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Justice Yashwant Verma Case: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू, लोकसभा स्पीकर ने तीन सदस्यीय कमेटी गठित की

Justice Yashwant Verma Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है।

1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Tue, 12 Aug 2025 12:44:31 PM IST

Justice Yashwant Verma Case

- फ़ोटो google

Justice Yashwant Verma Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस संबंध में तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है।


संसद के चालू मानसून सत्र के 17वें दिन ओम बिरला ने सदन को सूचित किया कि उन्हें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त हुआ है, जिस पर पक्ष-विपक्ष के कुल 146 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। स्पीकर ने प्रस्ताव को नियमों के अनुसार प्राप्त और मान्य बताते हुए इसकी स्वीकृति की जानकारी दी।


उन्होंने जस्टिस वर्मा पर लगे कदाचार के आरोपों का उल्लेख करते हुए तीन सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की। यह समिति सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वी.बी. आचार्य वरिष्ठ से मिलकर बनी है।


बता दें कि यह मामला जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर नकदी मिलने से जुड़ा है, जहां 14 मार्च की रात लगी आग बुझाने के दौरान अग्निशमन दल को एक स्टोर रूम में भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिली थी। आग बुझाने के दौरान जब पुलिस घर के अंदर गई तो देखा की वहां भारी मात्रा में कैश पड़ा हुआ है। जिसके बाद इस बात की सूचना मिलते ही सीजेआई ने आनन-फानन में कॉलेजियम की बैठक बुलाई थी।


दिल्ली हाईकोर्ट के जज के बंगले में लगी आग को बुझाने गयी पुलिस और फायर बिग्रेड की टीम को नोटों का बंडल मिलने पर सीजेआई संजीव खन्ना ने एक्शन लेते हुए जस्टिस यशवंत वर्मा को दिल्ली से इलाहाबाद भेज दिया था। सीजेआई के इस फैसले से दिल्ली हाईकोर्ट में हड़कंप मच गया था। 


जिसके बाद उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का फैसला लिया गया। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने  महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि जज का आचरण विश्वास योग्य नहीं है।