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Bihar Population; बिहार में जन्म दर सबसे अधिक क्यों ? क्या है बढ़ती जनसंख्या के नुकसान और समाधान

Bihar Population; बिहार में जनसंख्या वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक बनी हुई है, जिससे राज्य में संसाधनों पर बढ़ता दबाव चिंता का विषय बन रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, बिहार की प्रजनन दर (TFR) 3.0 है|

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 23 Mar 2025 03:23:41 PM IST

 बिहार जनसंख्या, प्रजनन दर, Total Fertility Rate (TFR), महिला साक्षरता, परिवार नियोजन, जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या नियंत्रण, अनियोजित गर्भधारण, सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ, स्वास्थ्य सेवाएँ, गरीबी, आर्थिक

प्रतीकात्मक तस्वीर - फ़ोटो Google

Bihar Population; बिहार में प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) अब भी राष्ट्रीय औसत से अधिक बनी हुई है, जिससे राज्य की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, बिहार का प्रजनन दर 3.0 है, जो पिछले सर्वेक्षण (NFHS-4) में 3.4 था। हालांकि इसमें कमी आई है, लेकिन यह अभी भी राष्ट्रीय औसत 2.0 से काफी अधिक है।


बिहार में उच्च प्रजनन दर के कई कारण हैं। पहला बड़ा कारण महिला साक्षरता की कमी है। बिहार में 15 से 49 वर्ष की महिलाओं की साक्षरता दर केवल 55% है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। शिक्षा के अभाव में महिलाओं को परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी नहीं मिल पाती, जिससे अधिक जन्म दर बनी रहती है। दूसरा बड़ा कारण कम उम्र में विवाह है। बिहार में अभी भी लड़कियों की शादी औसतन 18-20 साल की उम्र में कर दी जाती है, जिससे उनकी प्रजनन अवधि बढ़ जाती है और अधिक बच्चों के जन्म की संभावना बढ़ जाती है।


परिवार नियोजन सेवाओं का सीमित उपयोग भी इस समस्या को बढ़ाता है। बिहार में गर्भनिरोधक साधनों के इस्तेमाल का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम है, जिससे अनियोजित गर्भधारण के मामले अधिक देखने को मिलते हैं। इसके अलावा, कुछ सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ भी इस स्थिति को बनाए रखने में भूमिका निभाती हैं। कई परिवारों में ज्यादा बच्चों को आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखा जाता है, वहीं कुछ महिलाओं को बार-बार गर्भधारण के लिए मजबूर किया जाता है।


बिहार सरकार पिछले एक दशक से लगातार कई महत्वपूर्ण योजनाएँ चला रही है ताकि प्रजनन दर को कम किया जा सके। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने, परिवार नियोजन के लिए जागरूकता फैलाने और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसके बावजूद, अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। राज्य के दूर-दराज के इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित हैं, जिससे महिलाओं तक सही जानकारी और साधन नहीं पहुँच पाते। सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ भी परिवार नियोजन सेवाओं के उपयोग को रोकती हैं, क्योंकि आज भी ग्रामीण इलाकों में इन पर चर्चा करना वर्जित माना जाता है। गरीबी भी एक बड़ा कारण है, क्योंकि आर्थिक असुरक्षा के चलते कई परिवार ज्यादा बच्चों को भविष्य की आय का साधन मानते हैं।


अगर इस समस्या पर जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर देश के अन्य राज्यों की तुलना में और अधिक हो जाएगी। 2044 तक बिहार की अनुमानित जनसंख्या 16 करोड़ पार कर जाएगी, जिससे संसाधनों पर दबाव और अधिक बढ़ जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार को सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण पर ही नहीं, बल्कि संसाधनों को बढ़ाने और सामाजिक सोच को बदलने पर भी ध्यान देना होगा। महिला शिक्षा को और अधिक बढ़ावा देकर, स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाकर और परिवार नियोजन को लेकर जागरूकता फैलाकर ही बिहार की जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है।