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Sawan 2025: पोते ने दादी को कांवड़ में बैठाकर शुरू की 230 KM की यात्रा, हर किसी को किया भावुक

Sawan 2025: कांवड़ यात्रा में हरियाणा के दो पोतों विशाल और जतिन ने अपनी बुज़ुर्ग दादी राजबाला को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार से बहादुरगढ़ तक 230 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू की।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 13 Jul 2025 02:48:37 PM IST

Sawan 2025

सावन का पावन महिना - फ़ोटो GOOGLE

Sawan 2025: सावन का पवित्र महीना देशभर में शिवभक्तों के लिए आस्था, श्रद्धा और सेवा भाव का प्रतीक बन चुका है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से एक ऐसी भावुक कर देने वाली कांवड़ यात्रा सामने आई है, जिसने हर किसी को भाव-विभोर कर दिया। हरियाणा के झज्जर जिले से आए दो सगे पोते विशाल और जतिन अपनी बुज़ुर्ग दादी राजबाला को कांवड़ में बैठाकर 230 किलोमीटर लंबी यात्रा पर निकले हैं। यह यात्रा हरिद्वार से बहादुरगढ़ तक की है और यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सेवा, प्रेम और निष्ठा की एक जीवंत मिसाल बन गई है।


विशाल और जतिन ने अपनी दादी को तीर्थ कराने की ठानी और उन्हें एक तरफ बैठाकर, दूसरी ओर उनके वजन के बराबर गंगाजल रखकर एक संतुलित कांवड़ बनाई है। यह कांवड़ उन्होंने अपने कंधों पर उठा रखी है, और पूरे रास्ते ‘बम-बम भोले’ के जयकारों के बीच वे यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह कोई मन्नत नहीं, बल्कि सेवा और प्रेम का भाव है। पिछले वर्ष 2024 में भी उन्होंने यही यात्रा इसी तरह की थी, और अब परंपरा को निभाते हुए इस बार दोबारा दादी को लेकर निकले हैं।


दादी राजबाला इस यात्रा से बेहद खुश और भावुक हैं। उन्होंने भोलेनाथ से अपने पोतों की लंबी उम्र, नौकरी और अच्छे जीवन की कामना की है। उनका कहना है कि, "जो काम मेरे बेटे नहीं कर सके, वो मेरे पोतों ने कर दिखाया।" यह बात न केवल उनके लिए भावुक करने वाली है, बल्कि समाज को भी एक गहरी सीख देती है।


रास्ते भर इस विशेष कांवड़ यात्रा को देखने वालों की भीड़ लग रही है। लोग न केवल विशाल और जतिन को आशीर्वाद दे रहे हैं, बल्कि उन्हें समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बता रहे हैं। लोगों का कहना है कि आज के समय में जहां बुज़ुर्गों को उपेक्षित किया जा रहा है, वहीं इन दोनों पोतों ने यह साबित किया है कि बुज़ुर्गों की सेवा और सम्मान ही सच्चा धर्म है।


यह यात्रा सिर्फ भोलेनाथ को जल चढ़ाने की परंपरा नहीं, बल्कि उस संस्कार और संस्कृति की झलक भी है, जहां बुज़ुर्गों को देवतुल्य माना जाता है। विशाल और जतिन जैसे युवाओं की यह पहल आने वाली पीढ़ियों को आस्था, सेवा और कर्तव्यभाव की गहराई को समझने की प्रेरणा देती है।