जा सके है नीतीश कुमार का कद पहले ही तरह ही मजबूत है।