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Supreme Court India: निःसंतान विधवा की संपत्ति पर कौन होगा वारिस? सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कानून

Supreme Court India: सुप्रीम कोर्ट ने निःसंतान हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकार पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि बिना वसीयत के मौत के बाद विधवा की संपत्ति मायके के बजाय ससुराल पक्ष को मिलेगी। जानिए...

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 25 Sep 2025 09:23:16 AM IST

Supreme Court India

सुप्रीम कोर्ट - फ़ोटो GOOGLE

Supreme Court India: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act - HSA) की धारा 15(1) (b) की वैधता पर सुनवाई करते हुए एक अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई हिंदू महिला निःसंतान है, बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है और उसने पुनर्विवाह नहीं किया है, तो उसकी संपत्ति उसके मायके के बजाय ससुराल पक्ष को मिलेगी।


न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि यह प्रावधान सदियों पुरानी परंपराओं पर आधारित है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हिंदू विवाह में 'कन्यादान' और 'गोत्रदान' की अवधारणाएं निहित होती हैं, जिसके अनुसार विवाह के बाद महिला पति के परिवार और गोत्र का हिस्सा बन जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू समाज में यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, और न्यायालय इस परंपरा को तोड़ना नहीं चाहता।


उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह के बाद महिलाएं अपने मायके के सदस्यों से भरण-पोषण की मांग नहीं करतीं, खासकर दक्षिण भारत में विवाह की रस्मों में यह बात पूरी तरह स्पष्ट की जाती है कि महिला एक गोत्र से दूसरे गोत्र में स्थानांतरित हो जाती है। इस आधार पर, संपत्ति का उत्तराधिकार भी पति के परिवार की ओर झुकता है।


इस सुनवाई का आधार कुछ याचिकाएं थीं, जिनमें सवाल उठाया गया था कि क्या HSA की यह धारा मौजूदा सामाजिक और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है। याचिकाकर्ताओं ने इसे लैंगिक असमानता और महिला अधिकारों का उल्लंघन बताया। एक मामला कोरोना महामारी से जुड़ा था, जिसमें एक युवा दंपति की मृत्यु हो गई थी। अब उस महिला की मां और पुरुष की मां के बीच संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है। महिला की मां का दावा है कि उसकी बेटी की कमाई और संपत्ति पर उसका हक बनता है, जबकि पुरुष की मां का दावा है कि कानून के अनुसार पूरी संपत्ति उसे ही मिलनी चाहिए।


एक अन्य मामले में निःसंतान दंपति की मृत्यु के बाद पुरुष की बहन ने महिला की संपत्ति पर दावा किया। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह मामला केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं बल्कि जनहित से जुड़ा है, और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।


कोर्ट ने फिलहाल इस संवेदनशील मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित याचिका को मध्यस्थता के लिए भेज दिया है और इस विषय पर अंतिम सुनवाई को नवंबर तक स्थगित कर दिया गया है। साथ ही, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह भी जोड़ा कि अगर कोई महिला चाहे तो वह वसीयत के जरिए अपनी संपत्ति का बंटवारा कर सकती है या दोबारा विवाह कर सकती है, जिससे उत्तराधिकार की स्थिति बदल सकती है।