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Civil service day : भ्रष्टाचार के दलदल में डूबता steel frame of india... सिविल सेवा दिवस पर विशेष रिपोर्ट, सरदार पटेल होते, तो आज दुखी होते!

Civil service day : क्या आज भी हमारी ब्यूरोक्रेसी वही 'स्टील फ्रेम' है, जिसकी कल्पना सरदार पटेल ने की थी? या अब यह भ्रष्टाचार के दलदल में बुरी तरह फंसी हुई है?

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Civil service day : हर साल आज यानि 21 अप्रैल को भारत में सिविल सेवा दिवस मनाया जाता है। यह दिन देश के उन अफसरों के योगदान को सम्मानित करने के लिए है, जिन पर शासन और विकास का भार होता है। लेकिन इस वर्ष यह दिन एक महत्वपूर्ण सवाल लेकर आया है| क्या भारत की सिविल सेवा वाकई में अब भी ‘स्टील फ्रेम’ है या यह दीमक से ग्रस्त हो चुकी है?


सरदार पटेल की चेतावनी आज भी प्रासंगिक

भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सिविल सेवाओं को "India's Steel Frame" कहा था। उनका स्पष्ट मत था कि प्रशासनिक अधिकारी निष्पक्ष, स्वच्छ और जनसेवा के लिए समर्पित होने चाहिए। उन्होंने कहा था, “सरकारी सेवा में आपका पहला कर्तव्य राष्ट्र और जनता के प्रति होना चाहिए, न कि किसी नेता या दल के प्रति।” लेकिन आज, कई IAS अफसर सत्ता के संरक्षण में नियमों और संविधान की मर्यादा को कुचलते नज़र आते हैं।


देश में कई ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने दो दशकों में ही 100 से 200 करोड़ की संपत्ति बना ली है। यदि निष्पक्ष जांच हो, तो शायद स्मृतिशेष  सरदार पटेल भी इस 'स्टील फ्रेम' पर शर्मिंदा हो जाएं। करोड़ों की संपत्ति, लग्जरी कारें, फार्महाउस, विदेशों में निवेश, यह सब कुछ एक सरकारी वेतन से कैसे संभव है? लेकिन जनता के लुटे पैसे से ये सब संभव हो पा रहा है |


जनता से दूरी, सत्ता से नज़दीकी

एक दौर था जब अधिकारी गांव-गांव जाकर योजनाओं की निगरानी करते थे। अब अधिकांश अफसर वातानुकूलित दफ्तरों और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन तक सीमित हैं। जनता की समस्याएं उनके एजेंडे से लगभग ग़ायब होती दिखती है| हालाँकि अभी भी ऐसे अधिकारी हैं  जो इमानदारी और लगन से देश और राज्य की  विकाश में अपना योगदान दे रहें हैं |


भ्रष्टाचार के बढ़ते मामले, लेकिन कार्रवाई न के बराबर

हर साल कई बड़े घोटाले सामने आते हैं, रिश्वतखोरी, योजना में हेराफेरी। लेकिन राजनीतिक संबंधों और सिस्टम की ढील के चलते सज़ा न के बराबर होती है। उदाहरण के तौर पर झारखंड की घूसखोर अफसर पूजा सिंघल, जिन पर हजारों करोड़ के घोटालों के आरोप हैं, उन्हें जेल से निकलते ही फिर से बहाल कर दिया गया। वहीँ बिहार में संजीव हंस जैसे सीनियर अफसर भी जेल की सलाखों के पीछे हैं। अगर उन्हें भी सेवा में वापस बुला लिया जाए, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ये ट्रेंड से समझ सकते  हैं कि अफसरों पर न तो जल्दी कार्रवाई होती है और न ही जवाबदेही तय होती है। 


अगर बिहार की बात करें, तो यहां भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव एक IAS अधिकारी  से नेता बने व्यक्ति पर 'RCP टैक्स' लगाने का आरोप लगाते थे, और अब वर्तमान में 'DK टैक्स' का मुद्दा कई बार उठाते हैं । इससे आम जनता को भी अब समझ आने लगा है कि अफसरशाही वास्तव में जनता के प्रति कितनी समर्पित है और कितनी सत्ताधारी ताकतों के लिए। ये ट्रेंड से समझ सकते  हैं कि अफसरों पर न तो जल्दी कार्रवाई होती है और न ही जवाबदेही तय(Accountability fix) की जाती है।


बढ़ता प्रभुत्व ,प्रशासनिक दंभ,जनता से दुरी, भारी अहंकार एक  बड़ी समस्या 

भारत की 140 करोड़ की आबादी पर महज़ 5,542 IAS और 4,469 IPS अधिकारी देशभर के अलग अलग कैडर में तैनात हैं। यह संख्या न केवल प्रशासनिक जिम्मेदारियों के लिहाज़ से बेहद सीमित है, बल्कि चिंताजनक पहलू यह है कि इन अधिकारियों में से भी बड़ी संख्या फील्ड में काम करने की बजाय ट्रांसफर-पोस्टिंग की राजनीति, प्रमोशन की जोड़-तोड़ और सत्ता के समीकरण साधने में व्यस्त रहती है।


विकास के ज़मीनी मॉडल से जुड़ने की बजाय अधिकतर अधिकारी वातानुकूलित कार्यालयों और ब्यूरोक्रेटिक लालफीताशाही में उलझे रहते हैं। नतीजतन, जमीनी समस्याओं की पकड़ कमजोर होती जा रही है और जनता से जुड़ाव दिन-ब-दिन घटता जा रहा है। अफसरशाही अब सेवा नहीं, बल्कि सत्ता और विशेषाधिकार का पर्याय बनती जा रही है |


 सिविल सेवा दिवस सिर्फ अफसरों को सम्मान देने का दिन नहीं है, बल्कि उन्हें यह याद दिलाने का दिन है कि वे जनता के सेवक हैं, शासक नहीं। अगर ‘स्टील फ्रेम’ को बचाना है, तो इसे फिर से सरदार पटेल की आत्मा से जोड़ना होगा—निष्पक्षता, सेवा भावना और ईमानदारी से अपने देश की जनता के लिए सेवा भाव से काम करना होगा |